राजेश दुबे ने अपने कार्टूनों के जरिए जबलपुर के समाचार पत्रों में कार्टून विधा को एक नया आयाम दिया है। राजेश ने अपनी शुरुआत नवभारत से की और इसके बाद वे दैनिक भास्कर में रहते हुए छह महीने पहले नई दुनिया में आ गए। नई दुनिया में उन्होंने सम सामायिक विषयों पर जिस प्रकार टिप्पणी की हैं, वह आशा बंधाती है कि वे जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाने लगेंगे। प्रादेशिक स्तर पर तो उनकी पहचान पहले ही बन चुकी है। उनके कार्टून खासतौर से हरिशंकर परसाईं की सूक्तियों पर उनके व्यंग्य चित्रों की सीरीज काफी ख्याति अर्जित कर चुकी है। राजेश दुबे की टिप्पणियों के साथ उनके स्केच भी आकर्षित हैं। उनका हास्य बोध (सेंस आफ हयूमर) बहुत अच्छा है।
राजेश दुबे कहते हैं कि उन्होंने छह महीने में जितना काम नई दुनिया में किया है, उतना जिंदगी भर में नहीं किया है। इसके लिए वे नई दुनिया के संपादक राजीव मित्तल को पूरा श्रेय देते हैं। राजेश अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि नई दुनिया में उन्हें जितना प्रोत्साहन मिला, उतना कहीं नहीं मिला। वे कहते हैं कि पहले उनके कार्टून सिर्फ जगह भरने के लिए होते थे। जिस दिन बड़ी खबरें न हो, उस दिन तीन-तीन कालम के कार्टून बनाने को कहा जाता था। राजेश मानते हैं कि अखबार में जब तक संपादकीय सहयोग न मिले, तब तक कार्टूनिस्ट का सफल होना संभव नहीं है। इस संबंध में उनका कहना है कि नई दुनिया में आठ-आठ कालम की कार्टून पटटी, जिस प्रकार कई बार प्रकाशित की गई है, उससे दूसरे समाचार पत्रों में भी प्रतिस्पर्धा पनपी है। वे भी अखबार में कार्टूनों को प्रमुखता देने लगे हैं। इससे प्रोफेशनेलिज्म भी आया है। अब कार्टूनिस्ट को काम करने के लिए कंप्यूटर भी मिलने लगे हैं और काम करने का पैसा भी।
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गुरुवार, 6 मार्च 2008
राजेश दुबे के कार्टून
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2 टिप्पणियां:
See Here or Here
भाई राजेश दुबे के के कार्टून वाकई सफल कार्टूनिष्ट से कमतर कतई नहीं
जहाँ तक मुझे मेरा बचपन याद है आबिद सुरती,रमाकांत निगम [कटनी], कमोबेश करीबी लगे
तक़नीकी के दौर में अन्य कार्टूनिष्टों में राजेश स्तरीय लगे...?
बधाई उनको आपको धन्यवाद
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