जबलपुर की विवेचना रंगमंडल ने पिछले दिनों पांच दिवसीय रंग परसार्इ-2013 राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन स्थानीय प्रेक्षागृह शहीद स्मारक में किया। इस बार का नाट्य समारोह प्रसिद्ध साहित्यकार, शिक्षाविद, पत्रकार और पूर्व मेयर रामेश्वर प्रसाद गुरू को समर्पित था। विवेचना की स्थापना वर्ष 1961 में हुर्इ थी और संस्था ने 1975 से नुक्कड़ नाटकों के प्रदर्शन से अपनी रंग यात्रा की शुरूआत की, जो आज तक जारी है। देश में विवेचना रंगमंडल की पहचान एक सक्रिय सरोकार से जुड़ी हुर्इ रंगकर्म संस्था के रूप में है। विवेचना प्रत्येक वर्ष नाट्य समारोह में नए निर्देशकों को मौका दे रही है। इस बार के नाट्य समारोह में भी नए नाट्य निर्देशक को मौका दिया गया। इस प्रयास को रंगकर्मियों के साथ-साथ दर्शकों ने भी सराहा। नाट्य समारेाह में मध्यप्रदेश नाट्य स्कूल के निदेशक संजय उपाध्याय को रंगकर्म में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए 21 हजार रूपए की राशि भेंट कर सम्मानित किया गया।
पांच दिवसीय नाट्य समारोह में निर्माण कला मंच पटना ने संजय उपाध्याय के निर्देशन में कंपनी उस्ताद, अलंकार थिएटर ग्रुप चंडीगढ़ ने चक्रेश कुमार के निर्देशन में थाट, आल्टरनेटिव लिंविंग थिएटर कोलकाता ने प्रोबीर गुहा के निर्देशन में विषादकाल, देवांचलतम रंगमंडल लखनऊ ने संगम बहुगुणा के निर्देशन में दामाद-एक खोज और मेजबान विवेचना रंगमंडल ने प्रगति-विवेक पाण्डेय के निर्देशन में मोहन राकेश लिखित आधे-अधूरे को प्रस्तुत किया।
नाट्य समारोह में मंचित किए गए सभी नाटक विविध विषयवस्तु और प्रस्तुतियों की दृष्टि से दर्शकों को आकर्षित करने में सफल रहे। कंपनी उस्ताद संगीत और स्वतंत्रता संग्राम के अंतर्संबंधों के कारण, तो थाट वर्तमान के युवाओं व उनकी विचारधारा को ले कर दर्शकों को उद्वेलित कर गया। वहीं विषादकाल अपने फार्म के कारण और कलाकारों के अभिनय से जबलपुर के दर्शकों के दिल में गहरार्इ से उतरा। दामाद-एक खोज टिपीकल हास्य नाटक था, जो कि गंभीर प्रस्तुतियों के बीच रिलेक्स होने के लिए सफल रहा। मेजबान विवेचना रंगमंडल की प्रस्तुति आधे-अधूरे को नाटय समारोह की सबसे सफल प्रस्तुति के रूप में देखा गया। मोहन राकेश का यह नाटक लगभग पांच दशक बीत जाने के पश्चात भी अपनी विषयवस्तु के कारण सम-सामयिक है। आधे-अधूरे की प्रस्तुति में कलाकार और निर्देशक दोनों रूप में प्रगति व विवेक पाण्डेय सफल रहे और उन्होंने नाटय प्रेमियों की भरपूर प्रशंसा बटोरी।
इस नाट्य समारोह के माध्यम से विवेचना रंगमंडल ने दर्शकों के लिए एक नया प्रयोग भी किया। प्रयोग के रूप में दर्शकों को टिकट पहले से उपलब्ध करवा दी गर्इ और उनके अनुरोध किया गया कि वे समारोह स्थल में अपनी इच्छा व क्षमतानुसार सहयोग राशि को एक डिब्बे में डाल दें। इस प्रक्रिया को दर्शकों का अच्छा प्रतिसाद मिला और उन्होंने उत्साह से सहयोग राशि देने में कोर्इ हीला-हव्वाली नहीं की। विवेचना रंगमंडल के निदेशक अरूण पाण्डेय इसे दर्शकों की परिपक्वता के रूप में देखते हैं। संजय उपाध्याय के साथ-साथ समारोह में शामिल हुए सभी नाट्य निर्देशकों ने दर्शकों की इस बात के लिए सराहना की कि जबलपुर का दर्शक अच्छा रंगकर्म देखने के साथ टिकट खरीद कर नाटक देखने वाले दर्शकों के रूप में देश में सबसे आगे है।
विवेचना रंगमंडल ने रंग परसार्इ-2013 के माध्यम से देश के हिंदी भाषी क्षेत्रों में आयोजित होने वाले नाटय समारोह में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। हिंदी के साथ अन्य भाषार्इ राज्यों के रंग निर्देशकों की इच्छा है कि अपनी प्रस्तुतियों के साथ भविष्य के नाट्य समारोह में शामिल हों।
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