जबलपुर कमिश्नर का शासकीय आवास रेसीडेंसी 1 अप्रैल को अपनी स्थापना के ऐतिहासिक 202 वर्ष पूर्ण कर रहा है। वर्ष 1821 में निर्मित कमिश्नर रेसीडेंसी भारत में सबसे
पुरानी अधिकारिक आवासीय बंगलों में से एक है जो अभी भी उपयोग में है। मराठों से
जबलपुर शहर को जीतने के तुरंत बाद अंग्रेजों द्वारा बनाई जाने वाली यह इमारत अपनी
तरह की पहली इमारत थी। यह इमारत प्रसिद्ध विलियम स्लीमन का निवास भी रहा, जिन्होंने 1830 से 1840 दशक में मध्य भारत में ठगों व पिंडारियों का
सफाया किया था। विलियम स्लीमन के सार्वजनिक कर्त्तव्य की याद में उनके भतीजे जे.
स्लीमन द्वारा क्राइस्ट चर्च कैथेड्रल में उनके सम्मान में एक पट्टिका लगाई गई।
विलियम स्लीमन ने जिस जगह से पिंडारियों का उन्मूलन किया, उस स्थान का नाम उनके नाम से ‘स्लीमनाबाद’
किया गया।
मिलोनी थे पहले कमिश्नर-सन् 1818 में जब अंग्रेजों ने जबलपुर पर कब्जा किया,
तब सीए मिलोनी
को यहां का पहला कमिश्नर बनाया गया। मिलोनी के नाम पर बाद में जबलपुर के एक
क्षेत्र का नाम मिलोनीगंज हुआ। मिलोनी कार्यकाल में कमिश्नर कार्यालय की नींव रखी
गई। इसका निर्माण 1818 से
प्रारंभ होकर 1821
में पूरा हुआ। सन् 1861 तक
नर्मदा एवं सागर टेरेटरीज का मुख्यालय सागर रहा। इसके बाद सेंट्रल प्रावेंस एण्ड
बरार बनने पर नागपुर राजधानी बनी, तब नर्मदा टेरेटरीज का मुख्यालय जबलपुर बनाया गया। उस समय कमिश्नर
गवर्नर जनरल का प्रतिनिधि होता था, इसलिए इस भवन को रेसीडेंसी भी कहा जाता था।
26 एकड़ का था परिसर-इस इमारत का पूरा परिसर
पहले 26
एकड़ का रहा। इमारत को आयोनक, क्लासिक व ग्रीक शैली में बनाया गया। पूरा भवन चूना पत्थर और ईंट से
बना है। भवन के सामने के हिस्से में चार सपाट पिलर और उसके बाद ऊंची छत इसकी
विशेषता है। उस समय मुख्य भवन में 22 हजार 592
रुपए की लागत आई थी। बाद में चहारदीवारी, घुड़साल और स्टोर बनाया गया, जिसमें 5 हजार 457 रुपए अतिरिक्त खर्च हुए। वर्तमान में जो
कमिश्नर कार्यालय है, उसका
निर्माण 1904
में हुआ, जो 16 हजार 590 रुपए की लागत से बना। कमिश्नर आवास को बने दो
सौ दो साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन पूरे भवन में वास्तु संबंधी कमियां नाममात्र भी नहीं है। इसकी
मजबूती इससे उजागर होती है कि 22 मई 1997 को
आए भूकंप में इस भवन में मामूली क्षति हुई थी।
1857 की
क्रांति में अंग्रेजों ने छिप कर बचाई जान-1857 के विद्रोह के दौरान रेसीडेंसी (वर्तमान
जबलपुर कमिश्नर आवास) केन्द्र बिन्दु था। डब्ल्यू. सी. अरशाइन तब जबलपुर के
कमिश्नर थे। जिनके बारे में कहावत प्रचलित रही कि उनका दिमाग व सोच सीमित दायरे
में घूमती थी। उनके कार्यकाल में भारतीय सिपाहियों ने बैरक में अपने अंग्रेज ऑफिसरों
पर हमला करना शुरू कर दिया था। अरशाइन ने मुसीबत की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया।
रेसीडेंसी में जल्दबाजी में सैंड बैग (रेत की बोरियों) और दो पुरानी तोपों का
इंतजाम कर बचाव का रास्ता निकाला गया। भारतीय विद्रोहियों ने रेसीडेंसी की
घेराबंदी कर ली जिसमें छावनी और सिविल स्टेशन के सभी अंग्रेज य यूरोपीय परिवार
रेसीडेंसी में सुरक्षा की दृष्टि से एकत्र हो गए थे। रेसीडेंसी में एक भूमिगत
मार्ग मौजूद था, जो
बॉल रूम के लकड़ी के फर्श से बाहर निकलता था। यह बहुत दूर तक नहीं जाता था।
रेसीडेंसी में अंग्रेज व यूरोपीय परिवार तब तक डटे रहे जब तक भारत की स्वतंत्रता
के पहली लड़ाई या विद्रोह को दबा नहीं लिया गया।
बड़े फैसले लिए गए रेसीडेंसी में-अंग्रेजी दौर के कमिश्नर यूं
तो गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि होते थे, लेकिन उनके पास बड़े-बड़े फैसले लेने के अधिकार
थे। गढ़ा गोंडवाना के अंतिम शासक शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथशाह को तोप से उड़ाने
की सजा का फैसला इसी भवन में लिया गया था। आजादी की लड़ाई में सैकड़ों सेनानियों को
जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की इबारत इसी भवन में लिखी गई।
वेटरनरी कॉलेज को मिली जगह-देश की आजादी के बाद कमिश्नर कार्यालय में नया
मोड़ आया और कमिश्नर का पद समाप्त कर दिया गया। नवम्बर 1956 में नया मध्यप्रदेश बनने के बाद जबलुपर का प्रथम
कमिश्नर आईसीएस आरसीवीपी नरोन्हा को बनाया गया। इसी के साथ ही कमिश्नर कार्यालय को
आवासीय परिसर में बदल दिया गया, जबकि सामने बने भवन को कमिश्नर कार्यालय बनाया गया। रेसीडेंसी का
उद्यान वर्तमान वेटरनरी कॉलेज तक विस्तारित था। 1948 व 1956 के बीच जब कमिश्नरी को समाप्त कर दिया गया था,
तब रेसीडेंसी को
वेटरनरी कॉलेज के रूप में उपयोग में लाया गया। कमिश्नर आवास की 26 एकड़ भूमि के अधिकांश हिस्से में वेटरनरी कॉलेज
बना दिया गया, जो
वर्तमान में वेटनरी विश्वविद्यालय है।
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