शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

विश्व छायांकन दिवस के अवसर पर विशेष- डा. जे. एस. मूर्ति: पचास वर्षों की सौम्य और शांत छायांकन यात्रा



डा. जे. एस. (जेम्स सुंदर) मूर्ति की पहचान जबलपुर ही बल्कि पूरे देश में फोटो जर्नलिज्म, नेचर और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर के रूप में है। उन्होंने फोटो जर्नलिज्म और कलात्मक छायांकन के मध्य अद्भुत संतुलन बना कर काम किया है। यह दोनों बातें किसी एक छायाकार में काफी कम देखने में आती है। उनके द्वारा खींचे गए छायाचित्र द संडे टाइम्स,द इंडियन एक्सप्रेस, सोशल वेल्फेयर, द हिन्दु जैसे प्रतिष्ठित समाचार व पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होते रहे हैं। उनके कई छायाचित्रों को जर्मनी, कनाडा, नीदरलैंड में आयोजित अंतरराष्ट्रीय छायाचित्र प्रतियोगिताओं में स्वीकृतियां के साथ पुरस्कृत किया गया है। डा. मूर्ति जबलपुर में फोटो आंदोलन को सक्रियता देने में हर समय आगे रहे हैं। छठे दशक में उन्होंने इसके लिए सर्वप्रथम प्रयास किया और नौवे दशक में डा. मूर्ति ने फोटोग्राफिक सोसायटी आफ जबलपुर (पीएसजे) को व्यवस्थित रूप दे कर नए फोटोग्राफर को एक मंच प्रदान किया। पीएसजे की गणना आज देश में सबसे सक्रिय सोसायटी के रूप में होती है। इसके पीछे डा. मूर्ति की मेहनत और समर्पण को कोई नकार नहीं सकता।
डा. मूर्ति को वर्ष 1969 में उस समय छायांकन में सबसे बड़ी सफलता मिली, जब उनकी छाया चित्र प्रविष्टि को फोटोग्राफिक सोसायटी आफ बंगाल (पीएबी) के द्वारा आयोजित ऑल इंडिया फोटोग्राफिक सैलून में स्वीकृत किया गया। सैलून के निर्णायकों को उनका छायाचित्र में विषय और तकनीकी रूप से नई ताजगी देखने को मिली। इसके पश्चात् डा. मूर्ति की छायांकन यात्रा आज तक जारी है। इसके बाद तो डा. मूर्ति के छाया चित्र देश-विदेश में आयोजित असंख्य सैलून में स्वीकृत हो कर पुरस्कृत हुए। इनमें टी. काशीनाथ मेमोरियल अवार्ड लखनऊ, भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के फोटो डिवीजन का अवार्ड, एग्री-हार्टीकल्चरल सोसायटी आफ इंडिया (एएचएसआई) के द्वारा कोलकाता में वर्ष 2011 में आयोजित प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि का पुरस्कार महत्वपूर्ण है।
ललित कला अकादमी, नई दिल्ली के द्वारा आयोजित प्रथम छाया चित्र प्रतियोगिता के अवसर पर जारी किए गए केटलाग में डा जे. एस. मूर्ति की प्रविष्टि सहित प्रोफाइल के प्रकाशन को अन्य छायाकार एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं। इसके अतिरिक्त डा. मूर्ति की उपलब्धियों में फोटोलवर्स आफ इंडिया स्लाइड सर्किट इंदौर, होरीजन इंडिया इंटरनेशनल सर्किट लखनऊ, एसएएम इंटरनेशनल दिल्ली, और नार्थ ईस्टर्न फोटोग्राफिक एसोसिएशन (नेपा) असम द्वारा आयोजित सैलून में प्राप्त स्वीकृतियां भी हैं। उन्हें यूपी बोर्ड आफ बॉयो-डायवरसिटी, लखनऊ द्वारा ‘टाइगर’ प्रविष्टि के लिए प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया।
छायांकन में अनवरत् पचास वर्ष डूब कर काम करने वाले डा. जे. एस. मूर्ति को वर्ष 2005 में फेडरेशन आफ इंडियन फोटोग्राफी (एफएफआईपी) ने फेलोशिप से सम्मानित किया। वर्ष 2008 में उन्हें इंडिया इंटरनेशनल फोटोग्राफिक काउंसिल (आईआईपीसी) दिल्ली द्वारा
प्लेटिनम एक्जीबिटर ग्रेड से सम्मानित किया। डा. मूर्ति ने कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफी सैलून में निर्णायक की भूमिका भी निभाई है। देश की सबसे पुरानी फोटोग्राफिक सोसायटी आफ इंडिया (पीएसआई) मुंबई द्वारा आयोजित आल इंडिया सैलून आफ फोटोग्राफी में निर्णायक के मनोनयन को वे एक उपलब्धि के रूप में देखते हैं। डा. मूर्ति द्वारा वर्ष 1997 में जबलपुर के भूकंप के समय खींचे गए छाया चित्र न्यूज एजेंसी प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई) और यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया (यूएनआई) द्वारा देश व विदेश में जारी किए गए, जिन्हें व्यापक रूप से सराहना मिली।
डा. जे. एस. मूर्ति का छायांकन के साथ-साथ पत्रकारिता शिक्षा में भी विशिष्ट स्थान है। उन्हें ‘मॉस कम्युनिकेशन एंड इट्स वेरियस डाइमेंशन’ पाण्डुलिपि पर वर्ष 1989 में प्रधानमंत्री द्वारा भारतेंदु हरिश्चंद्र राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार प्रदान किया गया।
डा. मूर्ति पचास वर्ष के छायांकन जीवन में पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के फोटो लेने को अविस्मरणीय अनुभव मानते हैं। पंडित नेहरू के उतारे गए फोटो को वर्ष 1991 में उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जबलपुर प्रवास के समय भेंट किया था। उन्होंने इंदिरा गांधी के एक पोट्रेट को भी राजीव गांधी को भेंट किया था। जो बाद में 1 सफदरजंग रोड स्थित इंदिरा गांधी सेक्रेटेरियट मेमोरियल में प्रदर्शित हुआ।
पत्रकारिता एवं संचार प्राध्यापक के रूप में उन्होंने मनीला-फिलीपींस, क्वालालाम्पुर, श्रीलंका सहित देश में कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सेमीनार में भाग ले कर महत्वपूर्ण शोध पत्र प्रस्तुत किए। डा. मूर्ति ने मॉस कम्युनिकेशन विषय पर एक पुस्तक लिखी, जिसकी वर्तमान में भी शिक्षकों सहित विद्यार्थियों में बहुत मांग है। वे इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) में कम्युनिकेशन विषय के रूप काउंसलर के रूप में कार्य कर चुके हैं। डा. मूर्ति जबलपुर, चित्रकूट और बीएचयू-बनारस विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षक के रूप में सेवाएं देते रहे हैं। डा. मूर्ति ने लगभग 10 वर्षों तक न्यूयार्क (अमेरिका) से प्रकाशित न्यू वर्ल्ड आउटलुक आर्डर के लिए कई कवर स्टोरी सहित महत्वपूर्ण रिपोर्टिंग की है।
अभी हाल ही में एकेडमी आफ फाइन आटर्स (सेंट्रल गेलरी) कोलकाता में उनकी एकल छायाचित्र प्रदर्शनी ‘एनकेचिंग कोलकाता’ आयोजित की गई, जिसे दर्शकों के साथ क्रिटिक की प्रशंसा भी मिली।
डा. जे. एस. मूर्ति अब अपने कर्मक्षेत्र जबलपुर में नहीं रहते, जिसका उन्हें दुख है, लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों ने उन्हें कोलकाता में रहने को मजबूर कर दिया है। कर्मक्षेत्र बदलने और आयु के 70 वें वर्ष में पहुंचने के बावजूद वे निरंतर सक्रिय हैं। उन्होंने फोटोग्राफी सदैव ‘शांति व एकता’ के एक सूत्र को ध्यान में रख कर की और इसमें वे सफल भी हुए।

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