आज फिल्म अभिनेता रहमान साहब को याद करने का दिन है। जी हां आज के दिन यानी कि 23 जून 1921 को उनका जन्म लाहौर में हुआ था लेकिन उनके जीवन में जबलपुर का विशेष महत्व हर समय बना रहा। रहमान की स्कूल के बाद की शिक्षा जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज में हुई थी। राबर्टसन कॉलेज और जबलपुर में उनके रहने के ठौर ठिकाना व्यौहार निवास पैलेस ने रहमान के व्यक्तित्व निर्माण में विशेष भूमिका निभाई।
रहमान फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे खलनायक रहे
जिन्होंने कभी ढिंशूम-ढिंशूम नहीं किया और न ही पिस्तौल चलाई लेकिन उनकी खलनायकी
इस मामले में विशिष्ट रही कि जब भी वे सिनेमा के पर्दे पर आते दर्शक सतर्क हो कर
बैठ जाते थे कि ये आदमी कोई न कोई चाल चलने वाला है। फिल्मों में नाइट सूट या
फार्मल सूट के साथ पाइप या सिगरेट पीते हुए रहमान सधी व गहरी आवाज़ में अपने
डॉयलाग बोलते थे,
तब टॉकीज में लोग उनके एक एक लफ़्ज को सुनते थे। वक्त फिल्म में
रहमान की चिनॉय सेठ की भूमिका और राजकुमार के राजा की भूमिका के बीच के संवादों को
भला कौन भूल सकता है। प्यासा के घोष, साहब, बीवी और गुलाम के छोटे सरकार और चौदहवीं का चाँद के मजबूत नवाब की भूमिका
में रहमान ने अभिनय के नए झंडे गाड़े।
रहमान जिस परिवार में जन्मे वह एक रॉयल पश्तून
खानदान था। इस खानदान की मित्रता जबलपुर के व्यौहार राजेन्द्र सिंह से थी। रहमान
की कॉलेज शिक्षा की बात आयी तो उन्हें जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज में पढ़ने के लिए
भेज दिया गया। कॉलेज में एडमिशन के बाद रहमान के ठौर ठिकाने की बात आयी तो व्यौहार
राजेन्द्र सिंह ने इसकी व्यवस्था जबलपुर के हनुमानताल वार्ड (साठिया कुआं) में
व्यौहार निवास पैलेस में कर दी। रहमान के साथ उस समय पीएल संतोषी (प्यारेलाल
श्रीवास्तव/संतोषी) भी वहीं रहते थे। साथ रहते हुए दोनों की मित्रता हो गई। पीएल
संतोषी को तो जबलपुर में उस समय मौका मिल गया था जब यहां एक फिल्म की शूटिंग हो
रही थी। फिल्म यूनिट को एक डॉयलाग अस्सिटेंट की ज़रूरत थी। संतोषी एक अच्छे लेखक
थे और उन्होंने अपने दायित्व को भली भांति निभाया। इसके बाद संतोषी का फिल्म
इंडस्ट्री में जाने की रुचि बढ़ी। रहमान की राबर्टसन कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही
संतोषी किस्मत अजमाने बंबई चले गए।
रहमान को राबर्टसन कॉलेज में अध्ययन के दौरान
हिन्दी भाषा और जबलपुर की तहज़ीब को जानने व समझने का मौका मिला। एक तरह से युवा
रहमान के व्यक्तित्व निर्माण, भावनाओं के विकसित होने और आम
जीवन को समझने में जबलपुर की भूमिका महत्वपूर्ण रही। रहमान ने जबलपुर में जीवन को
समझा। बाद में रहमान के फिल्मी कैरियर में जबलपुर का वातावरण और यहां सीखी हुई
बातें बहुत काम की सिद्ध हुईं।
रहमान राबर्टसन कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद
पुणे चले गए। यहां 1942 में वे ट्रेंड पायलट बन कर रॉयल इंडियन एअर फोर्स में चले
गए लेकिन कुछ ही दिनों बाद फिल्म इंडस्ट्री के मोह के चलते वे बंबई चले गए। बंबई
में रहमान फिल्म निर्देशक विश्राम बेडेकर के थर्ड अस्सिटेंट डायरेक्टर बन गए। बेडेकर
ने ही एक फिल्म में रहमान को छोटा सा रोल भी दिया। जबलपुर में हुई मित्रता के
चलते पीएल संतोषी ने 1946 में प्रभात स्टूडियो की ‘हम एक हैं’
में देव आनंद के साथ रहमान को लिया। इस फिल्म से ही देव आनंद व
रहमान दोनों खूब लोकप्रिय हुए। इसके बाद रहमान ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। अभिनय
की सहज शैली के बावजूद, उन्होंने अपने अभिनय कौशल पर
नियंत्रण बनाए रखा, जो उनके कुलीन स्वभाव के साथ मिलकर उन्हें
अपने समय के अन्य अभिनेताओं से अलग बनाता था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें