शुक्रवार, 14 मार्च 2008

क्योंकि रावण मुस्करा रहा है

ओलंपिक क्वालीफाईंग हॉकी प्रतियोगिता में भारत की पराजय के पश्चात खेलों को लेकर पूरे देश में अपने-अपने तरीके से विश्लेषण किए जा रहे हैं। कोई स्कूली शिक्षा को दोष दे रहा है, तो कोई बुनियादी सुविधाओं को इसके लिए जिम्मेदार मान रहा है। मुझे लगता है कि सबसे बड़ी समस्या खेल मैदानों की है। सभी बच्चे खेलना चाहते हैं, लेकिन खेलें कहाँ ? बच्चों के खेलने के लिए जबलपुर में जगह बची नहीं है। जो बच्चे खेलकूद रहे हैं, वे दुनिया के सबसे खुशकिस्मत बच्चे हैं। जो बच्चे खेल नहीं पाते हैं, इसके पीछे के कारणों को इंगित कर यह कविता प्रस्तुत है-

बारिश खत्म, दशहरे की छुट्टियां, बच्चों में उमंग है
धर्म की पताका फहराने की तैयारी है
रावण मुस्करा कर देख रहा
खेल के मैदान में सचिन-सौरव को खिलते हुए।


हर बच्चे का सपना है
देश के खिलाड़ी बनने का
राम-सीता की दुहाई है,
परम्परा है
खेल के मैदान में ही जलता है रावण
यही है खेल के मैदानों का अब दस्तूर
मैदानों से होती है राजनीति
नेताओं के भाषण
धर्मगुरुओं के प्रवचन
आधुनिक मैनेजमेंट गुरुओं के व्याख्यान
फिल्मी सितारों के नाच-गाने
खेल संघों के चुनाव
नुमाइश और मेले
औद्योगीकरण और उन्नति के वायदे
कला और संस्कृति का उत्थान
सिर्फ नहीं होते हैं, तो खेल और उसके आयोजन
क्योंकि रावण खड़ा मुस्करा रहा है
खेल के मैदान में।


रावण भी जानता है
खेल के मैदान में क्या होना चाहिए
क्या नहीं होना चाहिए
सबसे बड़ी दिक्कत है,
रावण ही हमको
खेलते हुए देखना नहीं चाहता
मजबूरन कोर्ट-कचहरी
खेल के मैदान में खेल क्यों नहीं ?
विश्व विजेता बनने का सपना
भरभरा जाता है
क्योंकि अदालत में भी रावण मुस्करा रहा है।

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