पश्चिम मध्य रेल जबलपुर
की महिला हॉकी खिलाड़ी सुनीता लाकड़ा को रियो ओलंपिक में भाग लेने वाली की भारत
की महिला हॉकी टीम में शामिल करने से हॉकी जगत में खुशी की लहर फैल गई है। जबलपुर
और ओलंपिक का रिश्ता फिर एक बार जुड़ने जा रहा है। जबलपुर देश का सबसे पुराना हॉकी
का गढ़ रहा है। जबलपुर में हॉकी को परिचित करवाने का श्रेय ब्रिटिश ऑर्मी है। 19
वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश ऑर्मी ने हॉकी से स्थानीय नागरिकों को परिचित
करवाने के पश्चात् भारतीय व एंग्लो-इंडियन समाज ने हॉकी खेलने की शुरूआत की। ओल्ड
राबर्टसन कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य सर हेनरी शार्प ने 1894 में हॉकी को
व्यवस्थित रूप दिया। सन् 1900 में दो क्लब बनाए गए। सिटी स्पोर्ट्स व केंटोमेंट
स्पोर्ट्स हॉकी क्लब के पश्चात् 20 वीं श्ताब्दी की शुरूआत के पहले दशक में पुलिस
विभाग ने हॉकी को अपनाया। उस समय जबलपुर में ऑर्मी की दो प्रसिद्ध बटॉलियन 33
पंजाबीस् व फर्स्ट ब्राम्हण का डेरा जबलपुर में था और इनका नेतृत्व मेजर फेल्ट एवं
सूबेदार बाले तिवारी कर रहे थे। याद रहे कि बाले तिवारी हॉकी के जादूगर ध्यानचंद
के गुरू थे। ध्यानचंद के अनुज रूप सिंह का जन्म सन् 1909 में जबलपुर में ही हुआ
था। उस समय नन्हें ध्यानचंद जबलपुर में पदस्थ अपने पिता जी के साथ फर्स्ट ब्राम्हण
बटॉलियन की बैरक में रहते थे।
जबलपुर की ब्रिटिश रेजीमेंट
‘चेशायर’
ने राष्ट्रीय हॉकी जगत में उस समय जबलपुर का नाम गौरवान्वित
किया, जब इस टीम ने बंबई में
लगातार सन् 1910, 1911 व
1912 में आगा खां हाकी टूर्नामेंट जीता। उन्हीं की तरह जबलपुर के देशी क्लबों ने
भी लखनऊ के प्रसिद्ध रामलाल हॉकी कप को सन् 1915 व 17 में जीता। तब तक जबलपुर के
देशी हॉकी क्लब भोपाल के प्रसिद्ध ओबेदुल्ला एवं इंतीदार हॉकी टूर्नामेंट में
अपना डंका बजा चुके थे। जबलपुर के सदर निवासी इब्राहिम व राबर्टसन कॉलेज के नुरूल
लतीफ में हॉकी का ऐसा कौशल था कि वे सन् 1920 में ऑल इंडिया की किसी भी टीम में
खेल सकते थे। एंग्लो इंडियन खिलाड़ियों से सजी जीआईपी रेलवे भी इसी समय उभर कर
सामने आई और इस टीम ने सन् 1921, 1922, 1925 एवं 1926 में आगा खां टूर्नामेंट के साथ सन् 1923 में ग्वालियर गोल्ड कप
टूर्नामेंट को पहली बार भाग लेते हुए
जीता। उस समय जबलपुर के क्लब डीआईजी पुलिस,
सिटी व केंटोंमेंट स्पोर्ट्स भारत के नामी व प्रथम श्रेणी
के क्लबों में शामिल किए जाते थे। इस समय को जबलपुर की हॉकी का स्वर्णिम युग कहा
जा सकता है।
जेईएए ने सन् 1907
में स्कूलों में हॉकी की शुरूआत करवाई। स्कूलों में अंजुमन, सीएमएस, मॉडल, क्राइस्ट चर्च, सेंट अलॉशियस, एपी
नर्बदा हॉकी नर्सरी में रूप में पहचानी गई।
सन् 1928 हॉकी के
लिए शिखर वर्ष के लिए जाना गया, जब रेक्स नॉरिस और मोरिस रॉक ने भारतीय
हॉकी टीम का ओलंपिक में प्रतिनिधित्व किया। इस भारतीय टीम में एम्सटर्डम में पहली
बार हॉकी में ओलंपिक का स्वर्ण पदक जीता। इसके पश्चात् जबलपुर के कई हॉकी खिलाड़ियों
ने विभिन्न ओलंपिक खेलों में भागीदारी की। इनमें सुलवान सन् 1932, कॉनराय 1948 इंग्लैंड ओलंपिक, पीस ब्रदर्स 1960
ओलंपिक और आस्ट्रेलियन हॉकी कोच मर्व एड्म्स भी जबलपुरियन रहे हैं।
जबलपुर के नेमीचंद्र अग्रवाल, एस. एन. शुक्ला, एस. के. नायडू व बी. के. सेठ ने
अंतरराष्ट्रीय अम्पायर्स के रूप में ख्याति अर्जित की। जबलपुर के चारों अम्पायर्स
ने बैंकाक, तेहरान व 1980 के एशियन गेम्स में अम्पायरिंग
की।
जबलपुर में महिला हॉकी को उस समय गति व लोकप्रियता मिली, जब सन् 1936 में नागपुर में सीपी एन्ड बरार
लेडिस हॉकी एसोसिएशन का गठन किया गया। शुरूआत में महिला हॉकी में एंग्लो इंडियन व
पारसी समाज की महिलाओं ने हॉकी में रूचि दिखाई और इन्हें इंटरनेशनल नॉरिस व रॉक ने
प्रशिक्षित किया। सन् 1945 में जबलपुर का पहला महिला हॉकी क्लब जुबली क्लब बनाया
गया और इसने जल्द प्रसिद्धि बिखेरना शुरू कर दी। जबलपुर की स्मिथ सिस्टर्स व
नॉरिस सिस्टर्स ने नागपुर के क्लब से
खेलते हुए उस समय मध्यप्रदेश को नेश्नल चार बार विजेता बनाने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दो बहिनों की जोड़ी
को भारत की पहली महिला टीम में शामिल किया गया, जिसने
1953 में इंग्लैड का दौरा किया था। इसी टीम ने सन् 1956 में आस्ट्रेलिया का दौरा
भी किया। सन् 1961 में जबलपुर विश्वविद्यालय में महिला हॉकी खिलाड़ियों की
संख्या को देख कर महाकौशल महिला हॉकी एसोसिएशन का गठन किया गया। महाकौशल हॉकी
एसोसिएशन की टीम ने सन् 1962 में अंतरविश्वविद्यालय टूर्नामेंट में पंजाब के साथ
फाइनल मैच खेला।
जबलपुर की महिला हॉकी खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाई, उनमें चारू पंडित, सरोज
गुजराल, सिथिंया फर्नांडीज, अविनाश
सिद्धू (भारत की कप्तान रहीं), गीता राय, कमलेश नागरथ, आशा परांजपे, मंजीत
सिद्धू और मधु यादव प्रमुख हैं। अविनाश सिद्धू ने भारतीय हॉकी टीम के कोच, मैनेजर, रैफरी की भूमिका भी निभाई। संभवत: वे भारत
की एकमात्र महिला खिलाड़ी रहीं हैं, जिन्होंने दो खेल हॉकी
व वालीबाल में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। अविनाश सिद्धू बांग्लादेश शूटिंग
टीम की खेल मनोवैज्ञानिक भी रहीं और उनके प्रयास से बांग्लादेश ने सैफ खेलों में
मेडल जीतने में सफलता पाई।
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