बुधवार, 16 जुलाई 2025

कौन थे घमंडी महाराज जिनके नाम से जबलपुर के एक चौक का नाम घमंडी पड़ा

जबलपुर में वैसे तो कई चौक हैं लेकिन लार्डगंज थाना से बड़ा फुहारा मार्ग के बीच में सिर्फ एक चौराहा है जिसे सब लोग घमंडी चौक के नाम से जानते व पहचानते हैं। जिस स्थान पर घमंडी चौक है वहीं 14 अगस्त 1942 को गुलाब सिंह 16 साल की उम्र में शहीद हुए थे। वर्तमान में जब भी आजादी के किस्से सुनाए और छापे जाते हैं जिक्र आता है कि गुलाब सिंह घमंडी चौक पर शहीद हुए थे। जब यह घटना हुई थी तब उस स्थान का नाम घमंडी चौक प्रचलन में नहीं आया था।   

      यह वही घमंडी चौक है जहां राजनेता शरद यादव देवा मंगोड़े वाले के यहां बैठकी करते थे। शरद यादव राष्ट्रीय क्ष‍ितिज पर चमकने लगे थे लेकिन जब भी वे जबलपुर आते तब वे एक बार जरूर देवा मंगोड़े वाले के यहां मंगोड़े खाते थे। जबलपुर के मूल वाश‍िन्दों के अलावा बाहर के लोगों के मन में यह उत्सुकता रहती है कि चौक वह भी घमंडी नाम का। इसकी कहानी सिंचाई विभाग में मुख्य अभ‍ियंता के पद पर कार्यरत रहे एमजी चौबे ने सुनाई। 

चौबे परिवार में सन् 1918 में यह स्थिति बनी कि महिला के नाम पर केवल उनकी दादी कौशल्या चौबे ही शेष रहीं। परिवार के नाम पर एक अविवाहित देवर, दो पुत्र स्वयं के, एक पहली पत्नी का और दो एक अन्य देवर के थे। इस प्रकार पांच बच्चों का लालन-पालन चौबे परिवार की दादी ने किया। जबलपुर के उपनगर खमरिया के पास झिरिया गाँव में सभी सम्मिलित रहते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के समय जमीन आदि सरकार ने खमरिया फैक्ट्री के निर्माण के लिए अधिग्रहित कर ली। मजबूरन परिवार को जबलपुर आना पड़ा। परिवार जबलपुर में घने बसे दीक्ष‍ितपुरा में रहने लगा। एमजी चौबे के पिताजी के चचेरे भाई थे चेतराम चौबे व घनश्याम दास चौबे। सभी पाँचों भाईयों को पहलवानी का बेहद शौक था। 

घनश्याम दास चौबे भी पहलवानी करते थे और जीवन भर अविवाहित रहे। वे बचपन से ही सदैव हड़बड़ी व जल्दबाजी रहते थे। चौबे परिवार की दादी की बात किसी ने सुनी होगी तो उसके अनुसार घनश्याम चौबे जब भोजन करने बैठते तो उंगलियों से तबला बजाते रहते थे और भोजन के लिए ‘’जल्दी करो.....कितनी देर और लगेगी’’ जैसे वाक्य लगातार बोलते रहते थे। उनकी इस आदत के कारण दादी उनको घमंडी कहकर बुलाती थीं। धीरे-धीरे घर में और उन्हें जानने पहचानने वाले लोग उन्हें घमंडी के संबोधन से पुकारने लगे। घनश्याम चौबे जब युवा हुए और वयस्कता की ओर कदम बढ़ाने लगे तब लोगों ने उन्हें घमंडी महाराजका संबोधन दिया। 

 घनश्याम चौबे उर्फ घमंडी महाराज ने चौक के नजदीक बड़ा फुहारा के ओर अग्रवाल होजि‍यरी के बाजू में सूर्य विजय होटल खोल ली और उसका संचालन करने लगे। तब तक लोगों ने घनश्याम चौबे कहना छोड़ दिया था उनका नाम ही घमंडी हो गया। उनके नाम के कारण चौक या चौराहा का नाम घमंडी चौक पड़ गया और जो एक बार नाम पड़ा और अब तक लोगों की जुबान पर है। चौबे परिवार के बच्चे उन्हें घम्मी कक्का कहते थे। 

घनश्याम चौबे उर्फ घम्मी कक्का उर्फ घमंडी महाराज का निवास महाकौशल स्कूल के पीछे था। उनके मकान के चार ब्लाक थे। एक में खुद रहते थे और शेष तीन में किरायेदार। घमंडी महाराज कभी मुंबई गए होंगे तो वहां से एक अनाथ बच्चे को ले आए। वही उनकी देखभाल करता था। उसका नाम उन्होंने बद्री रखा था। चौबे परिवार की दादी बद्री नाम का संबोधन कभी नहीं करती थी। दरअसल चौबे परिवार के दादा जी यानी कि दादी के पति का नाम बद्री प्रसाद चौबे था। बच्चा बद्री अच्छा नर्तक था। बच्चों की फरमाइश पर उस समय प्रचलित जंगली फिल्म के गाने आईय या सुकू शुकू .. करू मैं क्या सुकू सुकू ... हो गया दिल मेरा सुकू सुकू.... कोई मस्ताना कहे कोई दीवाना कहे  कोई परवाना कहे, जलने को बेकरार....चाहत का मुझ पे असर मैं दुनिया से बेखबर...चलता हूं अपनी डगर...मंजिल है मेरी प्यार पर शानदार डांस करता था। 

घमंडी महाराज का वर्ष 1961 में अस्थमा के कारण निधन हो गया। उनके निधन के उपरांत घमंडी महाराज की सारी संपत्ति उनके सगे बड़े भाई, शेखर चौबे के पिता चेतराम चौबे को विरासत में मिली। विरासत में एक मोटर साइकिल भी मिली थी एजेएस। उसकी पेट्रोल टंकी पर गियर का लीवर लगा था। 

घमंडी महाराज के परिवार के रामेश्वर चौबे सुबह से शाम तक सुपर मार्केट काफी हाउस में मौजूद रहते हैं। काफी हाउस एक तरह से अव‍िवाहित रामेश्वर चौबे का घर जैसा ही है। काफी हाउस के तमाम कार्मिक उनका ख्याल रखते हैं। उनकी बड़ी मूंछे बरबस काफी हाउस में आने वालों का ध्यान आकर्ष‍ित कर लेती है। रामेश्वर चौबे भी किसी महाराज से कम नहीं हैं। 

घमंडी महाराज को गुजरे पचास साल बीत गए लेकिन घमंडी चौक से लाखों लोग गुजरते हैं किसी को याद नहीं आती और न ही याद आते हैं घनश्याम चौबे उर्फ घम्मी कक्का उर्फ घमंडी महाराज।🔷


    


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