जबलपुर में दिनों प्रो. रवि सिन्हा ने प्रगतिशील लेखक संघ की स्थानीय इकाई के तत्वावधान में आयोजित 21 वीं सदी में नया समाजवाद विषय पर व्याख्यान दिया। प्रो. सिन्हा ने अमेरिका से फिजिक्स विषय में डॉक्टरेट की है और काफी वर्षों तक उन्होंने वहां अध्यापन कार्य भी किया है। उनकी ख्याति विज्ञान के विभिन्न सिद्धांतों और तथ्यों को व्याख्यानों के माध्यम से सरलता से समझाने के लिए रही है। रवि सिन्हा कई वर्षों से समाजवाद और उसके प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। उनकी समाजवाद विषयक व्याख्यान श्रंखला भी बहुत प्रसिद्ध हुई है। इसी श्रंखला के तहत् वे जबलपुर आए।
रवि सिन्हा के वक्तव्य में समाजवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए इस सदी में समाजवाद के संदर्भ और भविष्य को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि कार्ल मार्क्स को आज फिर से पढ़ने की जरुरत है और उन्हें 21 वीं सदी के अनुकूल ही पढ़ना चाहिए। समाज में जो मनुष्य उपलब्ध है, उसके आधार पर ही समाजवाद का निर्माण किया जा सकता है। रवि सिन्हा ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया कि 20 वीं सदी का समाजवाद भविष्य के समाजवाद का मॉडल नहीं हो सकता।
रवि सिन्हा ने कहा कि समाजवाद का विषय पुराना है, लेकिन संदर्भ नया व कठिन है। उन्होंने कहा कि दलों और नेताओं में विचारों की अस्पष्टता के कारण समाजवाद विघटित हुआ है। इसके लिए उन्होंने आत्मगत शक्तियों को जिम्मेदार ठहराया। प्रो. सिन्हा ने कहा कि क्रांतियां-राजशाही, सामंतवाद और औपनिवेशवाद में हुईं हैं। क्रांति होने के निश्चित कारण थे। जहां क्रांतियां हुईं, वहां समाजवाद बनाना मुश्किल था और जहां नहीं हुईं वहां समाजवाद बनाना आसान था। उन्होंने कहा कि 20 वीं सदी का समाजवाद पिछड़े समाजों में हुआ। इसे प्रो. सिन्हा ने आपातकालीन समाजवाद बताया। उन्होंने कहा कि पूंजीवाद ही अंतिम व्यवस्था नहीं है। उन्होंने आशा जताई कि सफलताओं और असफलताओं की सीख से नया मॉडल विकसित होगा। रवि सिन्हा ने अलबत्ता नए मॉडल की अवधारणा या स्वरुप का कोई खाका नहीं खींचा।
रवि सिन्हा के व्याख्यान के समय जबलपुर के कई बुद्धिजीवी, सांस्कृतिककर्मी, विद्यार्थी और एक्टिविस्ट उपस्थित थे। इनमें से कई व्याख्यान के पूर्व इस आशंका से ग्रस्त थे कि रवि सिन्हा अमेरिका में कई सालों से रह रहे हैं, इसलिए वे समाजवाद और साम्यवाद के खिलाफ बोलेंगे। व्याख्यान के पश्चात् उनकी आशंकाएं निर्मूल रहीं। वैसे कुछ लोग उनके विचारों से सहमत तो, कुछ असहमत दिखे। विद्यार्थी और युवाओं के लिए उनका व्याख्यान सुनना एक अनुभव की तरह रहा, क्योंकि ऐसे लोगों के लिए समाजवाद गुजरे जमाने की बात की तरह था। रवि सिन्हा के उदगार के पश्चात् निश्चित ही इस वर्ग को यह विश्वास अवश्य हुआ है कि भू-मंडलीकरण में भी समाजवाद प्रासंगिक रहेगा।
रवि सिन्हा के वक्तव्य में समाजवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए इस सदी में समाजवाद के संदर्भ और भविष्य को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि कार्ल मार्क्स को आज फिर से पढ़ने की जरुरत है और उन्हें 21 वीं सदी के अनुकूल ही पढ़ना चाहिए। समाज में जो मनुष्य उपलब्ध है, उसके आधार पर ही समाजवाद का निर्माण किया जा सकता है। रवि सिन्हा ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया कि 20 वीं सदी का समाजवाद भविष्य के समाजवाद का मॉडल नहीं हो सकता।
रवि सिन्हा ने कहा कि समाजवाद का विषय पुराना है, लेकिन संदर्भ नया व कठिन है। उन्होंने कहा कि दलों और नेताओं में विचारों की अस्पष्टता के कारण समाजवाद विघटित हुआ है। इसके लिए उन्होंने आत्मगत शक्तियों को जिम्मेदार ठहराया। प्रो. सिन्हा ने कहा कि क्रांतियां-राजशाही, सामंतवाद और औपनिवेशवाद में हुईं हैं। क्रांति होने के निश्चित कारण थे। जहां क्रांतियां हुईं, वहां समाजवाद बनाना मुश्किल था और जहां नहीं हुईं वहां समाजवाद बनाना आसान था। उन्होंने कहा कि 20 वीं सदी का समाजवाद पिछड़े समाजों में हुआ। इसे प्रो. सिन्हा ने आपातकालीन समाजवाद बताया। उन्होंने कहा कि पूंजीवाद ही अंतिम व्यवस्था नहीं है। उन्होंने आशा जताई कि सफलताओं और असफलताओं की सीख से नया मॉडल विकसित होगा। रवि सिन्हा ने अलबत्ता नए मॉडल की अवधारणा या स्वरुप का कोई खाका नहीं खींचा।
रवि सिन्हा के व्याख्यान के समय जबलपुर के कई बुद्धिजीवी, सांस्कृतिककर्मी, विद्यार्थी और एक्टिविस्ट उपस्थित थे। इनमें से कई व्याख्यान के पूर्व इस आशंका से ग्रस्त थे कि रवि सिन्हा अमेरिका में कई सालों से रह रहे हैं, इसलिए वे समाजवाद और साम्यवाद के खिलाफ बोलेंगे। व्याख्यान के पश्चात् उनकी आशंकाएं निर्मूल रहीं। वैसे कुछ लोग उनके विचारों से सहमत तो, कुछ असहमत दिखे। विद्यार्थी और युवाओं के लिए उनका व्याख्यान सुनना एक अनुभव की तरह रहा, क्योंकि ऐसे लोगों के लिए समाजवाद गुजरे जमाने की बात की तरह था। रवि सिन्हा के उदगार के पश्चात् निश्चित ही इस वर्ग को यह विश्वास अवश्य हुआ है कि भू-मंडलीकरण में भी समाजवाद प्रासंगिक रहेगा।
3 टिप्पणियां:
रवि सिन्हा के विचारो से सहमत हूँ कि कालमार्क्स को २१वी सदी के अनुरूप पढ़ना चाहिए . बहुत बहुत धन्यवाद आपको जो अपने रवि सिन्हा के विचारो को सभी के सामने रखा
आत्मगत शक्तियो की वजह से विघटन हुआ। विचारो की अस्पष्टता की बात थोडी जँची नही। उन्हे अमरिकी मान मै भी पूर्वाग्रह से ग्रसित था,हाँलाकि विषय के अनुरुप २१ वीं सदीं में समाजवाद के उनके माँडल का इंतजार करते रहें पर वो सबसे कम इसी पर बोले।बहरहाल एसे आयोजन,चिंतन,वार्ता और हों।आपको बहुत धन्यवाद!
एसे आयोजन जारी रखें,प्रगतिशील लेखक संघ को बधाई! रिपोर्ट के लिए धन्यवाद!
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