शनिवार, 7 जुलाई 2018

साज का सुर मिलाने की तरह इस जनम में नर्मदा परिक्रमा का सुर मिलाते रहे : अमृतलाल वेगड़ अगले जनम में नर्मदा परिक्रमा करने की इच्छा


‘’अगर सौ साल बाद क‍िसी को एक दंपत‍ि नर्मदा परिक्रमा करता द‍िखाई दे, पति के हाथ में झाड़ू हो और पत्नी के हाथ में टोकरी और खुरपी, पति घाटों की सफाई करता हो और पत्नी कचरे को ले जा कर दूर फेंकती हो और दोनों वृक्षारोपण भी करते हों, तो समझ लीजिए क‍ि वे हमीं हैं-कान्ता और मैं। कोई वादक बजाने से पहले देर तक अपने साज का सुर म‍िलाता है, उसी प्रकार इस जनम में तो हम नर्मदा परिक्रमा का सुर ही मिलाते रहे। परिक्रमा तो अगले जनम से करेंगे।‘’ यह पंक्त‍ियां विख्यात कलाकार, लेखक व नर्मदा यायावर अमृतलाल वेगड़ की हैं। इन पंक्त‍ियों से समझा जा सकता है क‍ि अमृतलाल वेगड़ का नर्मदा नदी से क‍ितना जुड़ाव व लगाव था। उन्होंने अपनी मृत्यु से पूर्व नर्मदा परिक्रमा से सुर म‍िलाया, लेकिन उनकी इच्छा या अंतिम इच्छा भी कह सकते हैं क‍ि अगले जन्म में भी वे पत्नी सहित नर्मदा से जुड़ाव चाहते थे। अमृतलाल वेगड़ के समस्त सृजन का आधार नर्मदा थी। नर्मदा ने उनकी कला को नया आयाम द‍िया था। वे कहते थे क‍ि उन्होंने पिछले चालीस वर्षों से अध‍िक समय से नर्मदा के राश‍ि-राश‍ि सौंदर्य में से अंजुरी भर सौंदर्य ही पाया है। इस अंजुरी भर सौंदर्य को वे च‍िड़ी का चोंच भर पानीकहते थे। वे अपनी नर्मदा परिक्रमा को धार्मिक नहीं बल्क‍ि सांस्कृतिक मानते थे। उनका कहना था क‍ि संसार में एकमात्र नर्मदा ही ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा करते समय नर्मदा हमेशा दाहिने हाथ पर रहनी चाहिए। अत: उत्तर तट पर चलने वाला परकम्मावासीअमरकंटक (उद्गम) और दक्ष‍िण तट पर चलने वाला विमलेश्वर (समुद्र) की ओर जा सकता है। अमृतलाल वेगड़ का मानना था क‍ि नर्मदा मध्यप्रदेश और गुजरात को मिला प्रकृति का सबसे बड़ा वरदान है।        
अमृतलाल वेगड़ को सभी एक कलाकार, लेखक और नर्मदा यायावर के रूप में जानते व पहचानते हैं। उनकी पांच वर्ष तक शांत‍िनिकेतन में श‍िक्षा-दीक्षा हुई। उन्हें प्रकृत‍ि के सौंदर्य को देखने की दृष्ट‍ि शांत‍िनिकेतन से म‍िली, व‍िशेष रूप से गुरू नन्दलाल वसु से। गुरू ने अमृतलाल वेगड़ को जाते वक्त श‍िक्षा दी क‍ि जीवन में सफल मत होना, अपना जीवन सार्थक करना। गुरू की श‍िक्षा और स्वयं की दृढ़ता से उन्होंने नर्मदा व उसकी सहायक नदियों की 4000 किलोमीटर से भी अध‍िक की पदयात्रा की। वे संभवत: पहले ऐसे चित्रकार व लेखक थे, जो खतरनाक शूलपाण की झाड़ी में गए थे।  
अमृतलाल वेगड़ ने नर्मदा यायावरी के दौरान सबसे पहले प्रकृति सौंदर्य, मानवता का सहज सौंदर्य, रेखांकन, कोलाज और लेखन को नई दृष्ट‍ि से देखा। अमृतलाल वेगड़ ने वर्ष 1977 में पहली नर्मदा पदयात्रा के अनुभव का रेखांकन किया। उनके अध‍िकांश रेखांकन छोटे व प्राय: पोस्टकार्ड साइज के थे। वे अक्सर कहा करते थे क‍ि उनके पास अभि‍व्यक्त‍ि का विलक्षण माध्यम-रेखांकन है। वे रेखाओं से उस सौंदर्य को व्यक्त करते थे, जो शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं हो सकते। जहां शब्द मौन हो जाते हैं, रेखाएं बोल उठती थीं। वे कहते थे क‍ि उनके द्वारा बनाए गए रेखांकन नर्मदा से मिले अनमोल उपहार हैं। 
अमृतलाल वेगड़ की श‍िक्षा-दीक्षा जल रंगों (वाटर कलर) से हुई, लेकिन उन्होंने नर्मदा के सौंदर्य व जीवन को उभारने के लिए कोलाज को माध्यम बनाया। कोलाज अपनी कला अभ‍िव्यक्त‍ि के लिए सही माध्यम लगता था। कोलाज यानी क‍ि कुछ भी च‍िपका कर बनाई गई कलाकृति। उनके कोलाज चित्र जैसे लगते थे। कुछ कोलाज जल रंग की तरह, कुछ आइल कलर की तरह तो कुछ श‍िल्प जैसे। अमृतलाल वेगड़ को कोलाज बनाने में सभी माध्यमों का आनंद मिलता था। उनके चित्रों के विषय नदी, नदी के मोड़, नदी के घाट, नदी को पार करते ग्रामीण बैगा, गोंड, भील, आग तापते ग्रामीण, ग्रामीण गायक, पंडे-पुरोहित, नाई, चक्की पीसती या मूसल चलाती महिलाएं थीं। वे अपने चित्रांकन व कोलाज को चिड़ी का चोंच भर पानीकहते थे।
अमृतलाल वेगड़ को मॉडर्न आर्ट पसंद था, लेकिन वह उनका रास्ता नहीं था। वे मानते थे क‍ि मॉडर्न आर्ट वैश्व‍िक है, लेकिन स्वयं की कला को देश की माटी की गंध मानते थे। कला के लिए कलावाला रास्ता उनका नहीं था। अमृतलाल वेगड़ की कला नर्मदा के लिए थी। वे अपने चित्रों में नर्मदा को और नर्मदा तट के जनजीवन द‍िखाना चाहते थे, इसलिए उनकी कला अमूर्त नहीं थी। उनकी कोश‍िश रहती थी क‍ि च‍ित्र ऐसे बने, जो देखने के लिए बाध्य करें और थोड़ा बहुत रस भी मिले।
अमृतलाल वेगड़ ने अपनी अंतिम व चौथी पुस्तक ‘’नर्मदा तुम क‍ितनी सुंदर होउन महान ऋष‍ियों को समर्प‍ित की जिन्होंने नर्मदा तट पर तपस्या कर के उसे तपोभूमि नर्मदा बनाया। उन्होंने सबसे पहले 1992 में नर्मदा के सौंदर्य को पुस्तक का रूप दिया। उनकी सहज व सरल भाषा ने पाठक को सहयात्री बना देती है। वे नर्मदा को स‍िर्फ जलधारा नहीं मानते हैं, बल्क‍ि उसके साथ जीवन, जीव, वनस्पति, प्रकृति, खेत, पक्षी व मानव सभी को आपस में इस प्रकार जोड़ देते हैं, ज‍िससे नर्मदा एक नदी नहीं, मनुष्य के जीवन से मृत्यु तक का आधार बन जाती है। सौंदर्य की नदी नर्मदा के पश्चात् उनकी तीन पुस्तकें अमृतस्य नर्मदा, तीरे-तीरे नर्मदा और नर्मदा तुम क‍ितनी सुंदर हो प्रकाशि‍त हुईं हैं। उनकी अंतिम पुस्तक नर्मदा तुम क‍ितनी सुंदर हो में शब्द नाम मात्र के हैं और पूरी पुस्तक कोलाज व रेखांकन से समृद्ध है। इन्हीं पुस्तकों में कहीं अमृतलाल वेगड़ य‍ह जिक्र करते हैं क‍ि यह तो अध‍िक से अध‍िक परिक्रमा की इंटर्नश‍िप की है, परिक्रमा तो वे अगले जन्म में करेंगे। उनकी पुस्तक तीरे-तीरे नर्मदा को बीबीसी वर्ष 2013 में हिन्दी के 10 श्रेष्ठ यात्रा संस्मरण में चुना था। वर्ष 2004 में अमृतलाल वेगड़ को सौंदर्यनी नदी नर्मदाशीर्षक की हिन्दी से गुजराती में अनुवादित पुस्तक पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्रदान किया गया।
सहज, सरल, विनोदप्रिय व गज़ब का सेंस ऑफ ह्यूमर रखने वाले अमृतलाल वेगड़ व उनका संयुक्त परिवार वर्तमान समाज में उत्कृष्ट उदाहरण है। जीवन भर वे खादी पहनते रहे। घर में चक्की में गेहूं पीसा जाता था। वे पैदल चलने को प्राथमिकता देते थे और जीवन में उन्होंने कभी चाय का सेवन नहीं क‍िया। आश्यर्च होता है क‍ि इतनी व‍िशेषता रखने वाले नर्मदा यायावर अमृतलाल वेगड़ ने जीवन में कभी नर्मदा व‍िस्थापन व इससे संबद्ध आंदोलन पर एक शब्द भी नहीं बोला। नौवे दशक में द‍िए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने बड़े बांधों का समर्थन किया था। वे यात्रा पर निकलते समय हर बार कहते थे-‘’नर्मदा ! तुम सुंदर हो, अत्यंत सुंदर। अपने सौंदर्य का थोड़ा सा प्रसाद मुझे दो, ताक‍ि मैं उसे दूसरों तक पहुंचा सकूं।‘’ न‍िश्च‍ित ही अमृतलाल वेगड़ ने नर्मदा से जो थोड़ा प्रसाद पाया, उसे उन्होंने देश नहीं बल्क‍ि विदेश तक असंख्य लोगों तक शब्द व कला के माध्यम से पहुंचाया। उसी नर्मदा तट पर गोधूलि बेला में उनको व‍िदाई दी गई। इस जन्म में वे नर्मदा परिक्रमा का सुर मिलाते रहे। उनका अगला जनमहोगा फ‍िर एक बार नर्मदा परिक्रमा करने के लिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

जबलपुर में कैसे हुई दुर्गा पूजा और रामलीला की शुरुआत

देश में दुर्गा पूजन का सार्वजनिक रूप से आयोजन 11 सदी से प्रारंभ हुआ। इसका सर्वाध‍िक प्रचार प्रसार नागरिकों के मध्य बंगाल से हुआ और धीरे धीरे...