"नहीं हो सका पत्थर मैं बावज़ूद चौतरफा दबावों के,
इसीलिये इस तथाकथित विकास-युग में पीछे खड़ा हूं।"
विकास परिहार के ब्लॉग 'स्वसंवाद' खोलते हुए उसकी तस्वीर के साथ उपर्युक्त पंक्ति भी पथरा गई है। विकास का 18 जुलाई को भोपाल के नजदीक मिसरौद में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। उसके साथ जबलपुर निवासी भास्कर टीवी में कार्यरत संकल्प शुक्ला भी था। दोनों को बचाया नहीं जा सका। जबलपुर में दुर्घटना की जानकारी मिलते ही दोनों को जानने॑-पहचानने वाले सभी लोग दुखी हो गए।
विकास मूलत: जबलपुर के रहने वाले नहीं थे, लेकिन उसने काफी कम समय में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली थी। उसने कुछ समय नेवी में भी नौकरी की थी। साहित्य और पत्रकारिता का कीड़ा, उसे जबलपुर ले आया। अपनी संवेदनशीलता, ज्ञानशीलता और निडरता के कारण वह जल्दी लोकप्रिय हो गया। विकास ने पत्रकारिता कोर्स करते हुए कालेज प्रबंधन की गड़बड़ियों का खुलासा कर निडरतापूर्वक विरोध दर्ज कराया। पत्रकारिता का कोर्स पूर्ण करने के पश्चात उसने जबलपुर के सांध्य दैनिक यश भारत से शुरूआत की। कुछ ही समय बाद विकास ने नई दुनिया ज्वाइन कर लिया। नई दुनिया में प्रविष्ट होने के लिए उसने काफी जद्दोजहद की थी। यह बात मुझे नई दुनिया के तत्कालीन संपादक राजीव मित्तल ने उस बताई, जब मैंने उन्हें विकास के आकस्मिक निधन की खबर दी। राजीव मित्तल वर्तमान में मेरठ से प्रकाशित हिंदुस्तान के स्थानीय संपादक हैं। उन्होंने कहा कि विकास परिहार जैसे लोग आज के युग में बिरले ही होते हैं। राजीव मित्तल ने माना कि विकास में एक अच्छे पत्रकार के साथ उत्कृष्ट साहित्यकार होने के पूरे गुण थे। वह संभावनापूर्ण कवि था।
विकास ने एफएम रेडियो के शुरू होते ही नई दुनिया को छोड़ एस एफएम ज्वाइन कर लिया। दरअसल वह महत्वाकांक्षी और बैचेन नवयुवक था। राजगढ़ के राघौगढ़ के रहने वाले विकास के लिए जबलपुर मंजिल नहीं थी। वह शिखरों को छूना चाहता था। रेडियो में भी उसने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। जब-जब विकास को मौका मिला, उसने ठेठ फिल्मी संगीत के बीच में कविता और साहित्य के लिए गुंजाइश निकाली। शिखरों को छूने के लिए उसने एस एफएम की नौकरी को भी जल्द छोड़ कर दिल्ली का रूख किया। मंदी के दौर में उसे दिल्ली में ठौर ठिकाना नहीं मिला। उसके ब्लॉग स्वसंवाद, इस हम्माम में सब......! और World of Words से उसकी रचनाधर्मिता की जानकारी समय-समय पर मिलती रहती थी। एक दिन उसके एसएमएस से जानकारी मिली कि वह भोपाल आ गया है और पीएससी की परीक्षा की तैयारी कर रहा है। इस वर्ष उसने पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली थी और मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहा था।
विकास परिहार को जबलपुर में जितने लोग भी पहचानते थे, उन सभी के लिए उसके अलग-अलग रूप थे। किसी के लिए वह पत्रकार था, तो किसी के लिए रेडियो जाकी, तो किसी के लिए एक्स नेवी मेन, तो किसी के लिए ब्लागर, तो किसी के लिए कवि, तो किसी के लिए टेक्नीशियन। उसके रूप तो अलग थे, लेकिन सबके लिए उसका एक रूप था दोस्ती और आत्मीयता का। विकास ने मेरी जितनी भी ब्लाग यात्रा है, उसमें तकनीकी रूप से भरपूर मदद की। महज 27-28 वर्ष की आयु होने के बावजूद उसमें साहित्य और कला की समझ काफी थी। प्रसिद्ध साहित्यकार और पहल के संपादक ज्ञानरंजन के पास उसने किताब पढ़ने के शौक के कारण जाना शुरू किया था। ज्ञानरंजन भी उसकी पाठ-पठन की आदत के कारण पसंद करते थे। मुझे याद है कि ज्ञानरंजन ने लगभग 6 महीने पहले विकास के संदर्भ में कहा था कि इस दशक में इतना पढ़ने-लिखने वाला व्यक्ति नहीं देखा। ज्ञानरंजन भी विकास को धीमे-धीमे आगे बढ़ने की सलाह देते थे, लेकिन किसी को आभास नहीं था कि वह इतनी तेजी से चलेगा कि इस दुनिया को छोड़ कर ही चला जाएगा।
विकास को जबलपुर के सभी ब्लॉगरों की ओर से श्रद्धांजलि।
इसीलिये इस तथाकथित विकास-युग में पीछे खड़ा हूं।"
विकास परिहार के ब्लॉग 'स्वसंवाद' खोलते हुए उसकी तस्वीर के साथ उपर्युक्त पंक्ति भी पथरा गई है। विकास का 18 जुलाई को भोपाल के नजदीक मिसरौद में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। उसके साथ जबलपुर निवासी भास्कर टीवी में कार्यरत संकल्प शुक्ला भी था। दोनों को बचाया नहीं जा सका। जबलपुर में दुर्घटना की जानकारी मिलते ही दोनों को जानने॑-पहचानने वाले सभी लोग दुखी हो गए।
विकास मूलत: जबलपुर के रहने वाले नहीं थे, लेकिन उसने काफी कम समय में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली थी। उसने कुछ समय नेवी में भी नौकरी की थी। साहित्य और पत्रकारिता का कीड़ा, उसे जबलपुर ले आया। अपनी संवेदनशीलता, ज्ञानशीलता और निडरता के कारण वह जल्दी लोकप्रिय हो गया। विकास ने पत्रकारिता कोर्स करते हुए कालेज प्रबंधन की गड़बड़ियों का खुलासा कर निडरतापूर्वक विरोध दर्ज कराया। पत्रकारिता का कोर्स पूर्ण करने के पश्चात उसने जबलपुर के सांध्य दैनिक यश भारत से शुरूआत की। कुछ ही समय बाद विकास ने नई दुनिया ज्वाइन कर लिया। नई दुनिया में प्रविष्ट होने के लिए उसने काफी जद्दोजहद की थी। यह बात मुझे नई दुनिया के तत्कालीन संपादक राजीव मित्तल ने उस बताई, जब मैंने उन्हें विकास के आकस्मिक निधन की खबर दी। राजीव मित्तल वर्तमान में मेरठ से प्रकाशित हिंदुस्तान के स्थानीय संपादक हैं। उन्होंने कहा कि विकास परिहार जैसे लोग आज के युग में बिरले ही होते हैं। राजीव मित्तल ने माना कि विकास में एक अच्छे पत्रकार के साथ उत्कृष्ट साहित्यकार होने के पूरे गुण थे। वह संभावनापूर्ण कवि था।
विकास ने एफएम रेडियो के शुरू होते ही नई दुनिया को छोड़ एस एफएम ज्वाइन कर लिया। दरअसल वह महत्वाकांक्षी और बैचेन नवयुवक था। राजगढ़ के राघौगढ़ के रहने वाले विकास के लिए जबलपुर मंजिल नहीं थी। वह शिखरों को छूना चाहता था। रेडियो में भी उसने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। जब-जब विकास को मौका मिला, उसने ठेठ फिल्मी संगीत के बीच में कविता और साहित्य के लिए गुंजाइश निकाली। शिखरों को छूने के लिए उसने एस एफएम की नौकरी को भी जल्द छोड़ कर दिल्ली का रूख किया। मंदी के दौर में उसे दिल्ली में ठौर ठिकाना नहीं मिला। उसके ब्लॉग स्वसंवाद, इस हम्माम में सब......! और World of Words से उसकी रचनाधर्मिता की जानकारी समय-समय पर मिलती रहती थी। एक दिन उसके एसएमएस से जानकारी मिली कि वह भोपाल आ गया है और पीएससी की परीक्षा की तैयारी कर रहा है। इस वर्ष उसने पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली थी और मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहा था।
विकास परिहार को जबलपुर में जितने लोग भी पहचानते थे, उन सभी के लिए उसके अलग-अलग रूप थे। किसी के लिए वह पत्रकार था, तो किसी के लिए रेडियो जाकी, तो किसी के लिए एक्स नेवी मेन, तो किसी के लिए ब्लागर, तो किसी के लिए कवि, तो किसी के लिए टेक्नीशियन। उसके रूप तो अलग थे, लेकिन सबके लिए उसका एक रूप था दोस्ती और आत्मीयता का। विकास ने मेरी जितनी भी ब्लाग यात्रा है, उसमें तकनीकी रूप से भरपूर मदद की। महज 27-28 वर्ष की आयु होने के बावजूद उसमें साहित्य और कला की समझ काफी थी। प्रसिद्ध साहित्यकार और पहल के संपादक ज्ञानरंजन के पास उसने किताब पढ़ने के शौक के कारण जाना शुरू किया था। ज्ञानरंजन भी उसकी पाठ-पठन की आदत के कारण पसंद करते थे। मुझे याद है कि ज्ञानरंजन ने लगभग 6 महीने पहले विकास के संदर्भ में कहा था कि इस दशक में इतना पढ़ने-लिखने वाला व्यक्ति नहीं देखा। ज्ञानरंजन भी विकास को धीमे-धीमे आगे बढ़ने की सलाह देते थे, लेकिन किसी को आभास नहीं था कि वह इतनी तेजी से चलेगा कि इस दुनिया को छोड़ कर ही चला जाएगा।
विकास को जबलपुर के सभी ब्लॉगरों की ओर से श्रद्धांजलि।
21 टिप्पणियां:
vikas ke is khabar se man aahat hai aur dukhi bhi ... bhagwaan inke aatma ko shaanti de aur inke parivaar ko is ghor sankat se nikalane ke liye shakti...
shradhaanjali arpit karta hun naman hai inhe..
arsh
विश्वास करने योग्य नहीं ...बेहद दुखदायी...पिछले कुछ दिनों से ऐसी अशुभ खबरों से मन व्यथित हो चला है..असामयिक निधाद ..ज्यादा तकलीफदेह होता है..इश्वर उनके परिवारजनों को शक्ति दे .
Very sad ,My heart felt tributes !
As he existe no more he ceases to resist -! Oh !
ये कौन सी खबर सुना दी आपने .. कुछ दिनों से इस तरह की कितनी खबरें सुनने को मिली .. इसमें यह सबसे हृदयविदारक रही .. ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दे !!
अब तक विश्वास नहीं होता पंकज भाई. इसी यात्रा के दौरान उससे चर्चा भी हुई थी.
क्या कहा जाये!!
विनम्र श्रृद्धांजलि!!
बहुत दुःखद समाचार!
विनम्र श्रद्धांजलि!
सचमुच विश्वास ही नहीं होता करीब दो माह पूर्व मेरी उनसे बात हुई थी और माय एफ.एम में नौकरी के बारे में . मुझे उन्होंने बताया था की उन्होंने नौकरी छोड़ दी है और अब वे सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे है . अचानक जब समाचार पत्रों में पढ़ा की उनका निधन हो गया है तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ . वे ऑरकुट में मेरे मित्र थे . ब्लागर मीट के बारे में भी उनसे बात भी हुई थी . ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे. ॐ शांति ॐ .
विनम्र श्रृद्धांजलि!!
vinamr shradhaanjali, behad dukh dene waali khabar hai. ek yuva aur utsahi saathi ko vinamr shradhaanjal.
मन बेहद दुखी है जाने से विकास के।
jite ji jo pathar na ho saka
duniya chodte hi aasman ka tara ho gaya
jab bhi koi bechain nojawan najar aayga
vikas aasman mai talasege tumhe
मेरा बस इतना निवेदन है कि कृपया उन पत्रकारों के लिए का उपयोग किये गए "था" कि जगह "थे" शब्द का उपयोग हो तो ज्यादा अच्छा रहेगा .........................मुझे विश्वास है कि ये आप इस संशोधन को स्वीकार करेंगे
विकास की असली विकास यत्रा तो ज्ञानरंजन जी के सम्पर्क में आने पर शुरू हुई थी वह इतनी जल्दी हमें छोड्कर चला जायेगा किसे पता था . मन बहुत भारी है . क्या कहूँ ..
अफ़सोस है। विकास और उनके साथी को मेरा श्रद्धांजलि!
dukhad..bhagwan unki aatma ko santi de.
ईश्वर विकास और संजय के परिजनो को दुखः सहने की शक्ति दे।मेरी विनम श्रद्धांजलि।
भाई पंकज जी ने दुर्घटना की ही रात जब मुझे विकास परिहार जी के निधन की सूचना दी तो मुझे एकाएक विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि विकास अब हमारे बीच नहीं हैं. विकास जबलपुर में जब तक रहे उनसे दूरभाष और व्यक्तिगत मुलाक़ात होती रही. एस ऍफ़ एम् रेडियो में रहते हुए भी स्टूडियो से किसी न किसी बहाने उनके फोन मेरे पास आते रहते थे.
मेरे जन्म दिवस पर उनकी उपस्थिति और आयोजित काव्य गोष्ठी में उनकी ओजस्वी कविता मेरे लिए चिर स्मरणीय पल रहेंगे. उनसे मेरी जब भी मुलाक़ात हुई उन्हें मैंने सदैव प्रसन्नचित्त और सहृदयी पाया. उनसे साहित्य और ब्लॉग जगत को काफी उम्मीदें थीं.
हमारी विकास जी और संकल्प शुक्ला जी को विनम्र श्रद्धांजली....
- विजय तिवारी " किसलय "
पंकज जी,
विकास का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है, हम दोनों पिछले चार वर्षों से एक साथ ही थे,
sfm में भी हम दोनों साथ में तफरीह जंक्शन शो करते थे. जिस दिन से ये दुखद सूचना मिली है उस दिन से मन बहुत दुखी है और रह-रह कर तकलीफ होती है. आपने यश भारत के माध्यम से शहर को "विकास" से अवगत कराया उसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद लेकिन वो जिस रेडियो में था, उसमें उसके लिए मैं कुछ नहीं कर पाया इसलिए क्षमा चाहता हूँ. समय मिले तो "विकास" के बारे ज़रूर पढियेगा, i m pasting link here>>
http://bechaini.blogspot.com/2009/07/bye.html
विकास मुंबई से आने के बाद कई दिनों तक मेरे घर में रहा बाद में संसथान का छात्र बना वो एक पारे की तरह था हिलता हुआ सदैव ...दिवंगत होने के बाद उसकी आत्मा की शांति की प्राथना करता हूँ ....हलाकि जिसे आलेख में निडरता कहा जा रहा है वह दुस्प्रेरण था इस नगर के कथित पचे हुए बुधिजिवियो का जो महज महत्व की चाह में नौजवानों को बेवजह दिशा देने लग जाते है बाद में जिम्मेदारी तय होने के भय से आँख भी चुराते है .......उसकी प्रतिभा को आकार देने को मेरी टीम को मौका मिला था ...जिस लडाई की शुरुआत विकास ने की थी उसे वैधानिक स्तर पर पहुचने का काम संसथान ने ही किया है .....ये वो लडाई है जो एक विश्विद्यालय को लेकर है जिसके निरिक्चन दल में नगर के कई रहनुमा शामिल होते रहते है .... विकास का हमारे बीच न होना किसी बिंदु पर सबका नुक्सान है
hamari shradhanjali.
बहुत बुरी खबर है ... विकास का जाना.मेरा उनसे कोई परिचय नहीं रहा.. पर स्वसंवाद पर जाना हुआ था और वहां लिखी पंक्ति "i resist therefore I exist" ने ध्यान खींचा ...और इस ब्लॉग के लेखन ने भी.तब मैं नहीं जानती थी कि विकास नही रहे .अब ब्लॉग खोलना और यह ख़याल आना कि अब इस ब्लॉग में आगे कुछ नही लिखा जायेगा ..कभी भी ..पीड़ादायक है.जब मित्र जीवित होते हैं उनके जाने की कल्पना तक नहीं हो पाती,लेकिन यह सच है कि जीवन है और मृत्यु भी है ही .श्रद्धांजलि विकास के लिए जिन्हें ज़िंदगी अगर मौके बख्शती तो वे दुनिया को कितने तोहफेदेते.
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