शिखंडी वह कहानी है जो सदैव व वर्तमान में और महत्वपूर्ण हो गई है। इस कहानी को समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समझना और चिंतन करना चाहिए। यह हमें याद दिलाता है कि ट्रांसजेंडर (परलैंगिक) हमेशा हमारे समाज, हमारे इतिहास और पौराणिक कथाओं का हिस्सा रहे हैं। फिर भी आज ट्रांसजेंडर समाज में स्वीकार किए जाने के लिए संघर्ष करते हैं कि वे कौन हैं ? इस विषय या मुद्दे पर सुनील शानबाग निर्देंशित ‘ड्रीम्स ऑफ तालीम,’ निर्देशक चेतन दातार ‘राम नाम सत्य है’, फाज़ेह जलाली निर्देशित ‘शिंखडी’ व हैप्पी रणजीत निर्देशित ‘स्ट्रेट प्रपोजल’ (जिसमें समलैंगिक पुरुषों के जीवन को पेश किया)जैसी प्रस्तुतियां हैं। रणजीत इससे पहले खुद त्रिपुरारी शर्मा निर्देशित प्रस्तुति ‘रूप अरूप’ में ऐसे अभिनेता की भूमिका निभा चुके थे जो नौटंकी में स्त्री भूमिका निभाता है, पुरुष में स्त्री शरीर को मंच पर जीता यह अभिनेता अपनी वास्तविक लैंगिकता से अधिक प्रदर्शक लैंगिकता को जीने लगता है और स्त्री को भी स्त्रीत्व को प्रदर्शित करने का प्रशिक्षण देता है। इन प्रस्तुतियों में यह उल्लेखनीय है कि नए तरह के कथ्य को संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत करने के लिए मिथक, वर्तमान और कलारूपों की ओर गए। इनमें कथ्य को सामाजिक परिवेश में स्थित किया और व्यक्ति के भीतर के संघर्ष को भी उभारा। कुछ नाटककारों ने भी इस विषय को ध्यान में रख कर नाटक भी लिखे। नन्दकिशोर आचार्य ने अपने नाटक ‘ जिल्ले सुब्हानी’और हिजड़ों के जीवन को केन्द्र में रखकर मछिन्दर मोरे ने ‘जानेमन’ नाटक लिखा। जिसका मंचन वामन केंद्रे ने एनएसडी रंगमंडल के साथ किया। विजय तेन्दुलकर ने भी ‘मीता’ नाटक लिखा था जो समलैंगिक स्त्री के जीवन पर था।
जबलपुर में पिछले दिनों ‘रंग पथिक’ संस्था ने शुभम अर्पित दत्ता के निर्देशन में ‘अह्म अर्ध’ प्रस्तुत किया। नाटक की लेखक मिताली मरावी हैं। मिताली मरावी ने लेखन के साथ नाट्य प्रस्तुति में शिखंडी की मुख्य भूमिका भी निभाई। मिताली मरावी ने ‘अह्म अर्ध’ को लिखने में नरेन्द्र कोहली की पुस्तक शिखंडी व देवदत्त पटनायक की प्रेग्नेंट किंग की सहायता ली है। उन्होंने शिखंडी के पारंपरिक रूपों का उपयोग करते हुए, लेकिन एक बहुत ही समकालीन पाठ के साथ एक मिथक का पुनर्लेखन किया। ‘अह्म अर्ध’ के साथ महत्वपूर्ण बात यह है कि इस नाट्य प्रस्तुति में शिखंडी के साथ अम्बा के चरित्र को उभारा गया। ‘अह्म अर्ध’ की प्रस्तुति में महाभारत के पात्र ‘शिखंडी’ और ‘अम्बा’ की जटिल और दयनीय स्थिति को प्रस्तुत किया गया। शिखंडी जो पूर्वजन्म में और इस जन्म में स्त्री होने के बावजूद पुरुष के रूप में परवरिश पाता है, इससे उसका सहज यौनिक बोध समाप्त हो जाता है।
मिताली मरावी ने यह विचार लिंग और कामुकता के आसपास की हमारी वर्तमान रूढ़ियों को चुनौती देने और उन पर सवाल उठाया है। इसमें न केवल खुद से यह पूछना कि हम वास्तव में कौन हैं। शायद तब हम महसूस कर सकते हैं कि हम सभी के बीच में हैं, न केवल लिंग और यौन वरीयता में, बल्कि अच्छी और बुरी, परंपरा और आधुनिकता दोनों में शामिल हैं। जितनी जल्दी हम अपने भीतर इस तरलता को स्वीकार करते हैं, उतना ही आसान लोगों के लिए यह स्वीकार करना होगा कि वे कौन हैं। ‘अह्म अर्ध’ का स्पष्ट संदेश है- मैं उदात्त हूँ, मैं कालातीत हूँ, मैं पूरे ब्रह्मांड में शामिल हूँ।
शिखंडी सिर्फ महाभारत का एक किरदार नहीं है। उसका अलग ही महत्व है। वो शिखंडी, जिसे एक वर्ग के अगुआ के रूप में देखा जाता है। शिखंडी का जन्म पंचाल के राजा द्रुपद के यहां एक लड़की के तौर पर हुआ था, लेकिन उसके जन्म के समय एक आकाशवाणी हुई। जिसके बाद उसे एक लड़के की तरह पाला और लड़ाके की तरह तैयार किया गया। शादी की रात शिखंडी की पत्नी को जानकारी मिली कि उसका पति तो पुरुष है ही नहीं। शिखंडी के ससुर ने इस बात से गुस्सा होकर शिखंडी के पिता के राज्य पर चढ़ाई कर दी। शिखंडी डर के मारे जंगल भाग गया। जहां शिखंडी को स्थूणा नाम के यक्ष ने अपना पुरुषत्व एक रात के लिए उधार दिया। शिखंडी जब स्थूणा को पुरुषत्व वापिस करने गया, तब यक्षों के राजा कुबेर ने उसकी ईमानदारी से खुश होकर उसे जीवनभर के लिए स्थूणा का पुरुषत्व दे दिया। शिखंडी पिछले जन्म में अंबा नाम की राजकुमारी हुआ करता था। भीष्म ने अंबा के स्वयंवर के दिन उसका अपहरण कर लिया, जिसके चलते उसकी कहीं शादी नही हो पायी, इसीलिए अंबा भीष्म को मारना चाहती थी। अंबा ने परशुराम से युद्ध में भीष्म को मरवाना चाहा,पर सफल न हो पायी। अंबा ने भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव ने उससे कहा कि वो अगले जन्म में भीष्म की मृत्यु का कारण बन सकती है। यह सुनकर अंबा आग में कूदकर मर रही। कार्तिकेय ने अंबा को एक माला दी थी, जिसे पहनने वाला भीष्म को मार सकता था। अंबा वो माला पंचाल के राजा द्रुपद के महल में फेंक आई थी। दूसरे जन्म में द्रुपद के बेटे शिखंडी ने वह माला पहन ली और ये तय हो गया कि शिखंडी के कारण भीष्म की मौत होगी। विजय की रात पांडवों के शिविर में घुसकर अश्वत्थामा ने शिखंडी को उस समय मार डाला, जब वो सो रहा था।
‘अह्म अर्ध’ में लेखक मिताली मरावी व निर्देशक शुभम अर्पित दत्ता ने लगभग दो घंटे की अवधि की नाट्य प्रस्तुति में शिखंडी और अम्बा के चरित्र को केन्द्र में रखा। दोनों चरित्रों का द्वन्द ही प्रस्तुति का मुख्य आकर्षण है। नाटक समकालीन समाज पर एक अंतर्निहित टिप्पणी भी है। हम एक व्यक्ति को देखते हैं और उनकी शारीरिकता के अनुसार उनका न्याय करते हैं। यह नाटक पारंपरिक नियमों जैसी अन्य चीजों पर सवाल उठाता है, और यह विचार पुरुष और महिला, आधुनिकता और परंपरा के बीच पर ध्यान केंद्रित करने के लिए है। नाटक में विभिन्न भारतीय कलाएं मिश्रित हैं-जैसे भारतनाट्यम, कत्थक, उनकी चाल, मुद्राएं, ताल-बोल और कलरीपायट्टु व छाहू का प्रयोग किया है। ये तत्व नाट्य प्रस्तुति को रूप देती हैं और विशालता भी।
निर्देशक शुभम अर्पित दत्ता का निर्देशन कसा हुआ है। उन्होंने पूर्ववर्ती नाट्य प्रस्तुति की तुलना में परिपक्वता दिखाई है। वे नाटक की डिजाइनिंग सीख गए। ‘अह्म अर्ध’ में उन्होंने महाभारत कालखंड को वेशभूषा व भाषा की प्रस्तुतिकरण से यथार्थवादी बनाया। उन्होंने प्रत्येक दृश्यों के संयोजन में मेहनत की। नाट्य प्रस्तुति में एक कमी खलती है, वह कोरस का संवाद है। इसमें अभ्यास की कमी महसूस होती है। अगली प्रस्तुति के पूर्व कलाकारों की स्पीच पर विशेष ध्यान देना होगा। प्रस्तुति में शोभा गुर्टू का दादरा रंगी सारी गुलाबी चुनरिया, अन्वेषा का साजन घर आयो रे, कौशिकी चक्रवर्ती की ठुमरी भीगी जाओ गूइय्या, निराली कार्तिक का मी राधिका और आर्य अम्बेडकर के गीत सखी साजन का उत्कृष्ट प्रयोग कर नाटक को संगीतमय बनाया है। जबलपुर में मौलिक नाट्य लेखन की परम्परा प्रारंभ हो गई। गणित की विद्यार्थी मिताली नाट्य लेखन की ओर बढ़ीं हैं। यह अच्छा संकेत है। जबलपुर में अरूण पांडे व आशीष पाठक के पश्चात मिताली मरावी ने लेखन से पहले नाटक से ही संभावनाएं जगाई हैं। उन्हें इस नाटक में समकालीन प्रतीक व मुद्दों को जोड़ कर अपनी बात कही है, लेकिन निर्देशक वह अंतिम बिन्दु होता है, जिसे ट्रीटमेंट देना होता है। मिताली ने लेखन व अभिनय कर महसूस किया होगा कि उनके लेखन के साथ निर्देशक ने न्याय किया कि नहीं। मिताली को स्क्रिप्ट की ओर विशेष ध्यान देना होगा।
नाटक की लेखक मिताली मरावी को शिखंडी के अभिनय में संतुलन रखना होगा। नाटक पूरा-पूरा होते उनकी इनर्जी लेबल चुक जाती है। उन्हें अभिनय में पेशेवर रूख को आत्मसात करना होगा। अम्बा के भूमिका में ख्याति कनोजे, अम्बिका की भूमिका में स्वास्तिका यादव, अम्बालिका की भूमिका में हर्षिता सक्सेना और भगवान शिव व कृष्ण की भूमिका में आशी केशरी को जितना स्पेस मिला उन्होंने उसे भली-भांति निभाया। ऋतुराज तिवारी को भीष्म का चरित्र समझना होगा। वे इंतजार ही करते रहे। विचित्रवीर्य व यक्ष की भूमिका में अतुल गोस्वामी व धानुष की भूमिका में गौरव रोहरा का अनुभव झलका। नमन मेहता को परशुराम की भूमिका निभाने में रौद्र रूप दिखाना होगा। शाल्ब की भूमिका में अंशित तिवारी, द्रुपद की भूमिका में आकाश जैन और बेटी व परछाई की भूमिका में मोहिनी यादव ने न्याय किया।
निर्देशक शुभम अर्पित दत्ता की प्रकाश व मंच परिकल्पना विषयवस्तु के अनुकूल रही। श्वेता पट्टा का संगीत संयोजन साफ सुथरा व निर्दोष था। नगाड़ा, थप व टिमकी वादन में डेरिल डेनियल ने अपना अलग स्थान बना लिया है। उनके वादन से नाटक को माहौल व गति मिली और जहां-जहां वादन हुआ दर्शक सतर्क भी हुए। ऐसे ही तबला व परकयूशन में तुषार झा व क्षितिज श्रीवास्तव ने भूमिका निभाई। प्रस्तुति में नृत्य संयोजन कलाकारों ने मिल कर किया जो प्रशंसनीय है। ‘अह्म अर्ध’ की प्रस्तुति रंग पथिक व शुभम अर्पित दत्ता के लिए एक याद रखने वाला पड़ाव है। भविष्य में उनसे और अधिक आशाएं व अपेक्षाएं हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें