शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

जबलपुर और टेलीग्राफ विभाग

टीटीसी जबलपुर 


    जबलपुर की टेलीग्राफ फेक्टरी पिछले कुछ दिनों से सुर्ख‍ियों में है। जबलपुर और टेलीग्राफ के संबंध में कुछ तथ्यों की जानकारी मिली है जो काफी रोचक और हमें उस इतिहास की ओर ले जाती है जिससे हम अनजान हैं। प्रत्येक जिले में पोस्ट ऑफ‍िस पुलिस थाने में रहते थे। पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखने वाला मुंशी ही पोस्ट ऑफ‍िस का भी काम देखता था। उसके पास एक पोस्टल भृत्य रहता था तो च‍िठ्ठ‍ियों को गंतव्य स्थान तक पहुंचा देता था। उस समय जबलपुर, सागर और नर्मदा टेरीटरी के अंतर्गत आता था जिसे नार्थ वेस्ट प्रॉव‍िन्स कहते थे। उस समय डाक की व्यवस्था बड़ी असंतोषजनक थी। 1867 में पूरा वि‍भाग चीफ इंस्पेक्टर के अध‍िकार क्षेत्र में आ गया जो इम्पीरियल पोस्टल डिपार्टमेंट को संभालता था। 

    टेलीग्राफ सेवा जबलपुर में 1855 में हुई थी उपलब्ध-टेलीग्राफ सेवा 1857 की क्रांति के समय इस विभाग ने बड़ी सेवा की और टेलीग्राफ और तार का काम भी अपने जिम्मे ले लिया। कलकत्ते से बंबई तक तार का संबंध जोड़ने के लिए इस विभाग ने टेलीग्राफ की एक विशेष लाइन मिर्जापुर से सिवनी तक डाली जो जबलपुर हो कर जाती थी। इससे सिद्ध होता है कि टेलीग्राफ विभाग 1858 में स्थापित हो गया था। जबलपुर का टेलीग्राफ ऑफ‍िस देश की नव स्थापित व्यवस्था का विशेष भाग था। टेलीग्राफ सेवा जबलपुर के लोगों को 1855 से ही उपलब्ध थी। जबलपुर का टेलीग्राफ दफ्तर उस समय ठगी जेल था और यहां कर्नल डब्ल्यूएच स्लीमन अपना दफ्तर लगाते थे। स्लीमन ने ही ठगों को देश से निर्मूल किया। 

टेलीग्राफ फेक्टरी जबलपुर का गेट नंबर 2 

    169 वर्ष पुरानी इमारत-टेलीग्राफ विभाग की यह इमारत 169 वर्ष पुरानी है। टेलीग्राफ सेवा का विस्तार होने से उसमें टेलीग्राफ की नवीन सामग्री एवं उपकरण रखने के लिए स्थान की कमी पड़ने लगी थी। इसलिए सीटीओ का नया भवन बनाया गया ताकि इसका संचालन व्यवस्थ‍ित रूप से हो सके और जनता को अध‍िक सुवि‍धाएं मिल पाए। 

    द्वितीय विश्व युद्ध में कलकत्ता से जबलपुर स्थानांतरित हुआ टेलीकम्युनिकेश सेंटर-देश में प्रथम टेलीकम्युनिकेशन सेंटर की स्थापना सन् 1929 में कलकत्ता में हुई। 22 अप्रैल 1942 को इसे कलकत्ता से जबलपुर स्थानांतरित कर दिया गया। तब से यह केन्द्र यहीं काम कर रहा है। दूरसंचार से संबंध‍ित समस्त जानकारी और प्रश‍िक्षण देने के लिए पहले मॉडल हाई स्कूल में इसकी कक्षाएं लगती थीं जो बाद में पुराने एल्ग‍िन अस्पताल मिलौनीगंज में लगने लगीं। कुछ समय बाद इसके श‍िक्षण व प्रश‍िक्षण का कार्य टेलीग्राफ वर्कशॉप में होने लगा। एल्ग‍िन अस्पताल से इसकी कार्य प्रणाली का ज्ञान प्राप्त करने वाले प्रश‍िक्षणार्थी अध‍िकारियों के निवास सुविधा के लिए सुरक्ष‍ित कर दिया गया। प्रथम वर्ष में इसके प्रश‍िक्षणार्थ‍ियों की संख्या केवल 70 थी जो कुछ वर्षों में बढ़ कर 800 तक पहुंच गई। 

    टीटीसी स्थापित हुआ था 1952 में-विकास के साथ दूरसंचार की उपयोगिता भी बढ़ी इसलिए विस्तार भी जरूरी हो गया। टेलीफोन विभाग को एक विशाल, सर्व सुविधा संपन्न, उपकरण सज्ज‍ित बहुउद्देश्यीय केन्द्र की जरूरत महसूस हुई जिसमें इस क्षेत्र में हुए क्रमिक विकास और तकनीक की नवीनतम वैज्ञानिक जानकारी दी जा सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार ने रिज रोड पर 35 एकड़ भूमि प्रदान की जिस पर 21 मार्च 1952 को राजकुमार अमृत कौर ने दूरसंचार के नए भवन का श‍िलान्यास किया। यह टीटीसी कहलाया। अब यह BHARAT RATNA BHIM RAO AMBEDKAR INSTITUTE OF TELECOM TRAINING कहलाता है। 

   जबलपुर का पहला टेलीफोन एक्सचेंज 1911 में बना-जबलपुर का पहला टेलीफोन एक्सचेंज 1911 में प्रारंभ हुआ। उस समय चुम्बकीय प्रयोगशाला ही थी जिसमें 20 लाइनें चला करती थीं। 1934 में 100 लाइनों का सीबी बोर्ड प्रारंभ हुआ। स्वतंत्रता के पश्चात् 1950 में 300 लाइनों का बहुउद्देश्यीय शुरु हुआ। 600 लाइनों का दूसरा एक्सचेंज 1965 में राइट टाउन में और तीसरा 1969 में मिलौनीगंज में प्रारंभ हुआ।      

    द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जबलपुर में एक और टेलीग्राफ स्टोर्स और वर्कशॉप खोला गया-दूरसंचार भंडार संगठन दूरसंचार बिरादरी के सबसे पुराने सदस्यों में से एक है। अलीपुर, कलकत्ता में टेलीग्राफ वर्कशॉप ने 1885 की शुरुआत में अपना उत्पादन शुरू किया और इस तरह से टेलीग्राफ स्टोर्स के रूप में एक सहयोगी विंग को जन्म दिया, जो इसके गोदाम कीपर के रूप में कार्य करता था। ये दोनों संगठन अलीपुर, कलकत्ता में निदेशक, कार्यशाला और भंडार के रूप में जाने जाने वाले एक अधिकारी के नियंत्रण में एक साथ विकसित हुए और एक दूसरे के पूरक के रूप में कार्य कर रहे थे। यह व्यवस्था लगभग अगले 100 वर्षों तक जारी रही। इसके बाद टेलीग्राफ वर्कशॉप और स्टोर्स के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया और भारतीय P&T विभाग के दो अलग-अलग विंग बनाए गए, जिनका नाम था दूरसंचार कारखाना और दूरसंचार भंडार, जो विशुद्ध रूप से प्रशासनिक कारणों से था। ऐतिहासिक रिकॉर्ड में, इस प्रतिष्ठान को 1937 से पहले बर्मा के क्षेत्र सहित पूरे देश में सभी प्रकार की टेलीग्राफ/दूरसंचार सामग्री की आपूर्ति के लिए सराहा गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रणनीतिक कारणों से जबलपुर में एक और टेलीग्राफ स्टोर्स और वर्कशॉप खोला गया था।

    टेलीग्राफ फेक्टरी कहलाती थी पुतलीघर-वर्तमान टेलीग्राफ फेक्टरी जहां मौजूद है वह स्थान पुतलीघर कहलता था। पहले यहां गोकुलदास कॉटन मिल थी। टेलीग्राफ फेक्टरी में अभी भी सेठ गोकुलदास द्वारा बनाया गया ऑडीटोरियम मौजूद है। इस पुतलीघर के मैनेजर आर्थर राइट थे। इन्हीं आर्थर राइट के नाम से फेक्टरी के आसपास के इलाके को राइट टाउन नाम दिया गया। जानकारी मिली है कि जिस कक्ष में आर्थर राइट टेबल कुर्सी पर बैठ कर काम किया करते थे वह कक्ष अब भी मौजूद है। 

    जबलपुर और टेलीग्राफ के बारे इतना बखानने की जरूरत इसलिए है कि जबलपुर के इतिहास में टेलीग्राफ रग रग में मौजूद है। हम लोग अहसान फ़रामोश न बनें।

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