जबलपुर की विवेचना रंगमण्डल ने पिछले दिनों पांच दिवसीय 'रंग परसाई-2012 राष्ट्रीय नाट्य समारोह' का आयोजन 'शहीद स्मारक' में किया। यह नाट्य समारोह प्रसिद्ध कवि और गीतकार पंडित भवानी प्रसाद तिवारी को समर्पित था। विवेचना की स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी और संस्था ने 1975 से नुक्कड़ नाटकों के प्रदर्शन से अपनी रंग यात्रा की शुरूआत की, जो आज तक जारी है। देश में विवेचना रंगमण्डल की पहचान एक सक्रिय सरोकार से जुड़ी हुई रंगकर्म संस्था के रूप में है। विवेचना रंगमण्डल पिछले कुछ वर्षों से नए निर्देशकों की नाट्य प्रस्तुतियों को राष्ट्रीय समारोह में भी मौका दे रही है। इस बार के नाट्य समारोह में भी नए नाट्य निर्देशकों को मौका दिया गया। इस प्रयास को रंगकर्मियों के साथ-साथ दर्शकों ने भी सराहा। इस बार के नाट्य समारोह की एक खास बात यह भी रही कि दर्शकों को पांच दिन में छह नाटक देखने को मिले। समारोह की शुरूआत हास्य नाटक से हुई और अंत गंभीर और विचारोत्तेजक नाटक से हुआ। नाट्य समारोह की एक विशेषता यह भी रही कि इसमें हरिशंकर परसाई, मुक्तिबोध, बादल सरकार और राही मासूम रजा लिखित नाटकों को प्रस्तुत किया गया। नाट्य समारोह में एक नाट्य प्रस्तुति ऐसी भी रही, जिसे कलाकारों ने बिना स्क्रिप्ट के प्रस्तुत किया। कुल मिला कर कहें तो जबलपुर के दर्शकों को पांचों दिन अलग-अलग रंगों के नाटक देखने को मिले और उन्होंने इसका भरपूर आनंद लिया। नाट्य समारोह के समापन पर भोपाल के रंगकर्मी जावेद जैदी को विवेचना रंगमण्डल ने प्रतीक चिन्ह और ग्यारह हजार रूपए की राशि भेंट कर सम्मानित किया।
नाट्य समारोह के पहले दिन विवेचना रंगमण्डल ने प्रगति-विवेक पाण्डे के निर्देशन में बादल सरकार लिखित वल्लभपुर की रूप कथा को प्रस्तुत किया। वल्लभपुर की रूप कथा बादल सरकार का सिचुएशनल कॉमेडी नाटक है। इस नाटक को बादल सरकार ने सन् 1963 में लिखा था। इसका प्रथम मंचन बादल सरकार द्वारा स्थापित संस्था 'शताब्दी' ने 28 नवम्बर 1970 में किया था। तब से इस नाटक को देश भर की कई रंग संस्थाएं प्रस्तुत कर चुकी हैं। वैसे वल्लभपुर की रूप कथा अंग्रेजी फिल्म 'यू आर नोएंजल्स' पर आधारित नाटक है। विवेचना रंग मण्डल ने नाट्य समारोह के माध्यम से इस नाटक को पहली बार प्रस्तुत कर के दर्शकों को काफी प्रभावित किया। सिचुएशनल कॉमेडी के कारण दर्शकों ने नाटक का भरपूर मजा लिया। बिना मध्यांतर के लंबा नाटक होने बावजूद दर्शक कहीं भी उकताए नहीं। नाटक के एक निर्देशक विवेक पाण्डे ने मुख्य पात्र भूपति की भूमिका भी निभाई। उन्होंने सफल अभिनय के साथ एक जटिल विषय वाले नाटक की प्रभावी प्रस्तुति कर दोहरी सफलता अर्जित की। नाटक में सभी कलाकारों ने अच्छा अभिनय किया, लेकिन रवीन्द्र मुर्हार ने संजीव की भूमिका निभा कर दर्शकों का दिल जीत लिया।
समारोह के दूसरे दिन दो नाट्य प्रस्तुतियां हुईं। द फेक्ट आर्ट एन्ड कल्चर सोसायटी, बेगुसराय ने गजानन माधव मुक्तिबोध लिखित 'समझौता' और मंच मुम्बई ने 'हम बिहार से चुनाव लड़ रहे हैं' को प्रस्तुत किया। हम बिहार से चुनाव लड़ रहे हैं हरिशंकर परसाई का सशक्त व्यंग्य है और इसे विजय कुमार मंच पर उतने ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हैं, इसलिए जबलपुर में लगभग एक-डेढ़ वर्ष के अंतराल में इस नाटक के मंचन होते रहते हैं। विजय कुमार ने एकल अभिनय से परसाई के व्यंग्य को और धारदार बना दिया है, जिसे जबलपुर के दर्शक खासा पसंद करते हैं। दूसरी नाट्य प्रस्तुति समझौता भी एकल अभिनय पर आधारित थी। यह नाटक विचारोत्तेजक है, जिसमें दुनिया को सर्कस के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कहानी का नायक नौकरी की तलाश में एक दफ्तर से दूसरे के बीच भागते रहने की पीड़ा नाटक का धरातल है। समझौता एक ऐसे नौजवान की कहानी है, जो मौजूदा हालात के सामने असहाय और मजबूर है। नाट्य प्रस्तुति उस समय चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाती है, जब दुनिया में सफलता के लिए इंसान स्वयं को जानवरों के रूप में ढालने को तैयार हो जाता है। वैश्वीकरण की अंधी दौड के समय में 'समझौता' जीवन की कड़वी सच्चाईयों को उजागर करने का सफल प्रयास है। पूरे नाटक में मानवेन्द्र त्रिपाठी ने फिजीकल थिएटर को एक पाठ्य पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया है। नाटक में संगीत और प्रकाश परिकल्पना ने विषय के सम्प्रेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नाटक के निर्देशक प्रवीण कुमार गुंजन प्रस्तुति के माध्यम से अपनी बात कहने में पूर्णतः सफल रहे।
समारोह के तीसरे दिन दस्तक, मुम्बई ने दास्तान गोई की प्रस्तुति दी। दास्तान गोई का लेखन व निर्देशन महमूद फारूखी ने किया है। जबलपुर में दास्तान गोई को राणा प्रताप सेंगर, शेख उस्मान और राजेन्द्र कुमार ने प्रस्तुत कर महमूद फारूखी और दानिश हुसैन की याद को ताजा कर दिया। इससे पहले फारूखी और हुसैन दास्तान गोई को प्रस्तुत कर चुके हैं। समारोह में दास्तान गोई की पारम्परिक दास्ताने अमीर हमजा के दो मुख्य किरदारों अमीर हमजा और उसके दोस्त अमर अय्यार की कहानी के साथ-साथ समकालीन डा. विनायक सेन की संघर्ष गाथा को दास्तान गोई के रूप में प्रस्तुत कर एक नया प्रयोग किया गया, जिसे दर्शकों का समर्थन भी मिला।
समारोह के चौथे दिन मुम्बई की रंग संस्था सारंग ने 'लैट्स अनपैक!' की प्रस्तुति दी। यह नाटक दर्शकों के लिए बिल्कुल नया अनुभव रहा। बिना स्क्रिप्ट के नाटक में छह पात्र 15 दिनों के लिए दुनिया से पूरी तरह अलग हो कर साथ रहते हैं। इस दौरान उनके पास एक अखबार, टेलीविजन, जिम, बगीचा और साथ में रखने के लिए कुछ निजी समान के अलावा कुछ नहीं रहता है। छहों पात्र पहेलीनुमा-विचित्र कामों में फंस जाते हैं, कुछ अजीब से खेल खेलते हैं और जटिल चर्चाएं करते हैं। इस सब में वे मजबूर हो जाते हैं अपने भीतर को झांकने के लिए और अपने परिप्रेक्ष्य पर सवाल उठाने के लिए और अपनी सहज प्रवृत्ति से रूबरू होने के लिए। नाटक का संदेश ही है कि हम अपने को अनपैक कर लें या जैसे हैं वैसे ही रहें बिना किसी आवरण के। इस नाटक की खासियत है कि इसका हर मंचन अपने आप में मौलिक है। छह पात्रों के बातों से दर्शक स्वयं को आत्मसात् कर लेता है। हिंग्लिश होने के बावजूद नाटक में पात्रों की बातचीत का दर्शक आनंद लेते हैं और स्वयं को भी एक पात्र समझने लगते हैं। यही बात इस नाटक की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलु है।
नाट्य समारोह की अंतिम प्रस्तुति के रूप में संभावना भोपाल ने 'टोपी शुक्ला' का मंचन किया। टोपी शुक्ला राही मासूम रजा के उपन्यास का नाट्य रूपांतरण है। कहानी भारत की आजादी के कुछ पहले की है और आजादी के बाद के भारत के नौजवानों के सपनों और ख्वाहिशों को दर्शाती है। जिंदा रहने के लिए लोग समझौता करते हैं और जो समझौता नहीं कर पाता है, वह आत्महत्या कर लेता है। राही मासूम रजा के अनुसार यह कहानी 'समय' की है, इस कहानी का हीरो 'समय' है, समय के अलावा कोई इस लायक नहीं है कि उसे कहानी बनाया जाए। यह नाटक अवसाद से शुरू हो कर अवसाद पर खत्म होता है। नाटक में प्रसिद्ध रंगकर्मी अलखनंदन के बेटे अंशपायन सिन्हा 'अंशु' ने टोपी शुक्ला के मुख्य पात्र की भूमिका निभाई। नाटक के दूसरे दिन अंशपायन सिन्हा को अपने पिता अलखनंदन के निधन की खबर जबलपुर में ही मिली। टोपी शुक्ला की विषयवस्तु अवश्य आजादी के समय की है, लेकिन इसमें उठाए गए साम्प्रदायिकता के सवाल आज भी सम-सामयिक हैं और लोगों को उद्वेलित कर रहे हैं। साम्प्रदायिकता जैसे नाजुक विषय को निर्देशक जावेद जैदी और उनके कलाकारों ने बहुत संजीगदी से प्रस्तुत किया।
विवेचना रंगमण्डल ने राष्ट्रीय नाट्य समारोह के आयोजन से इस मिथक को भी तोड़ा कि नाटकों को दर्शक देखने नहीं आते। नाट्य समारोह के पांचों दिन प्रेक्षागृह में दर्शकों की भीड़ जुटी और उन्होंने टिकट खरीद कर उत्कृष्ट रंगकर्म को समर्थन और सहयोग भी दिया।
1 टिप्पणी:
विवेचना द्वारा आयोजित नाट्य समारोह की रिपोर्ट व्यापक और विशिष्टता लिए हुए है। रिपोर्ट से जानकारी मिलती है कि जबलपुर के दर्शक टिकट खरीद कर नाटक देखने लगे हैं, जो कि हिंदी प्रदेश के लिए बेहतर संकेत है। जिन प्रयोगवादी नाटकों की चर्चा की गई है, उनके और अधिक मंचन होने चाहिए। अच्छी रिपोर्टिंग के लिए बधाई।-संजय
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