शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

🔴अभी थके नहीं हैं ज्ञानरंजन

(वर्ष 2024 का प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान पहल के संपादक व विख्यात कथाकार ज्ञानरंजन को उनके आजीवन कथा व सम्पादकीय योगदान के लिए देने का निर्णय लिया गया है। 4 फरवरी को बाँदा में प्रतीक फाउंडेशन के तत्वावधान में एक कार्यक्रम में ज्ञानरंजन को 31000 रूपए की सम्मा‍न निध‍ि व स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया जाएगा।)

88 साल के ज्ञानरंजन कभी थकते नहीं। उनके लेखन व कर्म में एक युवापन की जो छवि है वह लोगों को आकर्ष‍ित करती है। युवा तो उनके मुरीद हैं। इसमें सभी वर्ग के लोग हैं। चाहे वह लेखक हो या चाहे संस्कृतिकर्मी या आम विद्यार्थी जो भी उनसे पहली बार मिलता है, उसके बाद बार-बार उनसे मिलना चाहता है। युवा रचनाशीलता की पूरी ज़मात उनके सम्मोहन में बंधी हुई है। ज्ञानरंजन समकालीन परिदृश्य में सबसे सक्रि‍य व्यक्त‍ित्व हैं। इसके पीछे निष्ठा भरी अटूट सक्रि‍यता का लम्बा अतीत है। लगभग 60 वर्ष से अपनी रचनात्मकता से समकालीन परिदृश्य में ज्ञानरंजन की छवि नायक की है।

ज्ञानरंजन की कीर्ति का मूल आधार उनकी कहानियां हैं। उनकी कहानियों ने हिन्दी कहानी की दिशा ही बदल दी। ज्ञानरंजन ने असाधारण रचनात्मकता से कहानी को नई कहानी से मुक्त करने का ऐतिहासिक कार्य किया है। उन्होंने एक बिल्कुल नई कथा भूमि रची है। पचास वर्षों के अंतराल के बावजूद उनकी कहानियों में विलक्षण ताजगी व सम्मोहन उपस्थि‍त है। ज्ञानरंजन की यह निजी विशेषता है कि वे श‍िखर पर पहुंच कर अपनी रचनात्मक भूमिका में गुणात्मक परिवर्तन कर लेते हैं। कहानियों में अपना अनूठा प्रतिमान स्थापित करने के बाद ज्ञानरंजन ने स्वयं को कहानी लेखन से दूर कर लिया।   

ज्ञानरंजन की भाषा ही है ऐसी है जो सब को आकर्ष‍ित करती है। उनका गद्य विलक्षण है। उनका शब्दों का चयन व वाक्यों की गति से लोग ईर्ष्या करते हैं। ज्ञानरंजन की भाषा सिर्फ कहानी तक सीमित नहीं है बल्क‍ि गद्येत्तर लेखन में उनकी भाषा जादूई है। उनके छोटे से छोटे वक्तव्य और व्यक्तिगत रूप से लिखे गए पत्र अपनी भाषा का जादू बिखेर देते हैं।

ज्ञानरंजन की दूसरी पारी पहल के प्रकाशन से 1973 में शुरु हुई। ज्ञानरंजन ने पहल का प्रकाशन प्रगतिशील परम्परा को वैचारिक व रचनात्मक दोनों स्तरों पर प्रभावशाली बनाने के लिए किया। पहल का आदर्श वाक्य ही था-इस महादेश की चेतना के वैज्ञानिक विकास के लक्ष्य और संकल्प के लिए प्रतिबद्ध। पहल एश‍िया महाद्वीप में वैज्ञानिक विचारों के विकास संकल्प को पूर्ण करने वाली एक अनिवार्य पत्रि‍का बनी। पहल का 125 अंक तक प्रकाशन हुआ तब तक इसकी प्रगतिशील मूल्यों के प्रति दृढ़ आस्था रही। बिना किसी संस्थान और संसाधन के पहल ने अपनी यात्रा तमाम प्रतिकूलता व अभाव के बावजूद सक्रि‍यता से बनाए रखी। पहल एक सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में स्वीकार की गई। ज्ञानरंजन ने हमेशा सामाजिक सरोकारों से ही विकसित साहित्य और सांस्कृतिक मूल्यों की हिमायत की। 

पहल की सबसे बड़ी विशेषता इसमें छपने वाली सामग्री की समकालीनता रही। पहल के प्रत्येक अंक में साहित्य व विचार की इतनी खुराक रहती थी कि पढ़ने वाले को तीन चार माह तो लग ही जाते थे। तब तक वह अंक पूरा होता नया आ जाता था। कहानी व कविता को ले कर पहल के चयन अप्रतिम है। बीच बीच में पहल द्वारा पुस्त‍िकाओं का प्रकाशन अद्भुत रहा। पहल सम्मान का जिक्र करना भी ज़रूरी हो जाता है। पहल सम्मान दरअसल पहल परिवार की आत्मीय सामूहिकता का ऐसा उदाहरण है जिसकी मिसाल हिन्दी में दूसरी नहीं।🔷 

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