मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

प्रतिरोध को थिएटर का माध्यम बनाने वाले रंगकर्मी बादल सरकार



बादल सरकार का नाम देश में नाटक का पर्याय है। कलकत्ता में जन्में बादल सरकार ने कई वर्ष इंजीनियर के रूप में काम किया। विदेश से रंगकर्म का डिप्लोमा लेने के पश्चात् उन्होंने रंग जगत में प्रवेश किया। उनके अभिनव तरीके ने रंगमंच में उनकी अलग पहचान विकसित की और बादल सरकार रंग जगत का एक शीर्ष नाम बन गया। बादल दा ने गत 15 जुलाई को जीवन के 83 वर्ष पूर्ण किए हैं।

बादल सरकार से प्रेरित हो कर देश के सैकड़ों रंगकर्मी सड़कों पर नाटक करने उतरे और प्रतिरोध के लिए थिएटर को माध्यम बनाया। थिएटर आडोटोरियम और उसके तमाम तामझाम को छोड़ कर ‘सुधीन्द्र नाथ सरकार’ ने जब थिएटर को जनता से सीधे संवाद करने का माध्यम बना कर नुक्कड़ नाटक की अपनी शैली विकसित की, तो रंग जगत में एक तूफान सा आ गया। सन् 1970 के आसपास उन्होंने थिएटर आडोटोरियम से नुक्कड़ की यात्रा शुरू की। उस समय बांगला थिएटर जगत में शंभू मित्र, तृप्ति मित्र और उत्पल दत्त के नाम शीर्ष पर थे।
बादल सरकार बताते हैं- ‘‘मैंने अपना काम कविताओं से शुरू किया। सन् 1956 में मैंने अपना पहला नाटक साल्यूशन एक्स लिखा। फिर सन् 1956 में बारो पिशीमा आया। अभी हाल ही में उनकी दो पुस्तकें पुरोनो कुशुन्डी और प्रोबोशेर हिज्जीबिज्जी आई हैं, जिनमें उनके नाटकों, अनुभवों और विदेश यात्राओं का विवरण है।

सन् 1961 में उनका तीसरा नाटक राम श्याम जोदू आया जो एक विदेशी कहानी पर आधारित था। इस नाटक की सफलता ने उन्हें एक अलग किस्म के थिएटर का जनक बनाया, जिसे भारत में थर्ड थिएटर और साइको फिजिकल थिएटर (मनो-शारीरिक रंगमंच) के नामों से जाना गया। सन् 1963 में उन्होंने दो नाटकों का निर्देशन किया। ये नाटक थे-एवम् इंद्रजीत और वल्लभपुर की रूपकथा । इन नाटकों के साथ ही बादल सरकार का नाम हर रंगकर्मी की जुबान पर छा गया। इसके बाद उनके नाटक लगातार आते रहे। कवि कहानी (1964), बाकी इतिहास (1965), तीसरी शताब्दी (1966), यदि फिर एक बार (1966), पगला घोड़ा (1967), अंत नहीं (1970), सगीना मेहता (1970), अबू हसन (1971), मिछिल-जुलूस (1974) आदि। बाकी इतिहास ने जहां उन्हें महान नाटककार बनाया, वहीं पगला घोड़ा और सारी रात बहुत ही पसंदीदा नाटक बने।

बादल सरकार ने अपने साथियों के साथ ‘परिक्रमा’ कार्यक्रम के साथ बंगाल के अनेक जिलों में गांव-गांव जा कर नाटक किए और बंगाल के ग्रामीण जनों से सीधा रंगसम्पर्क बनाया। नादिया, 24 परगना आदि जिलों में भी गांव-गांव घूम कर बादल सरकार ने रंगकर्म का संदेश दे कर अभिजात्य नाट्य जगत को चुनौती दी। उनके नाटकों में कलाकारों और दर्शकों के बीच कोई फर्क नहीं होता है। बादल सरकार ने आंगन, छत, नुक्कड़ और गांवों में नाटकों को पहुंचा कर नाटक को व्यापक बनाया।

‘‘मेरे नाटक संदेश मेरा संदेश देते हैं। परन्तु मैं महसूस करता हूं कि इन नाटकों को यदि मैं आज लिखता तो इनका फार्म और नेरेशन दूसरा होता। जिस पथ पर मैं अब तक चला और जो नवाचार मैंने भारतीय रंगमंच में किया, उस पर मुझे आज भी विश्वास है।’’

बादल सरकार आज भी सक्रिय हैं, यद्यपि बीमारी के कारण वे घूम-फिर नहीं पाते हैं। आजकल वे अपनी आत्मकथा का तीसरा भाग लिख रहे हैं। बादल दा कहते हैं-‘‘मैं अब भी लिख रहा हूं, हालांकि लोगों ने मुझे अकेला छोड़ दिया है और आज मुझे किसी चीज की कोई इच्छा भी नहीं है।’’

वे आजकल निपट एकांत में जी रहे हैं। न कोई आता है और न कोई जाता है। इस महान नाटककार को जिसने वैकल्पिक रंगमंच को जन्म दिया, उसे उसके लेखन की रायल्टी भी नहीं मिलती। प्रकाशक पिछले एक दशक से उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। उनके स्वयं के विद्यार्थी नाटकों का मंचन करते हैं और उन्हें सूचित करना भी जरूरी नहीं समझते।

बादल सरकार को सांस की तकलीफ है और पैरों में डली दो राड के कारण बाहर जाने में वे असमर्थ हैं। पर वे असहाय और निराश नहीं हैं, यद्यपि आर्थिक और भावनात्मक रूप से वे बहुत कष्ट में हैं। उनकी आत्मकथा बहुत कुछ कहती है। उनके अनुभवों का संसार बहुत बड़ा है।

बादल सरकार बताते हैं कि उन्होंने थिएटर अपने परिवार वालों के साथ मिल कर शुरू किया। घर से साड़ी-कपडे ले जा कर उसी से स्टेज बना कर पूरी लगन से नाटक तैयार करते थे। उन्होंने कई बार नाटकों में महिला पात्र का काम किया, हालांकि उनके माता-पिता को यह बिल्कुल पसंद नहीं था।

वर्तमान में बादल सरकार केवल लिख रहे हैं। उनके साथ एक युवा सहायक है। उनके समकालीन शंभू मित्र को भी अंतिम समय में एक होटल में रहना पड़ा था। लोगों का यह याद रखना होगा कि नुक्कड़ नाटक के उनके मुहावरे को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय तक में सम्मान मिला। बादल दा को इस बात का मलाल है कि उनके काम को एक उत्पाद के रूप में बेचा जा रहा है। बीमारी के साथ-साथ वे बादल सरकार को भुलाए जाने के विरूद्ध भी लड़ाई लड़ रहे हैं।

बादल सरकार का रंगकर्म व्यवस्था के विरूद्ध उद्घोष है। उनके फार्म की आसानी और ऊर्जा हर युवा को आकर्षित करती है, इसलिए बादल सरकार के नाटक पूरे देश में हर नाट्य दल द्वारा बार-बार खेले गए। बादल दा के नाटक समाज में अत्याचार और बिखरती समाज व्यवस्था के विरूद्ध तीखा प्रतिरोध करते हैं। समाज और राजनीति की विद्रूपताओं पर उनके नाटक गहरी चोट करते हैं। इस कारण से बादल सरकार के नाटक और वे स्वयं भी देश के रंगकर्मियों के चहेते हैं।

रंग जगत बादल दा के स्वस्थ और सुखी जीवन का आकांक्षी है।

बादल सरकार के प्रसिद्ध नाटक-एवम् इंद्रजीत, अंत नहीं, बासी खबर, बाकी इतिहास, पगला घोड़ा, स्पार्टाकस, प्रस्ताव, जुलूस, भोमा, साल्यूशन एक्स, बारोपिशीमा, सारी रात, बड़ी बुआ जी, कवि कहानी।
(इस आलेख के लेखक हिमांशु राय हैं। वे मासिक इप्टा वार्ता के संपादक हैं। उनका ब्लाग इप्टावार्ता हिंदी हाल ही में शुरू हुआ है। )

2 टिप्‍पणियां:

कनिष्क कश्यप ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कनिष्क कश्यप ने कहा…

ek rangkarmi hone ke naate , mere liya bahut mahtwapurna jankari rahi..
अभी हाल ही में उनकी दो पुस्तकें पुरोनो कुशुन्डी और प्रोबोशेर हिज्जीबिज्जी आई हैं, जिनमें उनके नाटकों, अनुभवों और विदेश यात्राओं का विवरण है।
main awasya inko padna chahunga..

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