6 फरवरी 2024 को सुबह कोहरे की मोटी परत के बीच अचानक रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के सामने दायीं ओर निगाह गई तो देखा कि शहर के एक नामचीन बिल्डर का चमचमाता बोर्ड गड़ा हुआ दिखा। बोर्ड को देखते हुए तुरंत आभास हो गया कि यह ऐतिहासिक ज़मीन और उसमें बना हुआ विशाल बंगला भी बिक गया। डुमना एअरपोर्ट मार्ग पर हजारों लोग यहां से गुजरते हैं। जिनमें से अधिकांश विकास के लिए भैराए हुए जबलपुर के लोग हैं। इसमें सभी पीढ़ी के लोग हैं। नई पीढ़ी के लोग तो कुछ भी नहीं जानते और पुरानी पीढ़ी के लोग इस पुराने बंगले का नाम ‘ब्लेगडान’ भूल चुके हैं। इतिहास के कुहासे की परतों में ओझल हो गया ब्लेगडान। जबलपुर के इतिहास से ‘ब्लेगडान’ बंगला का गहरा संबंध है। ब्लेगडान की कुछ विशेषताएं इसे खास बनाती थी। ब्लेगडान जबलपुर की प्रथम सेंट्रली एअरकूल्ड इमारत थी। ब्लेगडान का अर्थ होता है-From the dark valleyब्लेगडान का धुंधला इतिहास-कुछ साल पहले तक ‘ब्लेगडान’ की चारदीवारी के मुख्य द्वार के बाएं ओर सीमेंट के खंबे में ‘ब्लेगडान’ दर्ज था लेकिन समय के साथ वह ध्वस्त हो गया। तत्कालीन मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल (एमपीईबी) और ब्लेगडान इतिहास एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। तत्कालीन मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल का मुख्यालय बोर्ड रूम रामपुर स्थित पुराने शेड (वर्तमान में आफिसर्स मेस) हुआ करता था। तब मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल का कोई अधिकारिक रेस्ट हाउस नहीं था। 1968 में विद्युत मण्डल के चेयरमेन पीडी ने चटर्जी जबलपुर विश्वविद्यालय के सामने के बंगले को विद्युत मण्डल के रेस्ट हाउस के रूप में चुना। तहकीकात करने में तो भी कच्ची पक्की जानकारी मिली उसके अनुसार यह बंगला इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक बड़े वकील की संपत्ति थी। विद्युत मण्डल के कुछ पुराने इंजीनियर व कर्मचारी कहते हैं कि वह वकील नहीं बल्कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के किसी जस्टिस की मिल्कियत थी। विद्युत मण्डल ब्लेगडान को रेस्ट हाउस के रूप में वर्ष 1993 तक उपयोग में लाता रहा। मालूम हो 1989 में विद्युत मण्डल ने 1989 में अपने मुख्यालय के तौर पर शक्तिभवन का निर्माण कर लिया और बोर्ड रूम को आफिसर्स मेस के रूप में परिवर्तित कर लिया गया। एक जानकारी के अनुसार यह बंगला जेसू (जबलपुर इलेक्ट्रिक सप्लाई अंडरेटेकिंग) के रेजीडेंट इंजीनियर का अधिकारिक निवास था। मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल ने जब जेसू का अधिग्रहण किया तो इस बंगले का अधिपत्य विद्युत मण्डल को मिल गया।
अर्जुन सिंह रूम नंबर 2 में रूकना पसंद करते थे-एमपीईबी के कुछ सिविल इंजीनियरों ने जानकारी दी कि एक समय जबलपुर आने वाले अति विशिष्ट व विशिष्ट अतिथियों को रूकवाने की व्यवस्था सर्किट हाउस के स्थान पर ब्लेगडान में की जाती थी। खान अब्दुल गफ्फार खां (सीमांत गांधी) व हॉकी के जादूगर ध्यानचंद जबलपुर प्रवास के दौरान ब्लेगडान में ही रूके थे। इनके साथ ही उस समय जबलपुर आने वाली राजनैतिक हस्तियां ब्लेगडान में रूकना पसंद करती थीं। ब्लेगडान का रूम नंबर 2 मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को प्रिय था। वे यहां रूकना हर समय पसंद करते थे। प्रो. यशपाल को ब्लेगडान में विकसित किए गए पेड़-पौधों से लगाव था। मोतीलाल वोरा को ब्लेगडान की लोकेशन भाती थी।
जबलपुर के इतिहास का प्रथम मोज़ाइक फर्श-ब्लेगडान लगभग साढ़े तीन एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ था। मुख्य द्वारा से भीतर तक क्ले ब्रिक्स की सड़क थी। जबलपुर के इतिहास में सबसे पहले ब्लेगडान में मोज़ाइक फर्श बनाया गया। इसकी फ्लोरिंग इतनी वैज्ञानिक थी कि पानी गिरने पर भी एक स्थान पर एकत्रित नहीं होता था बल्कि बाहर निकल जाता था। ब्लेगडान जबलपुर की प्रथम सेंट्रली एअरकूल्ड इमारत थी। पूरे बंगले को एअरकूल्ड करने के लिए धरातल या बेसमेंट में एक बड़ा कूलर स्थापित किया गया था। वहां से पूरे बंगले में डक या नालियां निकाली गई थी। कूलर से निकलने वाला ठंडी हवा से बंगला एअरकूल्ड रहता था। बंगले में की दीवारों के बीच में केविटी का प्रावधान था। यानी कि प्रत्येक कक्ष की में दो दीवारें रखी गई थीं और उनके बीच में अंतर रखा गया। इससे कमरों को ठंडा या गर्म रखने में मदद मिलती थी। ब्लेगडान के प्रत्येक कक्ष के बाथरूम में मोज़ाइक के बॉथटब थे। ब्लेगडान में बिजली के जितने भी स्विच थे वे पीतल के थे। एमपीईबी के एक रिटायर्ड सिविल इंजीनियर सुनील पशीने जानकारी दी कि पीतल के इन स्विचों को बदलने की जरूरत नहीं पड़ी और न ही वे कभी खराब हुए। ब्लेगडान में एक ड्राइंग रूम, एक डायनिंग रूम, तीन सुईट, एक पेंट्री व एक किचन था। पूरे रेस्ट हाउस में सागौन का फर्नीचर था। ब्लेगडान के ऊपरी हिस्से में विशाल गीज़र लगा हुआ था जिससे 24 घंटे गर्म पानी की सप्लाई होती रहती थी। हॉल में एक विशाल फायर प्लेस था, जो ठंड में यहां रूकने वालों के शरीर में ऊर्जा भर देता था।
विदेशी पेड़-पौधे करते थे आकर्षित-ब्लेगडान के बाहरी परिसर में अधिकांश विदेशी प्रजाति के पेड़-पौधे लगाए गए थे। उस समय ऐसे पेड़-पौधे बहुत कम देखने को मिलते थे। बताया जाता है कि पूरे परिसर में बागवानी का उच्च स्तर था। कई बार लोग उत्सुकतावश इन पेड़-पौधे और उनमें खिलने वाले फूलों को देखने आते थे।
विद्यार्थियों का उपद्रव भी झेला ब्लेगडान ने-जबलपुर विश्वविद्यालय के ठीक सामने ब्लेगडान की मौजूदगी कालांतर में परेशानी का सबब बनी। सातवें-आठवें दशक में जबलपुर विश्वविद्यालय के छात्र उग्र हुआ करते थे। छात्रों द्वारा ब्लेगडान के फोन का उपयोग करने से जो शुरुआत हुई वह बाद में यहां जबर्दस्ती खाने-पीने, कमरों में कब्जा जमाने और कई बाद यहां की क्राकरी को ले जाने तक बात पहुंच गई। वीके ब्राम्हणकर के मेम्बर सिविल इंजीनियरिंग के दौरान नीतिगत फैसला ले कर एमपीईबी ने इस रेस्ट हाउस का अध्याय बंद कर दिया।
ब्लेगडान का बंगला जबलपुर के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय रहा। कुछ दिन बाद यहां मल्टी काम्पलेक्स व अपार्टमेंट बनेगा। भविष्य में रहने वालों को इस बात का आभास भी नहीं होगा कि जिस स्थान पर वे रह रहे हैं उसकी नींव के नीचे कितने और इतिहास दर्ज हैं।🟦
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बुधवार, 7 फ़रवरी 2024
🔴इतिहास के कुहासे की परतों में ओझल होता ब्लेगडान
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