शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

पहल और जन संस्कृति मंच की संयुक्त भागीदारी में सार्थक फिल्म कार्यशाला आयोजित

हल और जन संस्कृति मंच की संयुक्त भागीदारी में जबलपुर में 4-5 सितंबर को दो दिवसीय सार्थक फिल्म कार्यषाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को फिल्मों के संबंध में सैद्धांतिक व व्यवहारिक जानकारी देने के लिए दिल्ली से जन संस्कृति मंच के फिल्म ग्रुप के संयोजक संजय जोशी और प्रसिद्ध डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर संजय काक जबलपुर पहुंचे। कार्यशाला में फिल्म व डाक्यूमेंट्री फिल्म के प्रोफेशनल्स, मास कम्युनिकेशन के प्राध्यापक, विद्यार्थी, एनीमेशन कोर्स के विद्यार्थियों के साथ गंभीर दर्शक शामिल हुए। सार्थक फिल्म कार्यशाला का उद्घाटन डी. पी. बाजपेयी ने किया। डी. पी. बाजपेयी फिल्म उद्योग से पिछले पांच दशकों तक संबद्ध रहे हैं। उन्होंने कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कहा कि जबलपुर में यूथ फिल्म फोरम लंबे समय तक इस प्रकार की फिल्म कार्यशाला के आयोजन के लिए प्रयास करती रही, लेकिन सफल नहीं हो सकी। उन्होंने जबलपुर में पहल द्वारा इस प्रकार की कार्यशाला को आयोजित करने के लिए साधूवाद दिया और आशा व्यक्त की कि इससे जबलपुर में फिल्म आंदोलन सशक्त बनेगा। कार्यशाला के पहले सत्र में संजय जोशी ने सिनेमा की भाषा को विभिन्न कालजयी फिल्मों के माध्यम से समझाया। उन्होंने दूसरे सत्र में विश्व सिनेमा के संचयन में से प्रतिनिधि फिल्मों का चुनाव कर सिनेमा के विभिन्न रूपों की अभिव्यक्तियों से परिचित करवाया। दोनों सत्रों में संजय जोशी ने गीतांजलि राव की प्रिंटेड एनीमेशन, सत्यजीत रे की अपूर संसार, नार्मन मेक्लेन की द चेयरी टेल के माध्यम से फिल्म निर्देशन, फोटोग्राफी, संगीत, आर्ट डायरेक्शन, प्रापर्टी, दृश्यांकन को विश्लेषित किया। कार्यशाला में सरोकार-मुद्दों पर आधारित म्यूजिक वीडियो अमेरिका-अमेरिका और गांव छोड़व नाहीं ने प्रतिभागियों को विशेष रूप से आकर्षित किया। कुछ विदेशी डाक्यूमेंट्री फिल्म से प्रतिभागियों को भारतीय व विदेशी डाक्यूमेंट्री फिल्मों के अंतर को समझने में भी मदद मिली। संजय काक ने स्वयं की डाक्यूमेंट्री जश्ने आजादी के माध्यम से भारत में सेंसरशिप के औचित्य और तार्किकता के संबंध में जानकारी दी। कार्यशाला के दूसरे दिन सत्र की शुरूआत संजय काक की जश्ने आजादी के प्रदर्शन से हुई। इस फिल्म के प्रदर्शन के पश्चात् उन्होंने प्रतिभागियों से बातचीत करते हुए कहा कि भारत में राजनैतिक कारणों से सरोकार और मुद्दे आधारित डाक्यूमेंट्री फिल्मों को सेंसरशिप से गुजरना पड़ता है, जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात है। तीसरे सत्र में संजय जोशी ने स्वतंत्रता के पश्चात् से अभी तक निर्मित हुई कुछ महत्वपूर्ण एवं पुरस्कृत फिल्मों का प्रदर्शन करते हुए उनकी विषेषताओं पर रौशनी डाली। उन्होंने फीचर और डाक्यूमेंट्री के अंतर के संबंध में जानकारी दी। उस्ताद अलाउद्दीन खान पर केन्द्रित डाक्यूमेंट्री और गाड़ी लोहरदगा मेल प्रतिभागियों के दिल में गहराई से उतरी। कार्यशाला के अंतिम सत्र में फिल्मकार संजय काक ने अपनी चर्चित फिल्मों जश्ने आजादी और नर्मदा बचाओ आंदोलन के जरिए भारतीय डाक्यूमेंट्री निर्माण की बारीकियों पर चर्चा की। कार्यशाला के समापन अवसर पर पहल के संरक्षक और विख्यात साहित्यकार ज्ञानरंजन, संजय जोशी, संजय काक, कहानीकार राजेन्द्र दानी, रंगकर्मी अरूण पाण्डेय, बसंत काशीकर, राजेन्द्र चंद्रकांत राय, मनोहर बिल्लौरे, अरूण यादव और पंकज स्वामी ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए। दो दिवसीय फिल्म कार्यशाला से सभी प्रतिभागी उत्साहित हुए और उन्होंने आयोजकों से इस प्रकार की कार्यशाला को कुछ अंतराल में आयोजित करने का आग्रह किया। जन संस्कृति मंच के संजय जोशी ने कार्यशाला के सफल आयोजन के पश्चात् विश्वास व्यक्त किया कि जबलपुर में भी गोरखपुर व पटना की तर्ज पर फिल्म फेस्टीवल का आयोजन किया जा सकता है।

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