सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

🔴 लेखक के जाने के बाद सहानुभूति में पुरस्कार देना उचित नहीं': ज्ञानरंजन

'लेखकों को पुरस्कार तब दिए जाते हैं, जब उसकी लोकस्वीकृति हो जाती है। कई बार ऐसे लोगों को पुरस्कार नहीं मिल पाता, जिन्हें मिलना चाहिए। अक्सर ऐसा भी देखा गया है कि लेखक के दिवंगत होने के बाद सहानुभूति में उसे पुरस्कार दिया गया। ऐसा नहीं होना चाहिए।' यह बात पहल के संपादक व विख्यात कथाकार ज्ञानरंजन ने 3 फरवरी को बाँदा में पत्रकारों से बातचीत में व्यक्त की। ज्ञानरंजन को 4 फरवरी को बाँदा में प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान से सम्मानित किया गया। 

बांदा का सफर करते हुए मन में कौन सी छवियां कौंधी ? ज्ञानरंजन ने कहा- बनारस, कोलकाता की तरह बाँदा मुझे पहले से आकर्षित करता रहा है। यहां कवि केदारनाथ अग्रवाल और बहुत से रचनाकारों से मुलाकात होती रही है। ज्ञानरंजन ने कहा कि वे बाँदा को जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं। पहले और आज की चुनौतियों में कितना अंतर देखते हैं ? 

ज्ञानरंजन ने कहा- जब हमने कलम उठाई थी, तब अनगिनत लिखने वाले थे। मैंने अपने एक संस्मरण में लिखा है कि मैं तारामंडल के नीचे एक आवारागर्द था। तब चुनौतियां बहुत थीं, जिनसे सीखने को मिला। नई तकनीक से लेखन की दुनिया में नई चुनौतियां सामने आई हैं, लेकिन तकनीक मनुष्यता के विरुद्ध नहीं है। मेरा लेखन जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में लाया गया तो उसमें भी स्वागत हुआ।

नए लेखक क्या व्यक्ति और समाज के हितों में समवेत चिंतन कर रहे हैं? ज्ञानरंजन का जवाब था-कोरस में भी एक आवाज अलग होती है। वही सच्ची आवाज होती है। केदारनाथ अग्रवाल की धरती पर उगी नई फसलों से कितना मुतमइन हैं? उन्होंने कहा मैं इलाहाबाद में पढ़ता था। वहां से बाँदा से दूरी बहुत कम है। अक्सर केदार जी से मिलने यहां आता था। उनके बाद से नए लेखकों की परंपरा चल रही है। सुंदर आयोजन होते हैं। यह अन्वेषण का विषय है कि इस छोटे से कस्बे में इतने साहित्यकार कैसे हुए।

'पहल' की यात्रा को अब आप कैसे देखते हैं? ज्ञानरंजन ने कहा-आपातकाल के कुछ महीनों पहले ही पहल की शुरुआत की थी। उसका प्रकाशन बंद कराने को अनेक आक्रमण हुए, लेकिन पाठकों, लेखकों के सहयोग से पहल जारी रही। कोई अंक रोका नहीं। पहल में हर भारतीय भाषा का साहित्य छपता था। नए लेखकों को कोई संदेश ? ज्ञानरंजन ने कहा-हिन्दी में नए लेखकों का बड़ा कुनबा प्रवेश कर रहा है। अच्छे की पहचान कठिन हो गई है। पिछले दिनों अनिल यादव का यात्रा विवरण 'कीड़ाजड़ी' और चंदन पांडेय का उपान्यास 'कीर्तिगान'' प्रकाशित हुआ। यह रचनाएं शीर्ष पर हैं। यह सूची और भी आगे जा सकती है।🔷



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