मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

विचारोत्तेजक प्रस्तुतियों के कारण याद रखा जाएगा विवेचना नाट्य समारोह


जबलपुर में विवेचना 15 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह छह नाटकों के मंचन के साथ ही कुछ समकालीन सवालों के साथ समाप्त हो गया। इस बार के नाट्य समारोह में मुंबई की अरण्य ने शक्कर के पांच दाने व इलहाम, नई दिल्ली की अस्मिता ने अनसुनी व आपरेशन थ्री स्टार और भोपाल के नट बुंदेले ने चारपाई और विवेचना ने सूपना का सपना नाटक की प्रस्तुति की। पिछले 15 वर्षों में विवेचना का प्रत्येक नाट्य समारोह किसी न किसी विशेषता के कारण पहचाना जाता रहा है। कभी संगीतमयी प्रस्तुति के कारण, तो कभी महिला संबंधी मुद्दों के कारण और कभी मुंबई के हास्य नाटकों के मंचन के कारण। इस बार के नाट्य समारोह में गंभीर, दुखद और समकालीन विषयों पर आधारित नाटकों के मंचन से इसे विचारोत्तेजक प्रस्तुतियों के कारण याद रखा जाएगा।
नाट्य समारोह के छह नाटकों को देखने दर्शक तो खूब आए, लेकिन कुछ प्रस्तुतियां ऐसी रहीं जो उन्हें प्रभावित नहीं कर पाईं। इसका सबसे बड़ा कारण नाटकों के दार्शनिक विषय थे। इनमें मुंबई की अरण्य रंग संस्था के शक्कर के पांच दाने और इलहाम जैसे नाटक थे। इन प्रस्तुतियों को देख कर महसूस हुआ कि दर्शकों को यदि रंगमंच से जोड़ना है, तो उनकी पसंद को भी ध्यान में रखा जाए। इस संदर्भ में अरण्य के निर्देशक मानव कौल का कहना था कि वे दर्शकों की चिंता नहीं करते हैं। यह भी सच्चाई है कि वे चिंता नहीं करेंगे तो उनकी प्रस्तुतियों से धीरे- धीरे दर्शक दूर होते जाएंगे। वैसे मानव कौल की दोनों प्रस्तुतियों शक्कर के पांच दाने और इलहाम में विषय का दोहराव भी दिखा। उनके विषय व दर्शन जटिल थे, इसलिए दर्शक उसे समझ नहीं पाए। इस संबंध में विवेचना के आयोजकों का कहना है कि वे रिपोर्ट के आधार पर रंग संस्थाओं को नाट्य प्रस्तुति के कारण आमंत्रित करते हैं। कुछ प्रस्तुतियां महानगरों के दर्शकों को प्रभावित करती हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वे जबलपुर जैसे शहर के नाट्य प्रेमियों को भी पसंद आए।
नई दिल्ली की अस्मिता और उसके निर्देशक अरविंद गौड़ की जबलपुर के रंगमंच दर्शकों में प्रतिष्ठा है। इसी प्रतिष्ठा के कारण उन्हें यहां बार-बार आमंत्रित किया जाता है। विवेचना नाट्य समारोह में वे छठी बार आमंत्रित किए गए। उनके नाटक अपने समकालीन संदर्भ और बेहतर प्रस्तुतियों के कारण हर समय पसंद किए जाते हैं और उन्हें लंबे समय तक याद भी किया जाता है। इस बार के नाट्य समारोह में सामाजिक व राजनैतिक विषयों पर आधारित उनकी दोनों प्रस्तुतियों अनसुनी और आपरेशन थ्री स्टार ने दर्शकों को गहराई तक प्रभावित किया। नाटकों की समाप्ति के पश्चात् अरविंद गौड़ ने दर्शकों से सीधा संवाद कर प्रस्तुतियों के संदेश को सम्प्रेषित करने का प्रयास किया। इससे दर्शक काफी हद तक संतुष्ट भी हुए।
भोपाल के नट बुंदेले ने अलखनंदन के निर्देशन में चारपाई को प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति की भी दर्शकों में मिली-जुली प्रतिक्रिया रही। शक्कर के पांच दाने और इलहाम की दार्शनिकता के पश्चात् चारपाई में संयुक्त परिवार की संवादहीनता और आम भारतीय निम्नवर्गीय परिवार की समस्या ने दर्शकों को उद्वेलित तो किया, लेकिन मनोरंजन तत्व की कमी से वह व्यथित भी हुआ।
नाट्य समारोह की अंतिम नाट्य प्रस्तुति मेजबान विवेचना की सूपना का सपना रही। शाहिद अनवर लिखित इस नाटक को बसंत काशीकर ने निर्देशित किया। गंभीर विषय में मनोरंजन के तत्वों (लोक नाट्य) को शामिल कर उन्होंने दर्शकों को बांधने का पूरा प्रयास किया। यहां उन्हें ध्यान देना होगा कि उनकी सीमा जबलपुर नहीं है, बल्कि यहां से बाहर जब वे अपनी प्रस्तुति को ले कर बाहर जाएंगे, तब उसका विश्लेषण दर्शक अपने स्तर से करेंगे।

जबलपुर की पहचान ‘पहल’ को 35 वर्षों के पश्चात् बंद करने का निर्णय



हिंदी साहित्य जगत की अनिवार्य पत्रिका के रूप में मान्य पहल को उसके संपादक ज्ञानरंजन ने 35 वर्ष के लगातार प्रकाशन के पश्चात् बंद करने का निर्णय लिया है। पहल का 90 वां अंक इसका आखिरी अंक होगा। पहल जबलपुर की एक पहचान भी थी। पूरे देश में लोग भेड़ाघाट के साथ जबलपुर को पहल के कारण भी पहचानते थे। जबलपुर जैसे मध्यम शहर से पहल जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका निकली और इसने विश्व स्तर को प्राप्त किया। ज्ञानरंजन ने पहल को किसी आर्थिक दबाव या रचनात्मक संकट के कारण बंद नहीं किया है, बल्कि उनका कहना है-‘‘पत्रिका का ग्राफ निरंतर बढ़ना चाहिए। वह यदि सुन्दर होने के पश्चात् भी यदि रूका हुआ है तो ऐसे समय निर्णायक मोड़ भी जरूरी है।’’ उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि यथास्थिति को तोड़ना आवश्यक हो गया है। नई कल्पना, नया स्वप्न, तकनीक, आर्थिक परिदृश्य, साहित्य, भाषा के समग्र परिवर्तन को देखते हुए इस प्रकार का निर्णय लेना जरूरी हो गया था। वे कहते हैं कि इस अंधेरे समय में न्यू राइटिंग को पहचानना जरूरी हो गया है, लेकिन ऐसा नहीं करना भी बेईमानी होगी। ज्ञानरंजन कहते हैं कि विकास की चुनौती और शीर्ष पर पहल को बंद करने का निर्णय एक दुखद सच्चाई है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार का निर्णय लेना भी एक कठिन कार्य है।
ज्ञानरंजन की बातचीत में आत्म स्वीकारोक्ति थी कि थकान से व्यक्ति क्रांतिकारी नहीं रह पाता है। वे पिछले पांच-छह महीने से इस पर विचार कर रहे थे। ज्ञानरंजन अब खाली समय में देश के महत्वपूर्ण युवा लेखकों को मार्गदर्शन देंगे और स्वयं के लेखन पर ध्यान केंद्रित करेंगे। साहित्य प्रेमियों को यह याद होगा कि उन्होंने अपने शिखर में ही कहानी लिखना बंद किया और इसी प्रकार पहल सम्मान को भी उन्होंने चरमोत्कर्ष पर बंद करने का निर्णय लिया।
ज्ञानरंजन के वर्षों के साथी और प्रसिद्ध कवि मलय की पहल को बंद करने पर टिप्पणी थी-‘‘दुश्मन भी होंगे तो वे पहल को बंद होने पर पश्चाताप करेंगे और दुख व्यक्त करेंगे।’’ मलय ने कहा कि यह सब जानते हैं कि ज्ञानरंजन के लिए पहल ही सब कुछ है, लेकिन यह हम लोग की मजबूरी है कि हम उनके निर्णय को बदल नहीं सकते। उन्होंने कहा कि पहल को निकालने के लिए देश भर के साहित्यकारों और बड़े प्रकाशन समूहों ने आगे आ कर अपने प्रस्ताव दिए हैं, लेकिन पहल निकले तो ज्ञानरंजन ही निकालें।
पहल का प्रकाशन 1973 में शुरू हुआ था। पहल के प्रकाशन के कुछ समय पश्चात् ही देश में आपात्काल लागू हो गया, लेकिन सेंसरशिप, हस्तक्षेप और दमन से संघर्ष करने के बावजूद पहल बंद नहीं हुई और सतत् निकलती रही। उल्लेखनीय है कि उस समय कई साहित्यिक पत्रिकाएं बंद हो गईं थीं।
हिंदी साहित्य के आठवें दशक के जितने भी महत्वपूर्ण लेखक हैं, वे पहल के गलियारे से ही आए हैं। इनमें राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, वीरेन्द्र डंगवाल, लीलाधर जगूड़ी, ज्ञानेन्द्रपति जैसे साहित्यकार महत्वपूर्ण हैं। 35 वर्षों में पहल में हिंदी, भारतीय भाषाओं और विश्व साहित्य के लगभग 40 हजार से अधिक पृष्ठ प्रकाशित हुए हैं। जर्मन, रूसी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच और स्पेनिश भाषाओं का श्रेष्ठतम साहित्य पहल में ही उपलब्ध है। पहल के पंजाबी, मराठी, उर्दू, कश्मीरी साहित्य के प्रतिनिधि विशेषांक साहित्य प्रेमियों को आज तक याद हैं और लोग इन्हें आज भी खोजते हैं। शीर्ष आलोचक रामविलास शर्मा से ले कर आज की बिल्कुल युवा पीढ़ी का कोई भी ऐसा महत्वपूर्ण लेखक नहीं है, जो पहल में नहीं छपा। इसका प्रसार देश-देशांतर तक था। पूरे देश में पहल से एक बड़ा परिवार बन गया था। जर्मनी में विश्वविद्यालयों में पहल को सीडी फार्म में रखा गया है।
ज्ञानरंजन के पहल बंद करने के निर्णय से पूरे देश के साहित्यिक क्षेत्र में सन्नाटा खिंच गया और दुख की लहर फैल गई। जनमत यह है कि पहल निरंतर निकलते रहे। देश भर से लोगों खासतौर से युवा लेखक ज्ञानरंजन को फोन कर निर्णय बदलने के लिए कह रहे हैं। लोग चाहते हैं कि पहल अर्धवार्षिक या वार्षिक रूप में निकले। प्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयी ने अपने एक कालम में लिखा है-ज्ञानरंजन की गणना निश्चय ही इस दौरान हिंदी के श्रेष्ठ और प्रेरक संपादकों की जाएगी। सच तो यह है कि नहीं पता कि भारत की किस और भाषा में पहल जैसी प्रतिबद्ध और प्रभावशाली पत्रकिा निकलती है। इसलिए उसका समापन न सिर्फ हिंदी परिदृश्य, बल्कि समूचे भारतीय परिदृश्य को विपन्न करेगा। ज्ञानरंजन को भी यह आपत्ति नहीं है कि कोई अन्य साहित्यकार पहल निकाले। वे कहते हैं कि विचार-विमर्श कर भविष्य में कोई निर्णय लेंगे।

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