मीनू
श्राफ तेजी से साइकिल चलाता हुआ जा रहा है। उसके तेज गति से साइकिल चलाने का कारण
रास्ते में चल रहे लोग समझ नहीं पा रहे हैं। कुछ लोगों को महसूस हुआ कि उस रास्ते
में जा रहे कई लोगों की तरह यह व्यक्ति भी समय से ऑर्डनेंस फैक्ट्री पहुंचने की जल्दी में हो। मीनू श्राफ
का तेजी से साइकिल चलाने का कारण, जल्दी से डिलाइट टॉकीज पहुंचना था। वह
सुबह-सुबह डिलाइट टॉकीज पहुंच जाता और शाम को छह-सात बजे तक उसका पूरा दिन वहां कटता।
दरअसल सिंगल स्क्रीन डिलाइट टॉकीज अब बंद हो चुकी थी, लेकिन
शहर के पुराने लोगों के लिए वह इलाका अभी भी डिलाइट टॉकीज ही कहलाता है। डिलाइट
टॉकीज इलाका लगभग 700-800 मीटर की सीधी सड़क के आसपास के दायरे में फैला हुआ है।
एक समय यह इलाका स्टूडेंट पॉलिटिक्स के अड्डे के रूप में भी प्रसिद्ध रहा। इस
क्षेत्र की मुन्ना की बिरयानी का जायका लेने लोग दूर-दूर से आते थे। बताया जाता है
कि इसी इलाके में एक ऐसे मैकेनिक की दुकान भी रही है, जो
स्कूटरों का इंजन बनाने के पश्चात् वाहन को घंटों तक स्टार्ट कर के नहीं रखते थे,
बल्कि उनके मालिकों को दो पहिया वाहन सीधे सौंप देते थे। मज़ाल है
कि इसके बाद दो पहिया वाहन कभी खराब हुआ हो। सड़क के दाएं-बाएं ओर छोटे-बड़े चार
पांच रेस्टारेंट भी हैं, जिसमें गोपाल होटल पूरे शहर में
अपनी चाय के लिए मशहूर है। शहर के शौकीन लोग अच्छी चाय पीने के लिए गोपाल होटल आया
करते हैं। वैसे डिलाइट टॉकीज शहर की उन दो टॉकीजों में से एक थी, जिसमें अंग्रेजी की फिल्मों के साथ भारत की क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में
भी लगती थीं। शहर के कई लोगों ने बचपन से युवावस्था तक डिलाइट टॉकीज में बेनहर,
डाक्टर ज़िवागो, मेक्नाज गोल्ड, लॉरेन्स ऑफ अरेबिया, साइको, गन्स
ऑफ नेबरॉन, मेकानाज़ गोल्ड, स्टार
वार्स, भुवन शोम, पाथेर पांचाली,
संदेशम जैसी प्रसिद्ध फिल्में देखी थीं।
मीनू
श्राफ ने लगभग 40 वर्षों तक डिलाइट टॉकीज में कैमरा ऑपरेटर के रूप में काम किया। जब
तक उसके मां-बाप जिंदा रहे, डिलाइट टॉकीज के पास रहे। मां-बाप के निधन के पश्चात् मीनू के
उससे 15 वर्ष बड़े भाई रूसी श्राफ ने परिवार की जमीन को बेच दिया। उनकी जमीन में
जहांगीर अपार्टमेंट खड़ा हो गया। जहांगीर अपार्टमेंट बनते ही रूसी श्राफ और उसकी
पत्नी ने संपत्ति के बंटवारे के भागीदार मीनू श्राफ को मारपीट कर घर से बाहर कर दिया।
मीनू श्राफ अकेला था, इसलिए वह कोई प्रतिरोध नहीं कर सका। पिता
सागर जमशेदजी श्राफ और मां रूपा की मृत्यु के पश्चात् मीनू बिल्कुल अकेला हो गया। मां-बाप
ने बड़े भाई रूसी का तो समय पर विवाह कर दिया, लेकिन मीनू के
संबंध में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं। मीनू श्राफ विवाह तो करना चाहता था, लेकिन पुराने संस्कारों के कारण, वह कभी मां-बाप को
इस संबंध में बोल नहीं पाया। भाई-भाभी द्वारा बेघर होने के पश्चात् मीनू श्राफ के
लिए सिर छिपाने के लिए एक अदद छत समस्या बन गई। लगभग तीन वर्ष तक वह डिलाइट टॉकीज
के बरामदे में ही सोया। कई बार उसने रातें डिलाइट टॉकीज के आसपास की दुकानों के
बाहर रिक्शे वालों के साथ सो कर बिताई। तीन वर्ष के पश्चात् उसे अपने मामा दिनयार
मिस्त्री के यहां कुछ दिनों के लिए छत मिली। बुजुर्ग मामा-मामी के साथ कुछ दिन तो मीनू
के अच्छे बीते। सेंकड शो खत्म होने के पश्चात् उसे घर पहुंचते-पहुंचते रात के एक
बज जाते थे। घर का दरवाजा खटखटाते समय उसे आत्मग्लानि होती। बूढ़े मामा या मामी
जब ऊंघते हुए दरवाजा खोलते, उस समय वह शर्मिंदा हो जाता। मीनू
ने ही एक दिन मामा-मामी से इजाजत ले कर उनका घर छोड़ दिया। कुछ दिन उसने फिर
यहां-वहां बिताए। आखिरकर मीनू श्राफ को पारसी धर्मशाला में पनाह मिली।
68
वर्षीय मीनू श्राफ के एकाकी जीवन में अकेलेपन को उबारने में डिलाइट टॉकीज और उसके
आसपास का इलाका मददगार बन गया। वह सुबह आठ बजे डिलाइट टॉकीज पहुंच जाता। डिलाइट
टॉकीज परिसर में निर्मित होटल या अपार्टमेंट की पार्किंग में वह अपनी साइकिल को
खड़ा कर देता और दिन भर यहां से वहां समय व्यतीत करता। मीनू श्राफ की सुबह की
शुरूआत पहलवान के कपड़ा प्रैस करने वाली दुकान से होती। पहलवान सुबह-सुबह दुकान
खोल कर अपना काम शुरू कर देता था। पहलवान की दुकान में पहुंच कर मीनू दुआ सलाम से
शुरू कर, बीते दिन
की शाम से रात तक की उसकी अनुपस्थिति के दौरान हुए घटनाक्रम का ब्यौरा लेता। ब्यौरे
लेने के दौरान सामने की गोपाल होटल से चाय मंगवा ली जाती। चाय की चुस्कियों के
साथ अखबार की खबरों पर पोस्टमार्टम शुरू हो जाता। खबरों के पोस्टमार्टम के दौरान
कपड़े प्रैस करवाने वाले या आजू-बाजू की दुकान वाले भी शामिल हो जाते। मीनू श्राफ
देश की वर्तमान परिस्थितियों पर हर समय चिंतित दिखता। उसे साम्प्रदायिकता और
जातिवाद के मुद्दे उद्वेलित कर देते। मीनू श्राफ इस बात पर हर समय नाराज रहता कि
शहर के केंट क्षेत्र में वर्षों पुराने पेंटी नाके चौक का नाम जबर्दस्ती भारत माता
चौक क्यों कर दिया गया ? उसकी नाराजगी इस बात पर भी है कि
इसमें प्रशासन का पूरा सहयोग रहा। कई बार बातचीत में प्रतिरोध न करने के कारण को पारसियों
के अल्पसंख्यक होने और उनके शांत स्वभाव को भी जिम्मेदार मानता। मीनू श्राफ यह बात
भी जानता कि शहर में जितने भी पारसी हैं, वे सभी साठ वर्ष
से ऊपर के हैं, इसलिए वे पेंटी नाके चौक का नाम परिवर्तित
करने का विरोध नहीं कर सकते। विरोध या प्रतिरोध तो युवा कर सकते हैं। मीनू श्राफ
व्यक्तिगत तौर अपना विरोध जताता रहता। लोगों से बातचीत में वह जानकारी देता रहता
कि प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री एवं मॉडल डायना पेंटी के परदादा मानेक एस. पेंटी
के नाम पर पेंटी नाका का नाम है। पेंटी नाका शहर के केंट क्षेत्र में सेंट लिओ शिक्षा
संस्थान के पास का विख्यात चौराहा है। डायना के परिवार का पैतृक घर का नाम पेंटी
हाउस है और वह पेंटी नाके के पास स्थित है। सत्ताधारी दल और उसके समर्थक उग्र
संगठनों ने पेंटी को अंग्रेज घोषित कर पेंटी नाके का नाम भारत माता चौक करवा दिया
था। मीनू श्राफ इतिहास की इस छेड़छाड़ से दुखी है। उसे लोगों के इतिहास व संदर्भ
की जानकारी न होने पर झुंझलाहट होती। इन्हीं झुंझलाहट के बीच वह एक कोने में जमीन
में बैठ कर अखबार बेचने वाले नन्हें के ठिए पर पहुंच जाता। मीनू को नन्हें के ठिए
में स्थानीय के साथ दूसरे शहरों के अखबार भी पढ़ने मिल जाते। लगभग आधा-एक घंटे में
वह अखबार पढ़ कर और उनमें छपी खबरों पर चर्चा कर लिया करता।
दोपहर
होते-होते मीनू श्राफ पहलवान की दुकान के सामने स्थित मनमोहन होटल में दाल-चावल
खा लेता। इस बीच वह पारसी धर्मशाला में जा कर आंटी सायरा दारूवाला द्वारा सौंपे गए
कामों को भी निबटा लिया करता। धर्मशाला के कामों को करने के एवज में उसे कुछ रूपए
मिल जाते थे। उससे पहले यह काम आंटी का बेटा रोहिंटन किया करता था, लेकिन
उसका कुछ दिन पूर्व निधन हो जाने के पश्चात् यह जिम्मेदारी मीनू को मिल गई। वैसे
भी पारसी धर्मशाला में सिर्फ सायरा दारूवाला और मीनू ही रहा करते हैं। आंटी का
जीवन भी एकाकी है। उनका बड़ा बेटा फरज़ाद अपनी पत्नी मेहताब के साथ शहर के दूसरे
मोहल्ले में रहता है और कभी-कभी वह अपनी मां का हालचाल जानने के लिए आ जाया करता। भाई
की मौत के पश्चात् फरज़ाद चाहता था कि मां उसके घर में रहने लगे, लेकिन सायरा ने उस की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। सायरा दारूवाला और मीनू
श्राफ के मध्य बातचीत कम होती है, लेकिन उनमें आपसी सामंजस्य
व तालमेल अच्छा है।
मीनू
श्राफ काम निबटा कर पारसी धर्मशाला से वापस डिलाइट टॉकीज दोपहर में ढाई-तीन बजे तक
पहुंच जाता। डिलाइट टॉकीज पहुंच कर उसका सुबह का क्रम एक बार फिर शुरू हो जाता।
मतलब एक दुकान से दूसरी दुकान में जाना और लोगों से अलग-अलग मुद्दों पर बात करना।
ऐसी एक दिनचर्या में उसकी बहस एक दुकान में समान खरीदने ग्राहक से हो गई। बहस का
मुद्दा था मोबाइल में तैर रही अश्लील फिल्मों की क्लिपिंग्स। दोपहर का समय था, इसलिए
जनरल स्टोर्स में एक ही ग्राहक था। दुकानदार भी फुर्सत में था। बहस में मीनू श्राफ
इस बात से क्षुब्ध था कि छोटी-छोटी उम्र के बच्चों के साथ ग्रामीण लोग भी मोबाइल
के कारण अश्लील फिल्मों की क्लिपिंग्स के जाल में उलझ गए हैं। दुकानदार ने मीनू को
छेड़ने की दृष्टि से कहा-‘’मीनू भाई डिलाइट टॉकीज ने भी इस
प्रदूषण को फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इसमें आप की तो मुख्य भूमिका रही !’’
मीनू उसकी बात को समझ नहीं सका। उसने पूछा कि भला अश्लील फिल्मों
की गंदगी फैलाने में उसकी प्रमुख भूमिका कैसे हो गई ? दुकानदार
ने कहा कि मीनू भाई आखिरी-आखिरी में तो डिलाइट टॉकीज में फिल्मों के नाम पर
सिर्फ अश्लील फिल्में ही तो जोड़ कर दिखाई जाती थी और लोगों को दिखाने वाले तो आप
ही तो थे। उस समय मीनू अपने आपे से इतना बाहर हो जाएगा, इसकी
कल्पना दुकानदार ने भी नहीं की थी। मीनू श्राफ चिल्ला कर बोला-‘’साईं डिलाइट टॉकीज में जब अश्लील फिल्मों को जोड़ कर दिखाया जाने लगा,
तो मैं मालिकों के इस निर्णय से सहमत नहीं था। सभी शो में विरोध
स्वरूप बाहर रहता था और फिल्में विजय व राघवेन्द्र ही चलाते थे। साईं.....तुम नहीं
जानते होगे....बर्ट रेनोल्डस, जैक निकोल्सन, जान ट्रेवोल्टा, माइकल डगलस, ग्रेगरी
पैक, क्ंलिट ईस्टवुड, अल पचिनो,
राबर्ट डि’नीरो, डास्टिन
हॉफमेन, हेरिसन फोर्ड, सीन कॉनरी,
ओमर शेरिफ, सिलवेस्टर स्टेलोन जैसे एक्टरों
की फिल्में चलाई हैं। अमिताभ, धर्मेन्द्र, सलमान, आमिर, शाहरूख का नंबर
तो इनमें लगता ही नहीं है। क्या मैं हॉलीवुड के इतने बड़े एक्टरों की फिल्में फिल्में
दिखाने के बाद साउथ की गंदी और ब्लू फिल्में दिखाऊंगा ? क्या
मैं इतना नीच हूं ?’’ मीनू ने ग्राहक से कहा-‘’मैं आपको पहचानता नहीं, लेकिन बताना चाहूंगा हटारी,
सुपरमेन, स्पाइडर मेन, स्टार
वार्स, एंटर द ड्रेगन, टार्जन, और वॉल्ट डिस्ने की कितनी फिल्में चलाई हैं, जिसको
देखने के लिए बच्चों से डिलाइट टॉकीज ठसाठस भर जाती थी....।‘’ दुकानदार और ग्राहक को इतना सब कुछ सुनाने के पश्चात् शांत स्वभाव का मीनू
श्राफ तमतमाते हुए वहां से निकल कर कपड़े प्रैस करने वाले पहलवान की दुकान पर आ कर
बैठ गया। वह वहां बहुत देर तक बैठा रहा। शाम होते-होते उसका वापस जाने का समय हो
गया। नित्य प्रतिदिन की तरह मीनू श्राफ रात का खाना खाने मनमोहन होटल पहुंच गया।
खाना खाते समय भी रोज की तुलना में आज वह चुप ही था।
अगले दिन सुबह मीनू श्राफ तेजी से साइकिल चलाते हुए
डिलाइट टॉकीज पहुंचा। जैसा कि प्रतिदिन होता था, उसकी शुरूआत पहलवान की दुकान से हुई। पिछले
दिन की अपेक्षा वह आज सामान्य दिख रहा था। चाय पी कर मीनू नन्हें के फुटफाथ में
सजी अखबार बेचने की दुकान में पहुंच गया। वहां पहले से कई लोग खड़े या उकड़ू बैठ
कर फ्री में अपनी पसंद का अखबार पढ़ रहे थे। मीनू ने पहले तो स्थानीय हिन्दी का एक
अखबार उठाया और पास में रखे बड़े पत्थर पर बैठ कर पढ़ने लगा। इस दौरान एक-दो स्थानीय अखबार और पढ़ लिए। लोगों
द्वारा पढ़ कर छोड़े गए अखबारों को नन्हें करीने से रख रहा था। अचानक मीनू की नजर
वहीं रखे एक अंग्रेजी अखबार पर गई। उसने अंग्रेजी अखबार को उठा कर उलटना-पलटना
शुरू किया। जैसे ही मीनू ने अखबार को पीछे की ओर मोड़ा तो, उसकी
नजर एक बड़े विज्ञापन पर गई। वह विज्ञापन ‘जियो पारसी’
अभियान से संबंधित था। मीनू ने विज्ञापन को पूरा पढ़ा, तो उसे समझ में आया कि इस सरकारी विज्ञापन
अभियान का मकसद पारसी पुरुषों और महिलाओं को तेजी से शादी करने और ज्यादा से
ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करना है। मीनू को विज्ञापन भद्दा और
आपत्तिजनक लगा। विज्ञापन में एक अधेड़ उम्र का राजसी-सा मगर उदास व्यक्ति एक काफी
ऊंची, गद्दी लगी कुर्सी पर बैठ कर खोया-खोया सा
आसमान की ओर निहार रहा है। विज्ञापन में दिए गए फोटो के साथ कैप्शन है: ‘आपके
अभिभावकों के बाद पारिवारिक घर के वारिस आप होंगे, आपके बाद
यह सब आपके नौकर का होगा।’ उसे लगा कि विज्ञापन नस्लभेद, अभिजात्यवाद
और वर्गीय श्रेष्ठता का खुला प्रदर्शन नहीं, तो और क्या है?
वह उस विज्ञापन को झेल नहीं
पाया। उसने अनुमान लगाया कि इसका संबंध इस तथ्य से है कि पारसी दक्षिणी मुंबई के
पॉश इलाकों के घरों में रहते हैं, न कि उत्तरी भारत के
दूर-दराज के गांवों में। उसे महसूस हुआ कि यह विज्ञापन अविवाहित व्यक्तियों को तो
शर्मिंदा करता ही है, साथ ही उन दंपतियों को भी शर्मिंदा
करता है, जिनके कम से कम दो बच्चे नहीं हैं। मीनू को लगा कि
विज्ञापन ग्रामीण हरियाणा में एक खाप पंचायत सा है। गांव के बुजुर्गों का यह
कंगारू कोर्ट एक आकर्षक विज्ञापन जारी कर रहा है जिसमें अपनी जाति के सदस्यों को
(आपस में) शादी करने और तेजी से बच्चे पैदा करने के लिए कहा जा रहा है, ताकि समुदाय की घटती आबादी को बढ़ाया जा सके। इस जाति के कई सदस्य जमींदार
हैं, जिनके पास काफी जमीन है। वह सोचने लगा कि कल्पना को
थोड़ा और आगे बढ़ाए जाए तो यह विज्ञापन अधेड़ उम्र के अविवाहित, संतानहीन जमींदार को अविवाहित रहने से होने वाले नुकसानों की चेतावनी देते
हुए कह रहा है कि अगर वह ऐसे ही रहता है, तो उसकी कृषि-भूमि
का वारिस कोई निचली जाति का मामूली खेत-मजदूर बनेगा। मीनू सोचने लगा कि संपत्ति
व रूपयों के नाम पर उसके पास कुछ नहीं है, लेकिन वह कई ऐसे
पारसियों को जानता है, जिनके पास संपत्ति भी है और
अविवाहित भी हैं। मीनू ने सोचा कि वह इस विज्ञापन के संबंध में अपने धर्म के
वरिष्ठ व शिक्षित लोगों से बात करेगा और इस विषय को गहराई से समझेगा।
अगले
दिन मीनू शहर में पारसी समाज के सचिव केयरमान बाटलीवाला के पास सुबह-सुबह पहुंच
गया। उस दिन उसे डिलाइट टॉकीज जाने की जल्दी नहीं थी। मीनू उत्तेजित था, इसलिए उसने बिना संदर्भ के केयरमान बाटलीवाला से पूछा-‘’क्या आप जिओ पारसी के संबंध में कुछ जानते हैं ? कितना
आपत्तिजनक विज्ञापन दिया है सरकार ने !’’ बाटलीवाला कुछ समझ
नहीं पाए। उन्होंने मीनू से कहा भाई अहिस्ता-अहिस्ता बोलो, मैं
तुम्हारी बात समझ नहीं पाया। मीनू ने उन्हें अंग्रेजी न्यूज पेपर में छपे विज्ञापन
के बारे में बताया और पूछा कि आप क्या जिओ पारसी अभियान के संबंध में जानते हैं।
मीनू की बात सुन कर केयरमान बाटलीवाला कुछ क्षणों तक मौन रहे। उन्होंने धीरे से कहा
कि वे इस अभियान के संबंध में सब कुछ जानते हैं। मीनू उनकी बात सुन कर एक बार
फिर उत्तेजित होते बोला कि उन्होंने कभी भी इसके बारे बात क्यों नहीं की ? बाटलीवाला कहने लगे- ‘’हमारे शहर में अब कौन बचा है,
जो शादी करेगा। मीनू क्या तुम इस उम्र में शादी करना चाहते हो’’?
मीनू , बाटलीवाला की बात सुन कर झेंपते हुए बोला कि वह शादी नहीं करना चाहता,
लेकिन हम सभी को ऐसे आपत्तिजनक विज्ञापन का विरोध करना चाहिए। केयरमान
बाटलीवाला ने हंसते हुए कहा-‘’तुम तो एक विज्ञापन से इतने
आहत हो गए। तुम्हारी नजर में तो वह विज्ञापन आ गया, इसलिए
तुमको जानकारी मिल गई। भाई जिओ पारसी अभियान तो सितंबर 2013 से चल रहा है और तुम
बात कर रहे हो 2018 में। पांच साल बीत गए। सेंट्रल गर्वमेंट की माइनॉरिटी मिनिस्ट्री
ने पारसियों की घटती आबादी से चिंतित हो कर यह अभियान चालू किया है, समझे।‘’ कुछ देर तक केयरमान बाटलीवाला के घर की
दहलान में निस्तब्धता छाई रही। ‘’मेरी इस बारे में मुंबई में
अपने समाज के कई लोगों से बात होती रहती है। इस प्रोगाम में आईवीएफ के जरिए बच्चे
पैदा किए जाते हैं। जिओ पारसी के कई विज्ञापन जारी हुए हैं। एक विज्ञापन में कंडोम का इस्तेमाल न
करने की नसीहत दी गई है। यह भी कहा गया है कि अगर पारसियों ने शादी करके बच्चे
नहीं पैदा किए तो जल्द ही पारसी कॉलोनी 'हिंदू
कॉलोनी में तब्दील हो जाएगी। विज्ञापनों
में 40 की उम्र के हो चुके उन अविवाहित
पारसी पुरुषों का मजाक उड़ाया गया है, जो अभी
भी अपनी मां के साथ रह रहे हैं। इसके अलावा, उन
महिलाओं पर भी निशाना साधा गया है, जो शादी
के लिए बहुत ही योग्य पुरुषों की तलाश कर रही हैं। इसके लिए बाकायदा रतन टाटा के
नाम का जिक्र भी किया गया है। अब तक 20 से ज्यादा प्रिंट एडवरटाइजमेंट लॉन्च किए गए हैं।
कैंपेन में इस बात की भी दरख्वास्त की गई है कि निसंतान पारसी जियो पारसी स्कीम के तहत सरकार से चिकित्सीय मदद लें। हमारे पारसी समुदाय के इतिहास पर रिसर्च
कर रहीं मुंबई की रहने वाली सिमिन पटेल का तो यह कहना है कि ये विज्ञापन जिस तरह
का प्रेशर महिलाओं पर पैदा कर रहे हैं, उससे
यही लगता है कि महिला का जीवन शादी या बच्चे के बिना अधूरा है। यह बेहद नाराज करने
वाली पहल है।''- केयरमान
बाटलीवाला कहते-कहते
स्वयं उत्तेजित हो गए। उन्होंने मीनू से कहा कि इस शहर के तुम पहले पारसी हो, जिसने यह बात पूछी।
फारूख होमजी भी इसके बारे में जानता है और वह भी इस पूरे मामले में बहुत नाराज है।
मीनू को महसूस हुआ कि उसे फारूख
होमजी से मिल कर इस मुद्दे पर बात करनी चाहिए। केयरमान
बाटलीवाला के घर
से वह फारूख होमजी से मिलने उसके घर तेजी से साइकिल चलाते हुए निकल पड़ा। फारूख
होमजी घर के बाहर कार को साफ करते हुए मिल गया। इससे पहले मीनू कभी भी उसके घर
नहीं गया था। फारूख होमजी उसे देख कर आश्चर्य में पड़ गया कि आज मीनू श्राफ को ऐसा
क्या काम आ गया, जो उससे मिलने घर तक पहुंच गया। मीनू ने व्यग्रता से कहा कि उसे जरूरी बात
करना है, इसलिए वह उसके घर चला आया। फारूख ने अपने बरमूडा से
सिगरेट निकाल कर सुलगाना शुरू कर दी और एक लम्बा कश ले कर मीनू की ओर प्रश्नचिन्ह
निगाहों से देखा। मीनू ने उसे जियो पारसी के विज्ञापन के संबंध में बताते हुए पूछा
कि क्या वह भी इस मसले पर नाराज है। फारूख ने फिर सिगरेट का कश लिया और उसकी बात
सुनने लगा। मीनू सोच रहा था कि फारूख होमजी सिर्फ सुनेगा ही या कुछ बोलेगा भी ? कुछ क्षणों के पश्चात् फारूख ने कहा-‘’भाई बीनू,
मेरे विचार में बच्चों को इस तरह से पैदा कराने के बजाए इस मसले को
हल करने के कई तरीके हो सकते हैं। पारसी मां और गैर पारसी पिता के हजारों ऐसे
बच्चे हैं, जो कानूनी तौर से पारसी नहीं स्वीकार किए जाते और
जिन्हें पारसी समुदाय नहीं मानता। तो अगर हम इन बच्चों को कानूनी और सामाजिक तौर
पर पारसी समुदाय में शामिल करना शुरू कर दें, तो पारसियों की
आबादी हजारों की संख्या में बढ़ जाएगी। मुझे तो जियो पारसी के विज्ञापन पर भी
ऐतराज है। इन विज्ञापनों को मुंबई की मेडिसन कंपनी ने बनाया है, जिसके कर्ताधर्ता इश्तिहार की दुनिया की जानी-मानी हस्ती सैम बलसारा है।
जो खुद भी एक पारसी हैं। ये योजना केवल समय की बर्बादी है। इससे अब तक कोई खास
आबादी बढ़ने वाली नहीं।‘’
मीनू फारूख होमजी के घर से वापस
डिलाइट टॉकीज आ कर पहलवान की दुकान में बैठ गया। दुकान के एक कोने में बैठ कर वह केयरमान
बाटलीवाला और फारूख
होमजी से मिली जानकारी को ले कर सोचने लगा। वह सोचने लगा कि उसका बचपन जराथूस्त्रियन धर्म और
आठवीं सदी में सताए गए जराथूस्त्रियनों के भारतीय समुद्री तट पर पहुंचने की कहानी
पढ़ते हुए बीता। जराथूस्त्रियन धर्म और संस्कृति को संरक्षित करने की जगह,’ जियो
पारसी’ अभियान का मकसद एक नृ-जातीय समुदाय की रक्षा करना है, जो खुद को एक अलग ही नीले रक्त वाली नस्ल मानता है, जिसकी
शुद्धता पारसियों के अपने समुदाय के बाहर शादी करने से नष्ट हो जाएगी। समुदाय के
भीतर पारसी पिता और गैर-पारसी माता से जन्मे बच्चे को तो स्वीकार कर भी लिया जाता
है, मगर पारसी मां और गैर-पारसी पिता से जन्मे बच्चे को
स्वीकार नहीं किया जाता। यह पितृसत्ता, पुरातनपंथ और धार्मिक
कट्टरता का लजीज कॉकटेल है। पहले वाले के बच्चों को नवजोत संस्कार करने दिया जाता
है, मगर बाद वाले को इसकी इजाजत नहीं होती, जो इस धर्म में शामिल होने का पर्व है। जियो पारसी अभियान के तहत मेडिकल
सहायता से सैकड़ो बच्चों का जन्म हो रहा है, वास्तव में इस
समुदाय को बचाने नहीं जा रहा है। इस समय पारसियों को किसी और से नहीं, खुद उनसे ही बचाए जाने की जरूरत है। निश्चित तौर पर भारत में महज 57,000
के करीब आबादी वाला पारसी समुदाय किसी दूसरे नस्ल के लिए कोई खतरा
नहीं है। हम तो बस एक तरह से खुद को ही विलुप्ति की ओर धकेल रहे हैं। मीनू के लिए
यह समझना मुश्किल हो रहा था कि आखिर कैसे नस्लवाद, पितृसत्ता
और तर्कों की गैर-हाजिरी को उतना ही सम्मान दिया जा सकता है, जितना इन प्रवृत्तियों के विरोध को। वह सोचने लगा कि यह समय है जब शेष
भारत पारसियों को पक्षियों की विदेशी और दुर्लभ प्रजाति की तरह देखना बंद करे और
उन्हें भी उसी तरह से परीक्षण की कसौटी पर कसे, जिस तरह से
दूसरे समुदायों के साथ किया जाता है। भारत सरकार 10 करोड़
रुपये के जियो पारसी अभियान को समर्थन दे रही है। दूसरे शब्दों में कहें, तो इसका मतलब ये है कि एक गरीब और क्षमता से ज्यादा जनसंख्या वाला देश एक
अमीर और शिक्षित समुदाय को ज्यादा बच्चे पैदा करने में मदद करने के लिए एक सौ
मिलियन रुपए खर्च कर रहा है। इस पैसे का कहीं अच्छा इस्तेमाल देश के दूरस्थ
गांवों-जंगलों में मर रहीं आदिवासी संस्कृतियों की रक्षा करने के लिए हो सकता है। यह
अभियान साफतौर पर कहता है कि पारसियों को दो या ज्यादा बच्चे पैदा करने की कोशिश
करनी चाहिए। यानी शेष भारत के लिए नारा, ‘हम दो हमारे दो’ है
और पारसियों के लिए ’हम दो और हमारे दो या दो से ज्यादा’ है। एक बड़ी बुजुर्ग होती
आबादी वाले समुदाय को फर्टिलिटी ट्रीटमेंट देने की जगह गोद लेने को प्रोत्साहन
देना चाहिए। क्या पारसी नस्ल से बाहर वाले गैर नील-रक्तीय बच्चों को जराथूस्त्रियन
पंथ में दीक्षित करने को समुदाय की रक्षा करना नहीं माना जाएगा ? उसे लगा कि बच्चों को गोद लेना अच्छा विचार साबित हो सकता है।
‘’मीनू क्या
आज खाना नहीं खाने नहीं जाओगे?’’ आवाज से उसकी तंद्रा टूटी। कपड़े
प्रैस करने वाले पहलवान ने मीनू को झिझोंड़ते हुए कहा। मीनू ने उससे कहा कि उसे
सुबह से अच्छा महसूस नहीं हो रहा है, इसलिए वह रात का खाना
नहीं खाएगा। वह वहां से धीरे से उठा और साइकिल उठा कर पारसी धर्मशाला की ओर चल
पड़ा। धर्मशाला पहुंचते ही उसे आंटी सायरा दारूवाला ने याद दिलाया कि ‘खोरदादसाल’ (पारसियों का त्यौहार) आ रहा है। इसके
सभी आयोजन धर्मशाला में होंगे। उसने मीनू से कहा कि वह फ्रेश हो कर आ जाए, तो फिर कार्यक्रम की तैयारी पर बात की जाएगी। मीनू का मूड सुबह से ठीक
नहीं था, इसलिए उसने सायरा से कहा कि क्या बात करनी ?
सिर्फ चालीस लोगों का इंतजाम तो करना ही। हर साल लोग कम होते जा रहे
हैं। पिछली बार 44 थे। आरजू आंटी नहीं रहीं और दीनाज़ की फेमिली मुंबई चली गई। पता
नहीं अगले साल चालीस में से कितने बचेंगे ? मीनू की बात सुन
कर सायरा गुस्सा नहीं हुई, बल्कि उसको पुचकारते हुए बोलीं-‘’मीनू काए को अशुभ बात कर रहे हो। तुमको तो पहले ऐसा कभी नहीं देखा। मैं
तुम्हारे भरोसे ही रह रही हूं धर्मशाला में। तू यहां नहीं होता, तो कब के फरज़ाद के साथ उसके घर चली जाती। ‘’ मीनू को
भी महसूस हुआ कि वह आज क्यों निराशावादी होता जा रहा है। वह तुरंत मुस्करा कर सायरा
से बोला-‘’आंटी 87 वर्ष की उम्र में तुम्हारी यही स्प्रिट
तो मेरे को जोश भर देती है। बस फट से गया और फट से हाथ-मुंह धो कर आता हूं।‘’
‘खोरदादसाल’
के आयोजन स्थल पारसी धर्मशाला में शहर का पूरा पारसी समुदाय उत्साह
से पहुंचा। सायरा और मीनू ने पारसी व्यंजन धनसाक, पातरानी
मच्छी और मावा केक की विशेष व्यवस्था की थी। सभी ने इस आयोजन का खूब आनंद उठाया।
खाने पीने के बाद समुदाय के अध्यक्ष डोराब वजान ने सभी को शांत करते हुए कहा कि
उनको सभी से कुछ जरूरी बात करनी है। डोराब धीरे-धीरे बोलने लगे-‘’हम पारसी लोग शहर में आज संख्या में इतने कम हैं और दूसरे सम्प्रदाय के सैकड़ो
परिवार ऐसे हैं, जिनकी संख्या में हम से अधिक हैं। हमारी
संख्या कम होने से राजनैतिक दल भी हमें तवज्जो नहीं देते। पेंटी नाका प्रकरण में
आप सभी लोग देख चुके हैं कि किस तरह उसे भारत माता चौक में बदल दिया गया और हम
लोग कुछ नहीं कर सके। पुलिस और एडमिनिस्ट्रेशन भी हमारी नहीं सुनता। सड़क पर भी
हम लोग उतर नहीं सकते। हम लोगों में पुरूषों की संख्या कम है और महिलाएं ज्यादा हैं।
मैं यह सब बातें इसलिए कर रहा हूं कि मुझे जानकारी मिली है कि कुछ जमीन माफिया
की नज़र हमारी सौ वर्ष पुरानी पारसी धर्मशाला पर है। वे लोग ताक में हैं कि कब
इसे हड़प लिया जाए। शहर के पॉश इलाके में होने से हमारी पारसी धर्मशाला की जमीन की
कीमत करोड़ो रूपए की है। आप लोगों को जानकारी नहीं होगी कि धर्मशाला कितने इलाके
में फैली हुई है? मीनू तुम बता सकते हो ?’’ मीनू कुछ देर तक शांत रहा। वह धीरे से बोला-‘’बजान
साहब धर्मशाला का एरिया 45 हजार स्कवेयर फुट है। आप सही कह रहे हैं कि जमीन
माफिया की नज़र हमारी पारसी धर्मशाला पर है, परन्तु हम लोग
जब तक जिंदा हैं, किसी को यहां हाथ नहीं लगाने देंगे। मैं
कई बार देख चुका हूं कि कुछ संदिग्ध व्यक्ति दिन में और कई बार रात में भी
धर्मशाला के सामने खड़े दिखते हैं। हमें इस संबंध में कलेक्टर व एसपी से एक बार
जरूर मिल कर अपनी बात रखनी चाहिए।‘’ मीनू की बात पर वहां
मौजूद शहर के सभी पारसियों ने सहमति जताई।
दो-तीन दिन के पश्चात् शहर
के सभी 40 पारसी महिला व पुरूष कलेक्टर से मिलने पहुंचे। सोमवार का दिन होने के
कारण कलेक्टर लंच तक मीटिंगों में व्यस्त रहे। लंच में जाने से पूर्व वे अपने
चेम्बर में पहुंचे,
तो उनके कक्ष के समक्ष हलचल मच गई। शहर के सभी पारसी पहली बार अपनी
समस्या को ले कर कलेक्ट्रेट गए थे। उनमें से अधिकांश बुजुर्ग होने के कारण वहां
रखी गई बेंचों में बैठे गए और जिनको जगह नहीं मिली, उनके लिए
सीढ़ियां सहारा बन गई। मीनू को छोड़ कर सभी पारसियों के लिए कलेक्ट्रेट की भीड़
और वहां की गहमागहमी असहनीय हो रही थी। मीनू श्राफ ने अपनी सार्वजनिकता के कारण
कलेक्ट्रेट के वातावरण में तालमेल बैठा लिया। इस बीच वह दो बार कलेक्ट्रेट की
केंटीन में जा कर चाय भी सुड़क आया। कलेक्टर साहब कक्ष के बाहर जमा भीड़ को कुछ
सेकण्ड में निबटाने लगे। पारसियों को यह बुरा लगा कि कलेक्ट्रेट में सबसे पहले
पहुंचने और सबसे पहले उनके द्वारा भेजी गई पर्ची पर कलेक्टर साहब ने अब तक कोई
ध्यान नहीं दिया। कलेक्टर ने सभी को निबटाने के पश्चात् पारसियों को बुलवाया। बीनू,
डोराब बज़ान, केयरमान बाटलीवाला, फारूख होमजी ने सभी को एकत्रित कर कलेक्टर के चेम्बर में
प्रवेश किया। डोराब बज़ान ने धीरे से कलेक्टर को पारसी धर्मशाला पर ज़मीन माफिया
के खतरे से अवगत कराया। डोराब बज़ान जब बोल रहे थे, तब तक कलेक्टर ने अपने चश्मे
को कवर में रखते हुए घंटी बजा दी। उनके चेम्बर के बाहर खड़े दरबान के लिए यह संकेत
था कि कलेक्टर साहब लंच के लिए घर जाने वाले हैं। दरबान घंटी बजते ही कलेक्टर के
चेम्बर में प्रविष्ट हो गया और उनका ले जाने वाले समान को समेटने लगा। पारसियों
के समूह को महसूस हुआ कि संभवत: कलेक्टर उनकी समस्या गंभीरता से सुन नहीं रहे हैं।
कलेक्टर ने कुर्सी से उठते हुए कहा कि वे लोग इस के लिए कमरा नंबर 14 में एडीशनल
कलेक्टर से मिल लें। उम्र का दिसंबर आपको वह दृष्टि देता है कि आप सतह से नीचे
भी देख पाएं। बुजुर्ग पारसी पुरूष व महिलाओं ने भांप लिया कि कलेक्टर ने उन्हें
टरका दिया। इन्हीं बुजुर्गों में से एक आवाज उठी कि हम लोग अल्पसंख्यक धर्म के हैं,
इसलिए कोई हमारी नहीं सुन रहा। मीनू श्राफ उन्हें सांत्वना देते हुए
कहा- ‘’अंकल...आंटी...यह कलेक्ट्रेट ऐसी जगह है, जहां किसी की सुनी नहीं जाती, लेकिन हम लोगों को
निराश नहीं होना चाहिए.....एडीशनल कलेक्टर साहब से मिलते हैं....देखते हैं वह क्या
बोलते हैं।‘’ पारसियों का समूह एडीशनल कलेक्टर से मिलने
कमरा नंबर 14 पहुंचा। प्यून ने थोड़ा न नुकर के बाद उन्हें कमरे में अंदर प्रविष्ट
होने दिया। पारसियों ने देखा कि एडीशनल कलेक्टर की कुर्सी पर एक युवती बैठी हुई
थी। डोराब बज़ान ने महिला एडीशनल कलेक्टर को अपने समुदाय की समस्या की जानकारी
देते हुए कहा कि शहर के लिए पारसी धर्मशाला का ऐतिहासिक महत्व है और ज़मीन माफिया
से इस को बचाना बहुत जरूरी है। महिला एडीशनल कलेक्टर ने पारसी समूह से पूछा कि
वर्तमान में धर्मशाला का केयर टेकर कौन है ? डोराब बज़ान और
केयरमान बाटलीवाला ने सायरा दारूवाला व मीनू श्राफ को सामने आने को कह कर, दोनों का परिचय करवाते हुए कहा कि ये दोनों धर्मशाला की पूरी व्यवस्था
संभाल रहे हैं। 87 वर्षीय सायरा और 69 वर्षीय मीनू श्राफ को देख कर महिला एडीशनल
कलेक्टर आश्चर्य में पड़ गईं कि दो उम्रदराज लोग भला मौका पड़ने पर ज़मीन माफिया
का क्या मुकाबला कर सकेंगे ? एडीशनल कलेक्टर ने पूरे समूह को
देख कर पूछा कि क्या आप के समुदाय में कोई ऐसा युवा व्यक्ति नहीं है, जो धर्मशाला का प्रबंधन देख सके
? महिला अधिकारी की बात सुन कर वहां मौजूद पारसी प्रतिनिधिमंडल
कुछ क्षणों तक मौन रहा। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वे क्या उत्तर दें। मीनू ने
झिझकते हुए कहा कि वह स्वयं और सायरा और उनके सभी साथी इतने सक्षम हैं कि वे किसी
भी विपत्ति का सामना कर सकते हैं। मीनू की बात सुन कर महिला एडीशनल कलेक्टर सोच
में पड़ गईं कि शहर में इनके समुदाय में कोई भी युवा नहीं है और ये सभी लोग इतने
बुजुर्ग हैं कि अपना तो ख्याल रख नहीं सकते, धर्मशाला को
ज़मीन माफिया से कैसे बचाएंगे ? महिला एडीशनल कलेक्टर ने
पारसियों के प्रतिनिधि मंडल से पूछा कि पारसी धर्मशाला शहर के किस स्थान पर
है। मीनू द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर शहर के भूगोल से अनभिज्ञ एडीशनल
कलेक्टर ने कहा कि वे कमरा नंबर 27 में एसडीएम से मिल लें और अपनी समस्या से
उन्हें अवगत करवा दें।
दिन के तीन बज चुके थे। प्रतिनिधि
मंडल में शामिल बुजुर्ग पारसी पुरूष व महिला सरकारी तंत्र से हलाकान हो चुके थे।
उनकी हिम्मत जवाब देने लगी थी। पारसी समुदाय का नेतृत्व करने वाले डोराब बज़ान और केयरमान
बाटलीवाला को महसूस होने लगा था कि उन सभी को अब घर वापस लौट चलना चाहिए, लेकिन मीनू की इच्छा के कारण उन लोगों को झुकना पड़ा। मीनू आगे चलने लगा
और प्रतिनिधि मंडल के लोग एक दूसरे का हाथ पकड़ कर घिसटते हुए धीरे-धीरे उसके
पीछे कमरा नंबर 27 की ओर चल पड़े। कमरा नंबर 27 में पहुंचने पर उनको बाहर बैठे
प्यून से जानकारी मिली कि एसडीएम साहब धरने का ज्ञापन लेने गए हैं और उन लोगों को
इंतजार करना पड़ेगा। प्रतिनिधि मंडल में शामिल सभी लोग एक दूसरे का मुंह देखने
लगे। सभी ने मीनू की ओर प्रश्नचिन्ह निगाहों से देखा। मीनू ने सभी को हौंसला देते
हुए कहा कि दिन भर तो इस काम में लग गया है, थोड़ा और इंतजार
कर लेते हैं। लगभग शाम के चार बजे तीन व्यक्ति कमरे में प्रविष्ट हुए। प्यून ने
कागज की पर्ची एसडीएम के समक्ष रख दी। एसडीएम ने पारसियों के प्रतिनिधि मंडल को
बुलाने को कहा। प्रतिनिधि मंडल एसडीएम के कमरे में प्रविष्ट हुआ, तो डोराब बज़ान ने मीनू से कहा कि वही पूरी बात साहब को बताए। मीनू ज़मीन
माफिया के खतरे के संबंध में जानकारी देने लगा। एसडीएम ने जैसे ही पारसी धर्मशाला
सुना, उन्होंने अपने सामने बैठे व्यक्ति से कहा-‘’तहसीलदार साहब....क्या यह वहीं मामला है, जिसका आप
जिक्र कर रहे थे ?’’ सामने बैठा व्यक्ति, जो तहसीलदार था, उसने धीरे से सिर हिलाकर सहमति
व्यक्त की। एसडीएम ने पारसियों के प्रतिनिधि मंडल से पूछा-‘’क्या उनके पास धर्मशाला से संबंधित सभी कागजात वगैरह हैं कि नहीं ?
एक दो दिन में आप उन को ले कर आइए...... फिर हम लोग देखेंगे कि
धर्मशाला पर मालिकाना हक किसका है....... और वाकई में....... ज़मीन माफिया
धर्मशाला पर कब्ज़ा जमाना चाहता है या आप लोगों की कोई कल्पना है।......वैसे आप
सभी लोग बूढ़े हो......बुढ़ापे में बैठे-बैठे दिमाग में कई फितूर आते रहते हैं और
मुझे लगता है कि ज़मीन माफिया भी आप लोगों का फितूर है।‘’ एसडीएम
ने हंसते हुए कहा। पारसियों का प्रतिनिधि मंडल एसडीएम की बात सुन कर हतप्रभ
रहा गया। प्रतिनिधि मंडल के किसी भी पुरूष या महिला ने एसडीएम की बात का जवाब
देना उचित नहीं समझा और वे उनके कमरे से बिना कुछ बोले बाहर निकल गए।
इस
घटना के पश्चात् शहर का पारसी समुदाय निराश हो गया और उन्हें महसूस हुआ कि उनके
समुदाय के प्रति कोई भी संवेदनशील नहीं है। अनौपचारिक रूप से उन लोगों के बीच कई
बार इस मसले पर बात हुई, लेकिन वे सभी कोई ठोस निष्कर्ष पर पहुंच
नहीं सके। मीनू श्राफ की नियमित दिनचर्या ने फिर गति पकड़ ली। उसका सुबह से डिलाइट
टॉकीज निकल जाना और वहां दिन भर गुजारना। मीनू वहां व्यस्त तो रहता, लेकिन उसके दिमाग में दिन भर ज़मीन माफिया की बात घूमती रहती। कई बार उसे
स्वयं लगने लगता कि कहीं वाकई में उसका और सायरा आंटी का भ्रम या एसडीएम की भाषा
में कहें तो फितूर तो नहीं है। एक दिन उसने सायरा आंटी से पूछ ही लिया-‘’आंटी...उस दिन से आज तक मैं सोच रहा हूं कि ज़मीन माफिया के जिस खतरे से
हम लोग भयभीत हैं, वह केवल भ्रम तो नहीं है ?’’ आंटी ने उसे गहराई से देखा और बोली-‘’मीनू मेरी उम्र
87 वर्ष है। इतने वर्षों का कोई तजुर्बा तो होता है। तुम समझते....हो...न..सिक्सथ
सेंस। मेरा सिक्सथ सेंस कह रहा है कि.... कहीं न कहीं कोई हमारी धर्मशाला पर नज़र
गढ़ाए हुए है......जब तक मैं जिंदा हूं अपनी धर्मशाला को तो बचाऊंगी....बचपन से
मेरी यादें यहां से जुड़ी हुईं हैं.... चाहे बचाने में मर जाऊं...मीनू ......तू तो
मेरा साथ देगा न.....।‘’ मीनू सायरा आंटी की बात सुन कर भावुक
हो उठा। किसी तरह उसने आंसू को तो नियंत्रित कर लिया, लेकिन
वह आवाज को काबू में नहीं रख पाया और रूंधे गले से बोला-‘’आंटी
जब आप 87 वर्ष में ज़मीन माफिया से टक्कर ले सकती हैं, तो
भला मैं तो अभी 70 का नहीं हुआ। क्यों आप मुझे शर्मिंदा कर रही हैं। मैं भी उन
लोगों की किसी हरकत का जवाब देने के लिए हर तरह से सक्षम हूं।‘’ मीनू बोलते-बोलते अचानक फट पड़ा और धाड़ मार कर रोने लगा। सायरा दारूवाला मीनू
की यह स्थिति देख कर भौंचक्की रह गई। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह इस समय क्या
करे ? सायरा ने किसी तरह मीनू को शांत कराया। सायरा ने मीनू
को पुचाकारते हुए कहा-‘’अरे....मीनू ....तू इतना इमोशनल
क्यों हो रहा है। मेरे को देख ....मैं क्या इमोशनल हो रही हूं ? हां…. मैं इमोशनल हूं धर्मशाला को ले कर, लेकिन खुद पर कंट्रोल करो।‘’ सायरा आंटी ने मीनू को
पानी का गिलास देते हुए कहा कि मैं जानती हूं ,तुम कई दिनों
से घुट रहे थे और आज तुम्हारा उबाल फूट पड़ा। अच्छा ही है.....भीतर कुछ भी नहीं
रहना चाहिए।‘’ मीनू अब तक शांत हो चुका था। वह आंसू पोंछते
हुए अपने कमरे में चला गया।
कुछ ही
दिन पश्चात् मीनू जब दिन के समय डिलाइट टॉकीज में था, उसके पास सायरा आंटी का घबड़ाई हुई आवाज में फोन आया। आंटी ने उसे तुरंत
धर्मशाला आने को कहा और फोन काट दिया। मीनू के लिए धर्मशाला में रहने के दौरान यह
पहला वाक्या था, जब आंटी उसे तुरंत आने को कह रही थी। वह समझ
नहीं सका कि ऐसा क्या हो गया कि आंटी उसे तुरंत आने को कह रही हैं। उसने आंटी के
लैंडलाइन नंबर पर मोबाइल लगाया, लेकिन लंबी घंटियां जाने के
बावजूद उसे उत्तर नहीं मिला। मीनू ने पहलवान की दुकान के सामने खड़ी साइकिल को झटके
से उठाया और तेजी से पेडल चलाता हुआ पारसी धर्मशाला की ओर चल पड़ा। रास्ते भर मीनू
के मन में तरह-तरह की आशंकाएं घुमड़ती रहीं। उसे लग रहा था कि कहीं आंटी की तबियत
तो खराब नहीं है ? लेकिन फोन पर बात करते समय उनकी आवाज़ तो
ठीक लग रही थी। फिर उसे लगा कि आंटी को बेटा फरज़ाद तो उन्हें लेने तो आ गया हो और
आंटी उसके साथ न जाना चाहती हों ? इन विचारों को सोचते हुए
वह पारसी धर्मशाला पहुंच गया। बड़े दरवाजे के अंदर से साइकिल ठीक उसने पोर्च की ओर
कर दी। बाहर बरामदे में उसे आंटी के साथ तीन लोग बैठे हुए नज़र आए। आंटी को
सामान्य देख कर मीनू ने राहत की सांस ली। साइकिल स्टैंड पर खड़ी कर वह तेजी से
बरामदे में पहुंच गया। पहुंचते ही उसने सायरा से पूछा कि वह ठीक है न। आंटी ने कहा
कि मैं तो ठीक हूं, लेकिन इन लोगों की बात तो सुनो। मीनू
वहीं कुर्सी पर बैठ गया और तीनों अनजान लोगों से पूछा कि उनके आने का मकसद क्या है
? आंटी तुरंत बोली-‘’अरे मीनू, ये लोग धर्मशाला में कॉमर्शियल काम्पलेक्स बनाने का कोई प्लान ले कर आए
हैं। कह रहे हैं कि एमएलए और कोई न्यूज पेपर के मालिक की इसमें रूचि है।‘’ मीनू श्राफ अब तक समझ चुका था कि जिसे वह भ्रम या फितूर समझ रहा था,
वह अब उसके समक्ष यथार्थ रूप में आ खड़ा हो गया है। मीनू ने इशारे
से सायरा आंटी को चुप रहने का संकेत देते हुए तीनों व्यक्ति से पूछा कि क्या वे
लोग अपना परिचय दे सकते हैं। तीन में से दो व्यक्तियों ने अपने परिचय में जानकारी
दी कि उन में से एक व्यक्ति शहर के सब से तेज बढ़ते और सब से ज्यादा सर्कुलेशन वाले
अखबार का पत्रकार है और दूसरा व्यक्ति शहर के दबंग एमएलए का भाई है। मीनू को
धीरे-धीरे समझ में आने लगा कि कलेक्ट्रेट में एसडीएम ने उनके मामले को क्यों टरका
दिया था। उसने सायरा आंटी को कलेक्ट्रेट की याद दिलाते हुए कहा कि अब तक वह समझ
गईं होगीं कि पूरा मामला क्या है। मीनू अंदर ही अंदर यह सोच कर कांप गया कि पारसी
धर्मशाला को हड़पने के लिए मीडिया-पॉलिटिकल-ब्यूरोक्रेसी का गठजोड़ तैयार हो चुका
है। उसने आंटी को इशारे से भीतर आने को कहा और उन्हें धर्मशाला को हड़पने वाले गठजोड़
जानकारी देते हुए कहा कि इनसे डरने की जरूरत नहीं है। यदि पहली बार डर गए, तो ये लोग हम पर सवार हो जाएंगे। मीनू भीतर से बरामदे की ओर जाने लगा।
आंटी उसके साथ बरामदे की ओर नहीं आईं और वे अपने कमरे में चली गईं। मीनू समझ नहीं
पाया कि आंटी अपने कमरे में क्यों चली गईं ? बरामदे में आ कर
मीनू कुछ बोलता, इसके पहले सायरा आंटी भीतर से एक बंदूक हाथ
में लिए आती दिखीं। आंटी ने बरामदे में आ कर तीनों व्यक्तियों से कहा-‘’देखिए हम पारसी लोगों की रूपए-पैसे में कोई रूचि नहीं है..........जब तक
मैं जिंदा हूं .........धर्मशाला की पूरी जिम्मेदारी संभालूगीं।......मेरे इस
निर्णय से पूरा समाज सहमत है......इसके लिए आप को पारसी समाज के किसी भी व्यक्ति
से बात करने की जरूरत नहीं है.......और वैसे भी मीनू मेरे साथ 24 घंटे साथ रहता
है.......और जरूरत पड़ी तो शहर के सभी पारसी पुरूष व महिलाएं भी धर्मशाला में आ
जाएंगे.....सभी लोग एक साथ रहेंगे.......हम लोग संख्या में कम हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर डट कर मुकाबला भी कर सकते हैं.......।‘’ सायरा आंटी के इस रूप को देख कर तीनों व्यक्तियों के साथ मीनू भी आश्चर्यचकित
हो गया। सायरा दारूवाला ने मीनू को बंदूक थमाते हुए कहा-‘’ जरा
इसे धूप में रख दो। बहुत दिनों से अंदर रखी थी। थोड़ी धूप लगेगी, तो इसकी सीलन चली जाएगी। बहराम की बंदूक है और इससे मेरी यादें जुड़ी हुई
हैं।‘’ सायरा की बात सुन कर तीनों व्यक्ति चुपचाप धर्मशाला
के मुख्य द्वार की ओर जाने के लिए निकल गए। मीनू ने चुपचाप एक टेबल पर सायरा के
दिवंगत पति बहराम की बंदूक धूप में रख दी।
आज भी
पारसी धर्मशाला में मीनू प्रतिदिन सुबह डिलाइट टॉकीज जाने से पहले सायरा की बंदूक बाहर
धूप में रखता है। बंदूक की सीलन जा चुकी है, लेकिन बंदूक के साथ सायरा और मीनू
पारसी धर्मशाला की व्यवस्थाएं मुस्तैदी से संभाल रहे हैं।
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