रविवार, 29 जुलाई 2012

पहल में सरकारी विज्ञापन नहीं छपेंगे

हिंदी साहित्य जगत की अनिवार्य पत्रिका के रूप में मान्य पहल को विख्यात साहित्यकार, संपादक और कहानीकार ज्ञानरंजन ने पुन: निकालने का निश्चय किया है। उन्होंने तीन वर्ष पहल का प्रकाशन स्थगित कर दिया था। पहल का प्रकाशन बंद करते समय ज्ञानरंजन की टिप्पणी थी कि उन्होंने पहल को किसी आर्थिक दबाव या रचनात्मक संकट के कारण बंद नहीं किया है, बल्कि उनका कहना था-‘‘पत्रिका का ग्राफ निरंतर बढ़ना चाहिए। वह यदि सुन्दर होने के पश्चात् भी यदि रूका हुआ है तो ऐसे समय निर्णायक मोड़ भी जरूरी है।’’ उन्होंने उस समय स्पष्ट किया था कि यथास्थिति को तोड़ना आवश्यक हो गया है। नई कल्पना, नया स्वप्न, तकनीक, आर्थिक परिदृश्य, साहित्य, भाषा के समग्र परिवर्तन को देखते हुए इस प्रकार का निर्णय लेना जरूरी हो गया था। ज्ञानरंजन ने तब कहा था कि इस अंधेरे समय में न्यू राइटिंग को पहचानना जरूरी हो गया है, लेकिन ऐसा नहीं करना भी बेईमानी होगी। ज्ञानरंजन कहते हैं कि विकास की चुनौती और शीर्ष पर पहल को बंद करने का निर्णय एक दुखद सच्चाई है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार का निर्णय लेना भी एक कठिन कार्य है।

ज्ञानरंजन ने पहल के पुनर्प्रकाशन की घोषणा pahal2012.wordpress.com ब्लाग के माध्यम से की। शुरुआती तौर पर पाठकों से संवाद होगा। ब्लाग में दो पहल संवाद जारी हो चुके हैं। अब पहल के प्रकाशन में प्रसिद्ध पत्रकार राजकुमार केशवानी भी सहयोग करेंगे। जबलपुर में ज्ञानरंजन ने बातचीत में कहा कि पहल में सरकारी विज्ञापन बिलकुल नहीं छापे जाएंगे। तीन माह तक जमीनी काम किया जाएगा और फिर पत्रिका का प्रकाशन होगा। पत्रिका के प्रकाशन तक ब्लाग के माध्यम से पाठकों से संवाद होगा। पहल को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए वेबसाइट का भी उपयोग होगा। 
ज्ञानरंजन को पहल के संबंध में प्रतिक्रियाएं देने के लिए इन ईमेलों पर सम्पर्क किया जा सकता है-  gyanranjanpahal@gmail.com, rkpahal2@gmail.com

1 टिप्पणी:

समयचक्र ने कहा…

बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है ...प्रतीक्षा रहेगी .. आभार

🔴इतिहास के कुहासे की परतों में ओझल होता ब्लेगडान

6 फरवरी 2024 को सुबह कोहरे की मोटी परत के बीच अचानक रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के सामने दायीं ओर निगाह गई तो देखा कि शहर के एक नामच...