ध्यानचंद के पिता रामेश्वर सिंह पहली ब्राम्हण रेजीमेंट में सूबेदार थे। यह रेजीमेंट उन दिनों इलाहाबाद में तैनात थी। बाद में यह रेजीमेंट जबलपुर में स्थानांतरित की गई। रेजीमेंट के साथ रामेश्वर सिंह जबलपुर आ गए। ध्यानचंद जब सिर्फ चार वर्ष के बच्चे थे, तब वे पहली बार अपने पिता के बड़े भाई के पास जबलपुर आए थे। रूप सिंह का जन्म 1908 में जबलपुर में ही हुआ। इसके बाद दोनों भाईयों जबलपुर आना लगा रहा। बाद के दिनों में रूप सिंह भी, ध्यानचंद की तरह विश्व विख्यात हुए। ध्यानचंद के अंतर्राष्ट्रीय हॉकी के प्रारंभिक साथियों में जबलपुर के रेक्स नॉरिस और माइकल रॉक थे। उपर्युक्त दोनों खिलाड़ियों ने एम्सटर्डम (हॉलैंड) में सन् 1928 में ओलंपिक हॉकी टीम के साथ यात्रा की थी और यह टीम ओलंपिक विजेता बनी। ध्यानचंद 1922 में सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हुए। 1927 में भारतीय आर्मी टीम के न्यूजीलैंड दौरे की सफलता के बाद ध्यानचंद को लांस नायक पद पर पदोन्नति दी गई। कुछ वर्षों बाद ध्यानचंद की पहली ब्राम्हण बटालियन तोड़ दी गई, तो वे दूसरी बटालियन पंजाब रेजीमेंट चले गए। ध्यानचंद की यहां रघुनाथ शर्मा से मित्रता हुई। रघुनाथ शर्मा की जबलपुर के तुलाराम चौक पर स्थित रघुनाथ शस्त्रालय नाम की दुकान वर्षों तक काफी प्रसिद्ध रही। ध्यानचंद और रघुनाथ शर्मा अपनी रेजीमेंट के साथ पाकिस्तान के बन्नू कोहट में भी रहे। ध्यानचंद और रघुनाथ शर्मा लंगोटिया दोस्त थे। यहां तक की विवाह के लिए ध्यानचंद की पत्नी का चयन रघुनाथ शर्मा की सलाह से हुआ और बाद में विवाह हुआ। जबलपुर के सेवानिवृत्त रेलवे सुपरिटेडेंट एम. लाल (रिछारिया) भी झांसी से ही ध्यानचंद के अच्छे साथियों में थे।
जबलपुर के खेल क्षेत्र के बहुत से अधिकारी भी खेलकूद के कारण ध्यानचंद को भली-भांति जानते थे। जबलपुर से ध्यानचंद का सबसे गहरा संबंध उस समय स्थापित हुआ, जब उनकी बहिन सुरजा देवी का सन् 1940 में राइट टाउन निवासी किशोर सिंह चौहान से विवाह संपन्न हुआ। चौहान परिवार हवाघर नाम से प्रख्यात मकान में रहता था। जब से दोनों ओलंपिक खिलाड़ी ध्यानचंद व रूप सिंह प्राय: जबलपुर आते रहते थे। उनकी बहिन श्रीमती सुरजा देवी के पुत्र विक्रम सिंह चौहान वर्तमान में हवाघर के नजदीक रहते हैं।
हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का जबलपुर के खेल ‘भीष्म पितामह’ माने जाने वाले बाबूलाल पाराशर से भी लम्बे समय तक संबंध व सम्पर्क रहा। बाबूलाल पाराशर और ध्यानचंद परस्पर एक दूसरे के विरूद्ध हॉकी मैच खेल चुके थे। इसी प्रकार ध्यानचंद की आत्मकथा ‘गोल’ को लिखने वाले पंकज गुप्ता की बाबूलाल पाराशर ने काफी मदद की। इस आलेख को लिखने में बाबूलाल पाराशर के संस्मरणों की सहायता ली गई। उन्हीं के एक संस्मरण के अनुसार ध्यानचंद की एक पुरानी यात्रा 16 मार्च 1953 को हुई थी। ध्यानचंद उस समय नागपुर से राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम को प्रशिक्षण दे कर वापस लौट रहे थे। यह टीम बाद में अखिल भारतीय महिला हॉकी एसोसिएशन के तत्वावधान में इंग्लैंड के दौरे पर गई। संयोग से उस टीम में चार खिलाड़ी जबलपुर की थीं। उस समय जबलपुर जिला हॉकी एसोसिएशन के तत्वावधान में नागरिकों पुलिस मैदान में तत्कालीन महापौर भवानीप्रसाद तिवारी की अध्यक्षता में ध्यानचंद का नागरिक सम्मान किया गया था। उस दिन ध्यानचंद को एक जीप में बैठा कर पुलिस ग्राउंड के चारों ओर सड़कों पर घुमाया गया और करतल ध्वनि से उनका स्वागत किया गया। जनसमूह के आग्रह पर उन्होंने हॉकी का प्रदर्शन किया। इस समारोह में ध्यानचंद के साथी माइकल रॉक भी उपस्थित थे।
वर्ष 1964 की यात्रा के दौरान ध्यानचंद |
इसके बाद उनकी यात्रा अपने पुत्र राजकुमार के विवाह के सिलसिले में हुई। राजकुमार का विवाह जबलपुर के तत्कालीन खाद्य अधिकारी जी. के. सिंह की पुत्री वीणा के साथ हुआ था। बारात ब्यौहार बाग स्कूल के छात्रावास में ठहराई गई। बारात में दोनों खिलाड़ी बंधु ध्यानचंद व रूप सिंह सम्मिलित हुए।
स्मारिका का विमोचन करते हुए ध्यानचंद |
ध्यानचंद की अगली व अंतिम यात्रा 1975 में हुई। वे मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल के तत्कालीन अध्यक्ष डब्ल्यू. वी. ओक के आमंत्रण पर अखिल भारतीय विद्युत क्रीड़ा नियंत्रण मण्डल हॉकी प्रतियोगिता का उद्घाटन करने विशेष रूप से झांसी से आए थे। इस प्रतियोगिता का उद्घाटन 31 जनवरी 1975 को हुआ था। उस समय ध्यानचंद को पचपेढ़ी में विश्वविद्यालय के सामने स्थित 'ब्लेग डान' अतिथि गृह में ठहराया गया था। रेलवे स्टेडियम में पूरी प्रतियोगिता खेली गई। उद्घाटन के मौके पर ध्यानचंद का शानदार स्वागत किया गया। अगले दिन उन्हें स्थानीय हॉकी पदाधिकारियों द्वारा दमोह ले जाया गया। जबलपुर में ध्यानचंद के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए। 2 फरवरी 1975 को मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल में उनका विदाई समारोह आयोजित किया गया। हॉकी के विख्यात जादूगर को जबलपुरवासियों ने अंतिम बार देखा।
जबलपुर को ध्यानचंद को कभी हॉकी खेलते देखने का सौभाग्य नहीं मिला, लेकिन उनके पुत्र अशोक कुमार को राइट टाउन स्टेडियम में 30 अप्रैल 1975 को ऑल इंडिया इलेवन की ओर से शेष भारत के विरूद्ध खेलते देखने का अवसर जरूर मिला। अशोक कुमार क्वलालाम्पुर के तीसरे विश्व कप हॉकी की विजेता भारतीय टीम के सदस्य थे। आठवें दशक में जबलपुर में आयोजित राष्ट्रीय जूनियर हॉकी प्रतियोगिता ध्यानचंद के एक अन्य पुत्र देवेन्द्र सिंह उत्तरप्रदेश की ओर से खेलने आए।
जबलपुरवासी ध्यानचंद को कितना प्यार और सम्मान देते थे, इसकी बानगी 21 दिसंबर 1978 की एक घटना से मिलती है। इस दिन राष्ट्रीय महिला हॉकी प्रतियोगिता के अंतर्गत गुजरात व तमिलनाडु के मध्य खेले गए मैच की मुख्य अतिथि श्रीमती सुरजा देवी थीं। जब उद्घोषक ने लाउड स्पीकर पर घोषित किया कि ध्यानचंद की बहिन श्रीमती सुरजा देवी आज की मुख्य अतिथि हैं, तो स्टेडियम में उपस्थित जनसमूह खड़े हो कर यह देखने लगा कि कहीं महत्वपूर्ण व्यक्तियों की गैलरी में ध्यानचंद तो नहीं बैठे हैं ? खेलप्रेमी दर्शकों ने हॉकी के महान् खिलाड़ी ध्यानचंद की बहिन का करतल ध्वनि से स्वागत किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें