सातवें दशक में जब भारतीयों को चायनीज फुड भाने
लगा तब उनके सामने चॉप स्टिक (दंडी के आकार की चम्मच) से खाने की समस्या आने लगी।
मालूम हो पूर्वी एशियाई देशों चीन, जापान, थाईलैंड में कोई भी भोजन चॉप स्टिक से ही खाया जाता है और यूरोपीय देश के
छुरी-चम्मच का उपयोग करते हैं। हम भारतीयों को हाथ से ही खाना रुचि कर लगता है।
बासु चटर्जी की ‘छोटी सी बात’ फिल्म
में अशोक कुमार द्वारा अमोल पालेकर को चॉप स्टिक के सलीके से उपयोग का मज़ेदार
दृश्य आज भी लोगों को गुदगुदाता है। सीएम वांग ने चॉप स्टिक की समस्या का समाधान
कांटे-चम्मच से कर के स्थानीय लोगों की झिझक को दूर किया।
जब चायनीज रेस्त्रां की बात हो रही है तो यह भी
जानना जरूरी हो जाता है कि चीनी लोग जबलपुर में कैसे रच बस गए। बताया जाता है कि
कुछ चीनी परिवार वर्ष 1930 में बर्मा (अब म्यान्मार) से जबलपुर पहुंचे थे। उस समय
रंगून से पानी के जहाज से कलकत्ता आने में लगभग तीन-चार दिन का समय लगता था। कुछ
परिवार कलकत्ता पहुंचे और उसमें से कुछ ने जबलपुर का रूख किया। वर्ष 1942-43 में
कलकत्ता से डा. वू सिएन जबलपुर पहुंचे और यहीं बस गए। डा. सिएन दांत के डाक्टर के
रूप में मशहूर हुए। उनके पुत्र टीएच लियाओ (Dr.Tsai Teh Liao) ने
1965-66 में डाक्टरी की पढ़ाई पूरा कर के डेंटिस्ट बन गए। पिता-पुत्र की इस जोड़ी
ने जबलपुर में हजारों लोगों की नकली बत्तीसी बना कर प्रसिद्धि पाई। अब इनकी
तीसरी पीढ़ी डा. सीएच लियाओ मैदान में है।
सीएम वांग के क्लॉक टॉवर चायनीज रेस्त्रां से ले
कर आगे तक की दस-बारह मकान व दुकाओं के मालिक जबलपुर के एक पारसी फ़िरोज़
दारूवाला थे। बाद में उन्होंने वांग को वह जगह बेच दी। वांग जबलपुर वर्ष 1943 में
कलकत्ता से पहुंचे थे और वर्ष 1948 में उन्होंने रेस्त्रां की शुरुआत कर दी थी।
वांग का निधन वर्ष 1997 में हो गया। वांग की चार पुत्रियां हैं। जिसमें मी ह्वा
वांग (MEE HWA WANG) जबलपुर
में रहती हैं और शेष बाहर। मी ह्वा वांग वर्तमान में रेस्त्रां का संचालन करती
हैं। वांग के प्रिय माइकल लेपचा रहे हैं। वे बचपन से ही रेस्त्रां के कामकाज से
जुड़ गए थे और आज इसका कुशलता से प्रबंधन कर रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें