रविवार, 29 जुलाई 2012

पहल : संवाद – 2


मित्रों,
आप लोगों की निरंतर आती हुई शुभकामनाओं, अपूर्व उत्साह और सहकारी बनने की अभिव्यक्तियों ने हमें हैरानी की हद तक ख़ुश और तैयार किया है. कई बार यह होता है कि जहां हम नहीं हैं वहां भी हमारी सोच और कर्म की छाया पहंच चुकी होती है.
‘पहल’ के प्रसंग में भी यही हुआ. हम पहली बार इस माध्यम का उपयोग कर रहे हैं. जिन्हें उम्मीद थी या प्रतीक्षा में थे, हमारे पुराने और बिल्कुल नये साथी, वे अपनी प्रतिक्रियाओं से ‘पहल’ के भविष्य का एक स्पष्ट संकेत तो दे ही रहे हैं. वस्तुत: प्रेरणाएं सो नहीं गई थीं, हमीं निद्रा में चले गए थे. हमे जगाने के लिए धन्यवाद.
मित्रों, जब हम आपसे प्रत्यक्षत: मुखातिब नहीं हों तब भी, यकीन जानिये, हम दिन-रात प्रारंभिक तैयारियों में लगे हैं. क्रमश: उदबोधन की भाषा की ज़रूरत कमतर होगी और हम ठोस सूचनाओं और कामकाजी अभियान की तरफ बढ़ेंगे. आपसे आग्रह है कि बधाई की जगह अब हमें अपने आवासीय पत्ते, टेलीफोन नम्बर जैसी जानकारियां, हमारे ईमेल – gyanranjanpahal@gmail.com  और rkpahal2@gmail.com  पर हमें भेज दें.
आप ‘पहल’ की बिक्री, प्रसार, उसकी रचनात्मकता और उसके आर्थिक उपायों के बारे में जो भी बता सकें, हमे अवश्य बतायें. अपने भौगोलिक क्षेत्रों में, ‘पहल’ की प्रतियां किस संख्या में और कैसे पहुंचायेंगे, यह ख़बर दें. आपकी निजी सदस्यता तो ज़रूरी है ही. पहल की एक प्रति का मूल्य 50 रुपये और सालाना 200 रुपये होगा.
इस बाज़ार मूल्य से ऊपर हम ‘पहल’ को कीमती बनाने के लिये प्रतिबद्ध हैं. हमारा प्रयास होगा कि आपके साथ मिलकर हम अपने समय की नाड़ी, तापमान और मुहावरे की तरफ बढ़ते हुए ज़रूरी भाषा की खोज कर सकें.
शेष अगली बार.
आपके
ज्ञानरंजन
राजकुमार केसवानी

पहल में सरकारी विज्ञापन नहीं छपेंगे

हिंदी साहित्य जगत की अनिवार्य पत्रिका के रूप में मान्य पहल को विख्यात साहित्यकार, संपादक और कहानीकार ज्ञानरंजन ने पुन: निकालने का निश्चय किया है। उन्होंने तीन वर्ष पहल का प्रकाशन स्थगित कर दिया था। पहल का प्रकाशन बंद करते समय ज्ञानरंजन की टिप्पणी थी कि उन्होंने पहल को किसी आर्थिक दबाव या रचनात्मक संकट के कारण बंद नहीं किया है, बल्कि उनका कहना था-‘‘पत्रिका का ग्राफ निरंतर बढ़ना चाहिए। वह यदि सुन्दर होने के पश्चात् भी यदि रूका हुआ है तो ऐसे समय निर्णायक मोड़ भी जरूरी है।’’ उन्होंने उस समय स्पष्ट किया था कि यथास्थिति को तोड़ना आवश्यक हो गया है। नई कल्पना, नया स्वप्न, तकनीक, आर्थिक परिदृश्य, साहित्य, भाषा के समग्र परिवर्तन को देखते हुए इस प्रकार का निर्णय लेना जरूरी हो गया था। ज्ञानरंजन ने तब कहा था कि इस अंधेरे समय में न्यू राइटिंग को पहचानना जरूरी हो गया है, लेकिन ऐसा नहीं करना भी बेईमानी होगी। ज्ञानरंजन कहते हैं कि विकास की चुनौती और शीर्ष पर पहल को बंद करने का निर्णय एक दुखद सच्चाई है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार का निर्णय लेना भी एक कठिन कार्य है।

ज्ञानरंजन ने पहल के पुनर्प्रकाशन की घोषणा pahal2012.wordpress.com ब्लाग के माध्यम से की। शुरुआती तौर पर पाठकों से संवाद होगा। ब्लाग में दो पहल संवाद जारी हो चुके हैं। अब पहल के प्रकाशन में प्रसिद्ध पत्रकार राजकुमार केशवानी भी सहयोग करेंगे। जबलपुर में ज्ञानरंजन ने बातचीत में कहा कि पहल में सरकारी विज्ञापन बिलकुल नहीं छापे जाएंगे। तीन माह तक जमीनी काम किया जाएगा और फिर पत्रिका का प्रकाशन होगा। पत्रिका के प्रकाशन तक ब्लाग के माध्यम से पाठकों से संवाद होगा। पहल को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए वेबसाइट का भी उपयोग होगा। 
ज्ञानरंजन को पहल के संबंध में प्रतिक्रियाएं देने के लिए इन ईमेलों पर सम्पर्क किया जा सकता है-  gyanranjanpahal@gmail.com, rkpahal2@gmail.com

शनिवार, 21 जुलाई 2012

ज्ञानरंजन की पहल फिर निकलेगी

ज्ञानरंजन ने पहल का प्रकाशन पुन: करने की घोषणा 20 जुलाई को पहल के ब्लाग से की। http://pahal2012.wordpress.com में ज्ञानरंजन की घोषणा यहां ज्यों की त्यों प्रस्तुत है-

मित्रों,

‘पहल’ को स्थगित हुए लगभग तीन वर्ष हो रहे हैं. पैंतीस वर्ष की यात्रा के बाद बहुतेरी कठिनाइयों के कारण ‘पहल’ का प्रकाशन अकस्मात बंद हो गया था. इसकी प्रतिक्रिया विविध थी. कुछ स्तब्ध थे और कुछ निर्णय से सहमत थे. कुछ लोग ख़ुश भी थे और कुछ ने इसे विवादास्पद बनाने का प्रयास भी किया.
‘पहल’ के साथ पूरे देश में, विभिन भाषाओं के रचनाकारों का एक बड़ा समूह भी तैयार हुआ था और उन्होने हर प्रकार से इस पत्रिका को अपनाया. इसके बावजूद ‘पहल’ को निरंतर, उसके प्रकाशित रूप में जारी करते रहने का औचित्य कम हो रहा था. उसको बदलना, उसमे नयी सांस्कृतिक, साहित्यिक बहसों को शामिल करना और नयी रचनावली की खोज करना ज़रूरी हो गया था. उसकी वैचारिक रीढ़ को भी मज़बूत करना आवश्यक था और नयी स्वीकृतियों के साथ हमे गहरी मुठभेड़ भी करनी थी.
कुछ लोगों की इछा थी कि ‘पहल’ निकले पर यह इतना सरल नहीं था और न है. अनगिनत पत्रिकाएं निकल रही हैं  और उनमे से कुछ ही हैं जो अपनी सृजनात्मक भूमिका का निर्वाह कर रही हैं. अधिकांश उस बेचैनी पर निगाह नहीं रखतीं जो घनघोर सांस्कृतिक विभिन्नता और पतनशीलता के कारण हमारी नई दुनिया में बढ़ती जा रही है. फलस्वरूप, हमारी राह कठिन है.
हम ‘पहल’ को फिर से प्रकाश में लाने के लिये एक नया ढांचा बना रहे हैं, कार्य विभाजन कर रहे हैं, सामूहिकता को प्रोत्साहित कर रहे हैं और साहित्य के अलावा कलाओं के दूसरे संसार में भी प्रवेश करने का प्रयास कर रहे हैं. यह चुनौतीपूर्ण है और अकेले दम का नहीं है. इसमे स्वप्न और विचार की ठोस पहल और और एक बड़े साथी-संसार की ज़रूरत है.
‘पहल’ के बारे में हम अपने इस ब्लाग पर संवाद करते रहेंगे और सुझावों का स्वागत करेंगे. ‘पहल’ को नये सिरे प्रकाशित होने में अभी समय लगेगा. ‘पहल; की इस पारी में मेरे साथ संपादन सहयोग के लिये कवि, कथाकार, विख्यात पत्रकार, और स्तंभ लेखक राजकुमार केसवानी जुड़ रहे हैं. हम मिलकर ‘पहल’ की एक ताज़ादम और सृजनात्मक दुनिया बनाने का प्रयास करेंगे.
आगामी बातें भी होती रहेंगी.
ज्ञानरंजन

🔴इतिहास के कुहासे की परतों में ओझल होता ब्लेगडान

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