रविवार, 24 फ़रवरी 2013

पीवी राजगोपाल को अन्ना हजारे से अलग, स्वयं का अस्तित्व बनाए रखने की सलाह


केरल में जन्मे गांधीवादी कार्यकर्ता पीवी राजगोपाल गांधी शांति प्रतिष्ठान के उपाध्यक्ष और एकता परिषद के प्रमुख हैं . एकता परिषद की स्थापना वर्ष १९९१ में की गई थी . राजगोपाल ने वर्धा स्थित सेवाग्राम से कृषि का अध्ययन करने के बाद ७० के दशक में चंबल के डाकुओं के समर्पण और पुनर्वास में सक्रिय भूमिका निभाई . कथकली का नृत्य का प्रशिक्षण ले चुके राजगोपाल की पत्नी कनाडा मूल की जिल कार हैरिस हैं. जिल कार हेरिस भारत भ्रमण के साथ साथ सहकारिता , आदिवासी उत्पीडन और जल -जंगल - ज़मीन से जुड़े मामलों के अध्यन के लिए आईं थी . पी वी राजगोपाल के साथ इन क्षेत्रों में काम करते उन्हें लगा कि राजगोपाल अपने आंदोलन के प्रति तन मन से ईमानदार हैं , तभी उन्होंने राजगोपाल की जीवन संगिनी बनने का फैसला किया और तभी से वे उतनी ही ईमानदारी से राजगोपाल के हर कदम पर उनके साथ रहती हैं. 
राजगोपाल के मुताबिक एकता परिषद एक अहिंसक सामाजिक आंदोलन है, जो राष्ट्रीय स्तर पर गरीब और भूमिहीन लोगों के लिए भूमि अधिकारों की मांग कर रहा है। भूमि सुधार वन अधिकारों की मांग को ले कर राजगोपाल ने २००७ में भी ग्वालियर से दिल्ली तक २५ हजार लोगों के साथ यात्रा की थी . तब केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय भूमि आयोग का गठन किया . इसके प्रमुख खुद प्रधानमंत्री थे, लेकिन सरकार निष्क्रिय ही बनी रही। इसी निष्क्रियता और दुराग्रह के खिलाफ राजगोपाल के साथ हजारों भूमिहीन फिर से जनसत्याग्रह पर ३ अक्टूबर २०१२ को ग्वालियर से निकले . यह मार्च जब आगरा पह्नुचने को था तभी केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश आगरा पहुंच गए और पीवी राजगोपाल से पैदल मार्च को समाप्त करने का आग्रह किया. श्री रमेश ने हजारों आदिवासी पदयात्रियों को भरोसा दिलाया कि यदि वर्तमान मंत्रालय में मैं ६ माह रह पाया तो उनकी सभी मांगों का न्याय संगत निराकरण कर दूंगा. उनके इस वायदे का अभी तक कोई परिणाम सामने नहीं आया है. आदिवासी अपने को एक बार फिर ठगा सा महसूस कर रहे हैं लेकिन श्री राजगोपाल के रहते उनका यह जनसत्याग्रह अनुशासन और संयम का पर्याय बन गया। इस अनुशासन और संयम के पीछे राजगोपाल का ऐसे ही मार्च निकालने का लंबा अनुभव है। वे वर्ष २००७ के पहले करीब दस राज्य स्तरीय पदयात्राएं निकाल चुके हैं. श्री राजगोपाल पिछले दिनों जबलपुर आये. उन्होंने अपने आंदोलन के बारे में श्रोताओं से विस्तार से चर्चा की और अपनी चिंता से अवगत कराया.

प्राकृतिक संसाधनों का स्थानांतरण जल, जंगल और जमीन का स्थानांतरण हो रहा है . गांव से शहर की ओर पलायन, इससे शहर में भी स्थिति नारकीय हो गई. आम आदमी के लिए कोई सुविधा नहीं है. गांव से पलायन के कारण किसान आत्महत्या करने लगे हैं और इसकी संख्या निरंतर बढ़ रही है . इससे हिंसा भी बढ़ी और नक्सलवाद का फैलाव हुआ. विकास पर पुनर्विचार होना चाहिए. ग्रामीण भारत में अपराधीकरण का फैलाव हुआ . आदिवासियों और जमीन देने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है। खनन करने वाले जमीन हथिया कर लाभ कमा रहे हैं। हिंसा को बढ़ाने वाले विकास पर चिंतन करने की जरूरत है। सरकारी कर्मियों में संवेदनहीनता आम बात हो गई है . पहले ऐसी प्रवृत्ति छोटे कर्मियों या तहसीलदार तक थी, अब कलेक्टर या आईएएस में यह बात देखने को मिल रही है.

आईएएस जनसुनवाई का नाटक कर रहे हैं और नियंत्रण भी कर रहे हैं। इन लोगों का मुख्य उद्देश्य बड़ी व मल्टीनेशनल कंपियों को जमीन दिलवाना भर रह गया है। गांधी जी के स्वावलंबन की अवधारणा के स्थान पर परावलंबन की भावना विकसित हो रही है. सरकार की योजनाओं जैसे वृद्धावस्था पेंशन, नरेगा, विकलांग पेंशन जैसी योजना से आम आदमी कामचोर होता जा रहा है.

पीवी राजगोपाल ने इन विसंगतियों या प्रक्रिया से लड़ने के लिए अहिंसात्मक तरीके से जूझने की बात की. उन्होंने कहा कि गरीबों की ताकत, नव जवानों की ताकत, अहिंसक ताकत, सहभागिता की ताकत को इस्तेमाल करने की सलाह दी. पीवी राजगोपाल ने महत्वपूर्ण बात यह कही कि " चुप्पी और हिंसा के बीच खड़े हो कर अहिंसक विरोध करें."

पीवी राजगोपाल ने संबोधन के पश्चात प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में स्पष्ट किया कि वे अन्ना हजारे के आंदोलन में किसी मतभेद के कारण नहीं, बल्कि पदयात्रा में व्यस्त होने के शामिल नहीं हुए. उन्होंने यह अवश्य कहा कि अन्ना और अरविंद केजरीवाल का आंदोलन की असफलता का मुख्य कारण उसमें शामिल मध्यम वर्ग का टिकाऊपन न होना था. पीवी राजगोपाल ने कहा कि मध्यम वर्ग की आंधी जरूरी और आवश्यक है, लेकिन उसका टिकाऊपन भी जरूरी है. आंदोलन में आदिवासियों, शोषित, महिलाओं को शामिल किया जाएगा, जो आंदोलन को टिकाऊ बनाएंगे.

कार्यक्रम में आमतौर पर पीवी राजगोपाल को यह सलाह दी गई कि वे अन्ना और केजरीवाल के आंदोलन से अपने को अलग रखें एवं स्वयं और संस्था का अस्तित्व बना कर आगे का रास्ता तय करें. पीवी राजगोपाल के लंबे समय से सहयोगी संतोष भारती ने भी उन्हें स्वयं का अस्तित्व अलग रख कर चलने की सलाह दी और अन्ना के साथ किसी भी प्रकार का गठजोड़ न करने की अपील की.

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