वह उम्र जिसमें बच्चे मां-बाप की अंगुली थामकर चलना सीखते हैं, उस उम्र में कुछ मासूम चंद सिक्कों की खातिर दिन भर जबलपुर के तिलवाराघाट की खाक छानते रहते हैं। तिलवाराघाट नर्मदा नदी के एक प्रसिद्ध घाट के रूप में पहचाना जाता है। अपनी जान जोखिम में डालकर ये बच्चे रस्सी में चुम्बक बांधकर उन सिक्कों की तलाश में अपना बचपन गंवा रहे हैं, जिन्हें श्रद्धालु आस्था में घाट में फेकते हैं। मासूमों को इस उम्र में कमाई के लिए भेज देने वाले अभिभावकों के साथ लगता है प्रशासन और पुलिस को भी कोई सरोकार नहीं है। बच्चे स्वयं बताते हैं कि आज तक उन्हें इस कार्य करने से किसी ने नहीं रोका।
कभी-कभी कुछ नहीं मिलता
तिलवाराघाट के पास ही रहने वाले 8 वर्षीय प्रकाश बर्मन, 7 वर्षीय सागर, संदीप, सन्नी और अन्य बच्चों ने बताया कि अब उन्हें यह काम अच्छा लगने लगा है। उन्होंने बताया कि कभी-कभी तो उन्हें कुछ सिक्के मिल जाते हैं, जबकि कभी-कभी एक भी सिक्का नहीं मिलता। कुछ बच्चों ने बताया कि वे अपनी खुशी से आते हैं, जबकि कुछ ने बताया कि उनके माता-पिता उन्हें यहां भेजते हैं। बच्चों का बचपन किस हद तक खत्म हो चुका है, इसकी बानगी तब सामने आई, जब बातचीत के दौरान बच्चों ने कहा- "भइया हम जाएं क्या ?"
कौन छीन रहा बचपन ?
आसपास के संभ्रांत नागरिकों के साथ बुद्धिजीवियों ने स्वीकारा कि इन मासूमों का बचपन चंद सिक्कों की खातिर खत्म हो रहा है, लेकिन उनका कहना कि इन मासूमों से बचपन छीनने में अभिभावकों के साथ-साथ कहीं न कहीं प्रशासन भी जिम्मेवार है।
# (नितिन पटेल दैनिक भास्कर जबलपुर में रिपोर्टर हैं)
2 टिप्पणियां:
bahut sahi post. prashasan or janapratinidhi dono samaan rup se jummedaar hai . abhaar.
mahendra mishra
jabalapur.
Vishay sahee uthaya
maine billore je ke
blog pe bhedaghat ke bachchon ke baare men pada hai
aapake shahar ke neta patrakar
bachapan bachao andolan vale so rahe hain.........?
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