मंगलवार, 12 अगस्त 2025

युग तुलसी रामकिंकर का जबलपुर से क्या संबंध है

31 जुलाई को तुलसी जयंती थी। जुलाई के अंतिम सप्ताह से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक तुलसी सप्ताह पूरे देश में मनाया जाता है।


रामचरित मानस पढ़ कर तुलसीदास की कल्पना की जा सकती है, लेकिन युग तुलसी की उपाध‍ि से विभूषि‍त रामकिंकर जी को लोगों ने प्रत्यक्ष देखा है और उनसे रामकथा और उसकी व‍िभि‍न्न व्याख्या को सुना है। रामकिंकर जी का जबलपुर से गहरा नाता है। जबलपुर से ही उन्होंने रामकथा सुनाना शुरु की थी।

रामकिंकर जी के पिताजी पंडित श‍िव नायक उपाध्याय मूल रूप से मिर्जापुर जिले के बरैनी गांव के रहने वाले थे लेकिन उन्होंने जबलपुर को अपना ठिकाना बना लिया था। रामकिंकर जी का जन्म जबलपुर में हुआ। वर्ष 2006 में प्रकाशि‍त उनकी एक पुस्तक के अनुसार जन्मतिथि 1 नवम्बर 1924 है। जबलपुर के नुनहाई क्षेत्र में प्रेमलाल अग्रवाल (सराफ) का निवास स्थान था। यहीं उनकी फर्म सेठ प्रेमलाल गुलाबचंद सराफ थी। यह दुकान 1920 में स्थापित हुई थी। प्रेमलाल सराफ के आवास के एक हिस्से में रामकिंकर जी के पिता पंडित श‍िव नायक उपाध्याय रहा करते थे। दोनों परिवार के बीच परस्पर मधुर संबंध थे। उनके संबंध को देख कर ऐसा अहसास होता था कि सभी एक बड़े परिवार के सदस्य हों। उनके बीच संबंध की मधुरता किस तरह की थी उसका अंदाज इस बात से पता चलता है कि जब पंडित श‍िव नायक उपाध्याय कभी बाहर जाते थे, तब वे पुत्र रामकिंकर को कह जाते थे कि जरूरत पड़ने पर वे प्रेमलाल सराफ या उनके पुत्र वल्लभदास अग्रवाल से पैसे मांग सकते हैं। रामकिंकर जी प्रेमलाल अग्रवाल को अपना बब्बा ही मानते थे और वल्लभदास को बड़ा भाई। रामकिंकर जी को प्रेमलाल अग्रवाल से पैसा लेने में संकोच होता था, तो वे कोश‍िश करते कि उनका सामना बड़े भैया यानी कि प्रेमलाल अग्रवाल से न हो। दरअसल प्रेमलाल अग्रवाल पैसा मांगने का कारण पूछते थे। वहीं वल्लभदास जी जिन्हें रामकिंकर भैया जी का संबोधन देते थे वे बिना कुछ पूछे उनकी जरूरत के मुताबिक तुरंत पैसे दे देते थे।

रामकिंकर जी ने जबलपुर के पंडित लोकनाथ संस्कृत विद्यालय में संस्कृत का अध्ययन किया, लेकिन उनकी औपचारिक शि‍क्षा किसी स्कूल या कॉलेज में नहीं हुई थी। रामकिंकर जी पढ़ाई लिखाई में अत्यंत साधारण थे। रामायण के व्याख्याकार पिता पंडित श‍िव नायक उपाध्याय का प्रभाव रामकिंकर जी पर पड़ा और उन्होंने उनके संस्कार भी ग्रहण किए।

प्रेमलाल अग्रवाल के आवास के आंगन में दस बीस लोगों की उपस्थिति में रामकिंकर जी की रामकथा की शुरुआत हुई। खैरागढ़ में पिता पंडित शिव नायक उपाध्याय कथा सुनाने गए थे लेकिन वे अचानक अस्वस्थ हो गए। पिता जी ने रामकिंकर जी को आदेश दिया कि वे वहां मौजूद जन समूह को कथा सुनाएं। रामकिंकर जी ने पंडित जी का आदेश माना और उस समय जो शुरुआत हुई वह एक इतिहास बन गई।

जबलपुर में रामकिंकर जी की कथा व प्रवचन घर, मोहल्ले, हितकारिणी कन्या विद्यालय, डिसिल्वा स्कूल, सराफा चौक जैसे स्थानों में होते थे। यहां जन सामान्य ही कथा सुनने आता था। एक बार रामकिंकर जी की रामकथा का आयोजन राइट टाउन में महापौर पंडित भवानी प्रसाद तिवारी के निवास स्थान में हुआ। यहां शहर का प्रबुद्ध वर्ग बड़ी संख्या में पहुंचा। इसके बाद जबलपुर में रामकिंकर जी की रामायण व्याख्या में समाज के भद्र वर्ग की उपस्थिति शतप्रतिशत होने लगी।

अग्रवाल (सराफ) परिवार से रामकिंकर जी की प्रगाढ़ता के कई किस्से हैं। रामकिंकर जी प्रेम लाल अग्रवाल की पत्नी मताई बाई को अपनी माँ मानते थे। मताई बाई ममतामयी थीं। वे परिवार के बच्चों के साथ बाल रामकिंकर जी को भी अत्यंत स्नेह से भोजन करवाती थीं। वल्लभदास की बड़ी पुत्र वधु शील अग्रवाल (डा. प्रह्लाद अग्रवाल की पत्नी) हिन्दी में एमए थीं। उन्होंने रामकिंकर की कई पुस्तकों की पाण्डुलिपि तैयार करने और सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामकिंकर जी की पुस्तक का काम बाद में कानपुर में होने लगा। रामकिंकर जी की इच्छा थी कि वहां भी इसकी जिम्मेदारी शील अग्रवाल ही संभाले लेकिन परिवार के दायित्व के कारण यह संभव नहीं हुआ। वहां पुस्तक का काम शीला कोचर ने संभाला। वल्लभदास के बड़े पुत्र डा.प्रह्लाद अग्रवाल के पुत्र का नाम श्रीकांत रामकिंकर जी ने रखा था। अग्रवाल परिवार के अधिकांश बच्चों का नामकरण भी रामकिंकर जी ने ही किया था।

अग्रवाल परिवार रामकिंकर जी को पहले पंडित जी से संबोधित करता था और बाद में यह धीरे धीरे महाराज में परिवर्तित हो गया।

जब रामकिंकर जी जबलपुर में थे तब ही गुरू शिष्य परम्परा शुरु हो गई थी। जबलपुर में रघुनाथ प्रसाद तिवारी युग तुलसी के प्रथम शिष्य बने। रघुनाथ प्रसाद तिवारी प्रेमलाल गुलाबचंद सराफ फर्म का कारोबार संभालते थे।

प्रतिवर्ष तुलसी जयंती आती रहेगी और हम लोगों को यानी कि जबलपुर शहर को याद आते रहेंगे रामकिंकर जी। 🔷

(फोटो में सामने बाएं ओर रामकिंकर जी व दाएं ओर भवानी प्रसाद तिवारी बैठे हैं। भवानी प्रसाद तिवारी के पीछे दाएं ओर लुकमान और प्रेमलाल अग्रवाल परिवार के वल्लभदास जी, गोकुलदास जी, डा. प्रह्लाद अग्रवाल व जगदीश प्रसाद जी। भवानी प्रसाद तिवारी की बाएं ओर नीचे की तरफ रघुनाथ प्रसाद तिवारी बैठे हैं।)

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