कुछ वर्षों
से जयप्रकाश चौकसे का कॉलम पता नहीं क्यों जबलपुर के दैनिक भास्कर में छपना बंद हो
गया था,
जबकि सिटी भास्कर में सिर्फ दो ही कॉलम पठनीय हैं। जयप्रकाश चौकसे का
‘परदे के पीछे’ और एन. रघुरमन का ‘मैनेजमेंट फंडा’। दोनों कॉलमनिस्ट का जबलपुर से गहरा
संबंध है। जयप्रकाश चौकसे 26 वर्षों तक कभी चूके नहीं। हवाई जहाज या ट्रेन में यात्रा
के दौरान उन्होंने अपने कॉलम को प्रतिदिन लिखा। तीन बार कैंसर से उबरने के बाद अब उनकी
सहनशक्ति जवाब देने लगी है। कैंसर के साइड इफेक्ट्स से वे अशक्त हो गए।
आज दैनिक
भास्कर के सभी संस्करणों में सुधीर अग्रवाल की भावुक पंक्ति प्रकाशित हुई है। सुधीर
अग्रवाल ने लिखा-‘’ जयप्रकाश चौकसे पिछले 26 वर्षों से भास्कर में परदे के पीछे कॉलम रोजाना लिख रहे हैं। पिछले काफी
वक्त से वे कैंसर से पीड़ित हैं परंतु अस्पताल और घर पर बिस्तर इन दोनों जगह भी
उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा। आज सुबह उन्होंने मुझे फोन किया कि अभी तक बेसुध स्थिति
में भी भास्कर के करोड़ों पाठकों की शक्ति उन्हें ऊर्जा दे रही थी और वे तमाम
मुश्किलों के बाद भी रोजाना लिख लेते थे लेकिन अब ये नहीं हो पा रहा है, सेहत का मुश्किल दौर है इसलिए वे आज आखिरी कॉलम लिखना चाहते हैं। चौकसे जी
के जज्बे और 26 सालों के परिश्रम को सलाम। ईश्वर से
प्रार्थना है कि उनके साथ बहुत अच्छा हो। उनकी जगह और जज्बे को भरना असंभव है।
भास्कर और उसके पाठक इन 26 वर्षों यात्रा के लिए हमेशा
कृतज्ञ रहेंगे। इसलिए आज का कॉलम पहले पेज पर।‘’ सुधीर अग्रवाल
ने संभवत: दैनिक भास्कर में पहली बार लिखा है।
जयप्रकाश चौकसे ने अपने अंतिम कॉलम में
जबलपुर का जिक्र भी किया है। वे लगभग दस-बारह वर्ष पूर्व ‘पहल’ के आमंत्रण पर जबलपुर में सिनेमा पर व्याख्यान देने
आए थे। जब जयप्रकाश चौकसे व्याख्यान देने जबलपुर आगमन हुआ था, तो वह उनकी वह यात्रा सरल व सहज नहीं थी। उस समय वे पुणे के पास सलमान खान
के ‘बिग बॉस’ की स्क्रिप्टिंग व प्रोडक्शन
से जुड़े थे। जयप्रकाश चौकसे पुणे से बंबई, बंबई से इंदौर और
इंदौर से जबलपुर ट्रेन से पहुंचे। हम लोगों की मेजबानी में तालमेल की कमी के कारण उनकी
रूकने की व्यवस्था हमारे वरिष्ठ सहयोगी के घर में करना पड़ी। इस चूक को महसूस करने
पर जब हम लोगों ने आनन फानन में उनकी व्यवस्था एक होटल में की। उन्होंने होटल में रूकने
से इंकार कर दिया। जयप्रकाश चौकसे ने कहा-‘’ऐसा करना मेजबान का
अपमान होगा।‘’
अक्टूबर की महाअष्टमी की शाम स्थानीय रानी
दुर्गावती कला संग्रहालय की कला वीथिका में जयप्रकाश चौकसे का व्याख्यान आयोजित हुआ।
कई लोगों ने कहा अष्टमी के दिन व्याख्यान आयोजित कर बेवकूफी कर रहे हैं। कोई नहीं आएगा।
सब लोग दुर्गा-काली के दर्शन करने जाएंगे। हम लोगों ने भी सोचा देखा जाएगा..अब तो कार्यक्रम
तय हो ही गया है। उस शाम को जयप्रकाश चौकसे का व्याख्यान सुनने इतनी भीड़ उमड़ी कि
पर्याप्त कुर्सियों की व्यवस्था करने के साथ दरी बिछा कर दर्शकों-श्रोताओं को बैठाना पड़ा। कला वीथिका के बाहर जयप्रकाश चौकसे के व्याख्यान
सुनने व देखने के लिए ऑडियो-विजुअल व्यवस्था करना पड़ी। जबलपुर रेलवे स्टेशन में जयप्रकाश
चौकसे को विदा करते वक्त संकोच से एक लिफाफा देने का साहस किया गया, जिसे उन्होंने लेने से स्पष्टत: इंकार कर दिया। उन्होंने कहा-‘’पहल व जबलपुर के कारण मैं यहां व्याख्यान देने आया था।‘’ जयप्रकाश चौकसे देश में कहीं भी व्याख्यान देने नहीं जाते थे। आज कॉलम में
उन्होंने लिखा भी है कि जबलपुर के अलावा वे सिर्फ महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय
वर्धा ही व्याख्यान देने गए थे।
जयप्रकाश चौकसे का रानी दुर्गावती संग्रहालय की
कला वीथिका में व्याख्यान देने का सुफल पूरे जबलपुर शहर को मिला। उनका व्याख्यान सुनने
जबलपुर के तत्कालीन कमिश्नर भी पहुंचे थे। कमिश्नर ने जब रानी दुर्गावती कला वीथिका
के हाल देखे तो उन्होंने तुरंत उसके नवीनीकरण का निर्णय लिया। वर्तमान में जबलपुर का
साहित्यिक व सांस्कृतिक जगत कला वीथिका की सुविधाओं का जो लाभ उठा पा रहा है,
उसका पूरे श्रेय जयप्रकाश चौकसे और उनके व्याख्यान को ही जाता है।
विख्यात कथाकार व पहल के संपादक ज्ञानरंजन
ने आज जब जयप्रकाश चौकसे से फोन पर बात की तो दोनों भावुक थे। ज्ञानरंजन ने पूछा कि
क्या वे अब नहीं लिखेंगे, तब जयप्रकाश चौकसे ने कहा-तुम से
ही तो मैंने सीखा है। तुम ने लिखना छोड़ दिया। अब मैं भी नहीं लिखूंगा।
मेरे जैसे लाखो पाठक जयप्रकाश चौकसे के प्रतिदिन प्रकाशित होने वाले कॉलम ‘परदे के पीछे’ के एडिक्ट हैं। इस कॉलम को पढ़े बिना चैन नहीं मिलता। कल से जयप्रकाश चौकसे का कॉलम पढ़ने को नहीं मिलेगा। जयप्रकाश चौकसे ने लिखा है कि कॉलम उनको बेहतर इंसान बनाता गया। हम लोग भी उन्हें एक बेहतर इंसान के रूप में पहचानते हैं। उनके 26 सालों के परिश्रम व जज्बे को सलाम।
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