बुधवार, 11 मई 2022

बिरजू महाराज और श‍िवकुमार शर्मा का पुराना नाता रहा है जबलपुर से

विख्यात कत्थक नर्तक बिरजू महाराज और संतूर वादक श‍िवकुमार शर्मा का जबलपुर से पुराना नाता है। दोनों ही जबलपुर में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करने आते रहे हैं। विख्यात कत्थक नर्तक बिरजू महाराज अपने जीवन में दो बार जबलपुर आए और दोनों बार उन्होंने अपने नृत्य से जबलपुर के लोगों का मन मोह लिया था। बिरजू महाराज की पहली यात्रा वर्ष 1957-58 में भातखंडे संगीत महाविद्यालय के भवन निर्माण के लिए धन राश‍ि जुटाने के उद्देश्य से हुई थी। यह कार्यक्रम शहीद स्मारक में आयोजित हुआ था। बिरजू महाराज के कत्थक नृत्य को देखने जबलपुर के कला रसिक की भीड़ शहीद स्मारक में उमड़ पड़ी थी। उस कार्यक्रम में बिरजू महाराज ने भाव प्रदर्शन करने के लिए ठुमरी की लाइन गाई थीं-''काहे रोकत डगर श्याम।'' भातखंडे महाविद्यालय के तबला वादक गजानन ताड़े ने लाइन को बार-बार गाते थे और उन लाइन में बिरजू महाराज ने अलग-अलग भाव प्रदर्श‍ित किए थे। उस समय भातखंडे संगीत महाविद्यालय की विद्यार्थी साधना उपाध्याय हुआ करती थीं। उन्होंने बिरजू महाराज के कार्यक्रम की टिकट घर-घर जा कर बेची थीं। बिरजू महाराज की दूसरी व अंतिम जबलपुर यात्रा वर्ष 2013 में उस समय हुई जब उन्हें हर्ष व सुनयना पटेरिया ने चंद्रप्रभा पटेरिया की स्मृति समारोह में आयोजित होने वाले वार्ष‍िक कार्यक्रम में 5 अक्टूबर को आमंत्रित किया था। (श्रीमती चंद्रप्रभा पटेरिया के पति श्री सुशील पटेरिया सितार वादक पंड‍ित रविशंकर के मित्र व श‍िष्य थे। पटेरिया दंपति के प्रयासों से ही जबलपुर में बड़े संगीतज्ञों का आना संभव हुआ और उन्होंने यहां अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए) उस समय बिरजू महाराज का स्वास्थ्य बेहतर नहीं था, लेकिन शहीद स्मारक के कार्यक्रम में बिरजू महाराज ने नृत्य तो किया ही उन्होंने गाया और तबला वादन भी किया था। मूलत: बनारस की रहने वाली सुनयना पटेरिया ने जानकारी दी कि बिरजू महाराज लखनऊ घराने के थे, लेकिन बनारस घराने से उनकी नजदीकी रही। बनारस में सुनयना पटेरिया के मायके के परिवार से बिरजू महाराज का गहरा नाता रहा है। सुनयना पटेरिया ने कहा कि बिरजू महाराज का अत्यंत सरल व विनम्र व्यक्त‍ित्व था। जबलपुर यात्रा के पूर्व बिरजू महाराज का स्वास्थ्य बेहतर नहीं था, लेकिन वे कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति देने जबलपुर आए और यहां आ कर उन्हें प्रसन्नता हुई थी। इसका कारण बिरजू महाराज को जबलपुर के दर्शक संगीत की समझ रखने वाले व कला का आदर करने वाले महसूस हुए थे। जबलपुर की कई नृत्यांगानाएं बिरजू महाराज की कत्थक वर्कशाप में भाग ले चुकी हैं। उपासना उपाध्याय ने खैरागढ़ में उनकी वर्कशाप में भाग लिया था। (बिरजू महाराज की तस्वीर वर्ष 2013 में जबलपुर के छायाकार अजय धाबर्डे-एडी ने शहीद स्मारक के कार्यक्रम में खींची थी।)

मशहूर संतूर वादक श‍िवकुमार शर्मा और संतूर एक दूसरे के पर्याय थे। श‍िवकुमार शर्मा ने संतूर को विश्वव्यापी बनाया और प्रस‍िद्ध‍ि दी। श‍िवकुमार शर्मा का जबलपुर से भी गहरा नाता रहा। उन्होंने वर्ष 1984, वर्ष 2014 व वर्ष 2017 में जबलपुर आ कर यहां कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। 
वर्ष 1984 में श‍िवकुमार शर्मा के जबलपुर में कार्यक्रम आयोजित करने में आईटीसी के विजय किचलू की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। विजय किचलू ने कोलकाता में शास्त्रीय संगीत की अकादमी खोलने में बड़ी भूमिका भी निभाई थी। उसी अकादमी के तत्वावधान में यह कार्यक्रम होम साइंस कॉलेज के ऑड‍िटोरियम में हुआ था। उस समय सिविल लाइंस में सोना हाउस में आईटीसी का एक बड़ा आफ‍िस था। फ्रांसिस नाम के एक व्यक्त‍ि जबलपुर में मैनेजर हुआ करते थे। फ्रांसिस साहब की ख्याति इस बात के लिए थी, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जबलपुर में संगीत के कई बड़े आयोजन करवाए थे। एक तरह से जबलपुर को उनका अहसानमंद होना चाहिए।
हर्ष पटेरिया व श‍िवकुमार शर्मा
वर्ष 2014 में श‍िवकुमार शर्मा की जबलपुर की दूसरी जबलपुर यात्रा विवेक तन्खा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के सिलसिले में हुई थी। उनकी तीसरी यात्रा हर्ष व सुनयना पटेरिया के आमंत्रण पर चंद्रप्रभा पटेरिया की स्मृति समारोह में आयोजित होने वाले वार्ष‍िक कार्यक्रम में 5 अक्टूबर 2017 को हुई थी। वैसे भी जबलपुर में सुशील पटेरिया-चंद्रप्रभा पटेरिया और बाद में उनके पुत्र व वधु हर्ष व सुनयना के प्रयासों से जबलपुर में बड़े संगीतज्ञों का आना संभव हुआ और उन्होंने यहां कार्यक्रम प्रस्तुत किए। सुनयना पटेरिया ने बताया कि वर्ष 2017 में शहीद स्मारक में श‍िवकुमार शर्मा का संतूर वादन हुआ था। पंड‍ित जी सुनयना जी के विवाह समारोह में वर्ष 1983 में बनारस में शामिल हुए थे। इस नाते उनकी सुनयना पटेरिया व परिवार से आत्मीयता थी। सुनयना पटेरिया ने बताया कि श‍िवकुमार शर्मा ने संतूर को शास्त्रीय वाद्य के रूप में मान्यता दिलाने में मेहनत की थी। पंडित शिवकुमार शर्मा ने इसे लोकप्रियता की पराकाष्ठा तक पहुंचाने में विशेष योगदान दिया। पिता पंडित उमा दत्त शर्मा ही उनके गुरू थे। श‍िवकुमार शर्मा ने पहले फ‍िल्म संगीत में संतूर बजाया। उससे वे संतुष्ट नहीं थे। श‍िवकुमार शर्मा श‍िव भक्त थे। श‍िवकुमार शर्मा अपनी सफलता को ‘विश्वनाथ बाबा’ का आशीर्वाद मानते थे। वे अपने कार्यक्रम के दिन कमरे से बाहर नहीं निकलते थे। वे पूरे समय अपने को एकाग्रचित करते थे। जबलपुर में भी वर्ष 2014 व 2017 में वे कार्यक्रम होने तक कमरे से बाहर नहीं निकले थे। 
क्या है संतूर- संतूर मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य यंत्र है और इसे सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था। संतूर का भारतीय नाम 'शततंत्री वीणा' यानी सौ तारों वाली वीणा है जिसे बाद में फ़ारसी भाषा से संतूर नाम मिला।संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार बक्सानुमा यंत्र है जिसके ऊपर दो-दो मेरु की पंद्रह पंक्तियाँ होती है। एक सुर से मिलाये गये धातु के चार तार एक जोड़ी मेरु के ऊपर लगे होते हैं। इस प्रकार तारों की कुल संख्या 60 होती है।आगे से मुड़ी हुई डंडियों से इसे बजाया जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

जबलपुर में कैसे हुई दुर्गा पूजा और रामलीला की शुरुआत

देश में दुर्गा पूजन का सार्वजनिक रूप से आयोजन 11 सदी से प्रारंभ हुआ। इसका सर्वाध‍िक प्रचार प्रसार नागरिकों के मध्य बंगाल से हुआ और धीरे धीरे...