बुधवार, 12 मई 2021

भगवतीधर वाजपेयी : पत्रकारिता जीवन के मेरे पहले संपादक, गुरू और मार्गदर्शक

रानी दुर्गावती विश्‍वविद्यालय के संचार अध्‍ययन एवं शोध विभाग (पत्रकारिता) विभाग में बैचलर ऑफ जर्नलिज्‍म कोर्स में वर्ष 1989 के सत्र में प्रवेश लेते समय कभी भविष्‍य के बारे में सोचा नहीं था। इस सत्र से ही विभाग में नए सिरे से प्राध्‍यापकों की स्‍थायी नियुक्ति और अन्‍य व्‍यवस्‍थाएं की गई थीं। प्रो. डा. उमा त्रिपाठी, डा. जे. एस. मूर्ति और डा. शशिकांत शुक्‍ल हमारे प्राध्‍यापक थे। पहले दिन से ही तीनों प्राध्‍यपकों की कोशिश थी कि समस्‍त विद्यार्थी प्रतिदिन कक्षाओं में आएं और वर्ष भर में पत्रकारिता के सभी क्षेत्रों में सैद्धांतिक व व्‍यावहारिक पक्षों का ज्ञान प्राप्‍त करें। मुझे याद है कि उस समय सत्र प्रांरभ होते ही प्रो. उमा त्रिपाठी ने मुझे एवं वीरेन्‍द्र व्‍यास (वर्तमान में ग्रामोदय विश्‍वविद्यालय चित्रकूट के पत्रकारिता विभागाध्‍यक्ष) से कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव का व्‍यापक सर्वेक्षण करवाया था। इस प्रकार का सर्वे करने का हम लोगों यह प्रथम अनुभव था और इससे हम लोगों ने काफी सीखा था। सर्वेक्षण के पश्‍चात् उसका विश्‍लेषण किस प्रकार किया जाए, इस तकनीक को प्रो. शशिकांत शुक्‍ल ने गहनता के साथ सिखाया। हम लोगों ने इस सर्वेक्षण को एक सप्‍ताह की समय सीमा में पूरा किया था। सेम्‍पल साइज लगभग दो हजार था। दैनिक भास्‍कर जबलपुर के प्रधान संपादक गोकुल शर्मा व स्‍थानीय व कार्यकारी संपादक रम्‍मू श्रीवास्‍तव थे। दोनों का पुराने अनुभव के आधार पत्रकारिता विद्यार्थ‍ियों के प्रति राय अच्‍छी नहीं थी। जब हम लोग सर्वेक्षण ले कर रम्‍मू श्रीवास्‍तव के पास गए, तो लगभग एक घंटे तक उन्‍होंने हमारे द्वारा किए गए सर्वेक्षण व तकनीक की पूरी जानकारी ली। संतुष्‍ट होने के बाद उन्‍होंने हमें सर्वे के आधार पर एक समाचार बनाने को कहा। अगले दिन दैनिक भास्‍कर जबलपुर के अंतिम सिटी पृष्‍ठ में वह सर्वेक्षण हम लोगों को श्रेय देते हुए प्रकाशित किया गया। यह बात छोटी थी, लेकिन हम लोगों व पत्रकारिता विभाग के लिए यह उपलब्धि बड़ी थी।

तीन-चार माह बीतने के साथ विभाग के सभी विद्यार्थ‍ियों को निर्देश मिले कि सभी को व्‍यावसायिक प्रशिक्षण यानी की इंटर्नशिप के लिए किसी भी समाचार पत्र, प्रसार माध्‍यम या जनसम्‍पर्क विभाग का चयन करना है। इतने दिनों में प्रो. उमा त्रिाठी व डा. जे. एस. मूर्ति के प्रति शिक्षक के साथ एक विद्यार्थी जैसा औपचारिक फासला था, लेकिन प्रो. शशिकांत शुक्‍ल के साथ हम लोग कक्षाओं के बाद भी तत्‍कालीन पत्रकारिता के विभिन्‍न मुद्दों पर खुल कर बातचीत करते थे। मुझे याद है कि बातों-बातों में डा. शुक्‍ला कई बार कहते थे कि इंटर्नशिप ऐसी जगह करना चाहिए, जहां खुल कर आप को काम करने का मौका मिले। कई बार वे संकेत में कहते थे कि‍ इंटर्नशिप के लिए दैनिक युगधर्मसे बेहतर कोई अखबार नहीं है। उनका मानना था कि बड़े अखबार में व्‍यक्तित्‍व निर्माण नहीं हो पाता और काम सीखने के अवसर सीमित होते हैं। इंटर्नशिप के निर्णायक मोड़ पर तीनों प्राध्‍यापक एक-एक विद्यार्थी से उनकी रूचि के संबंध में पूछ कर निर्णय लेते जा रहे थे। जब मेरी बारी आयी तो मुझे प्रो. शशिकांत शुक्‍ल की बात याद आयी। मैंने तुरंत कहा कि दैनिक युगधर्ममें इंटर्नशिप करना चाहूंगा। मेरी इस बात से प्रो. उमा त्रिपाठी व डा. जे. एस. मूर्ति सहमत नहीं थे। वे चाहते थे कि मुझे इंटर्नशिप दैनिक भास्‍कर, नवभारत या नवीन दुनिया में करनी चाहिए। डा. शशिकांत शुक्‍ल ने दोनों प्राध्‍यापक को सहमत करवाया। इसके बाद दैनिक युगधर्म के संपादक भगवतीधर वाजपेयी के नाम से पत्रकारिता विभाग का एक पत्र जारी कर दिया।

उसी दिन मैं श्रीनाथ की तलैया में दैनिक युगधर्म के दफ्तर पहुंचा। सीढ़ी चढ़ते हुए जब मैं ऊपर चढ़ने लगा तो बिल्‍कुल सामने ही एक छोटे कमरे में एक उम्रदराज व्‍यक्ति कुछ लिखते हुए दिखे। कक्ष के बाहर नेम प्‍लेट में लिखा था-भगवतीधर वाजपेयी, प्रधान संपादक। पहले तो ठिठका लेकिन कमरे में प्रविष्‍ट होते ही मैंने आने का प्रयोजन बताया। उन्‍होंने इशारे से मुझे बैठने को कहा। उन्‍हें कई पन्‍नों में लिखते हुए मुझे आभास हुआ कि संभवत: वे संपादकीय लिख रहे हैं। जैसे ही उन्‍होंने लिखना खत्‍म किया, तो मुझसे नाम सहित घर का पूरा पता पूछा। फिर वे हंस कर करने लगे कि बहुत दिनों बाद पत्रकारिता विभाग का कोई विद्यार्थी युगधर्म में इंटर्नशिप करने के लिए भेजा गया है। उन्होंने कहा कि मुझे जबलपुर के किसी अन्‍य समाचार पत्र में इंटर्नशिप करना चाहिए। मैंने धीरे कहा-‘’ सर यदि आप का आशीर्वाद रहा, तो मुझे युगधर्ममें सिर्फ संपादन, रिपोर्टिंग के साथ कंप्‍यूटर  कंपोजिंग, पेज मेकिंग, पेस्टिंग, प्‍लेट प्रोसेस, अखबार छपने तक की तकनीक को देखने व सीखने का मौका मिलेगा। भगवतीधर वाजपेयी जी मेरी बात सुन कर मंद मंद मुस्‍कराने लगे। उन्‍होंने कहा कि युगधर्म व उनकी व्‍यक्तिगत नीति है कि पत्रकारिता में नए आने वाले व्‍यक्ति को सबसे पहले प्रांतीय डेस्‍क में काम करते हुए पत्रकारिता की बारीकियां समझना चाहिए। इस संदर्भ में उन्‍होंने रामकुमार भ्रमर (डकैतों पर वृहद् काम करने वाले व उन पर पुस्‍तकें लिखने वाले) का उदाहरण देते हुए बताया कि जब वे युगधर्मजबलपुर में कार्यरत थे, तब छतरपुर से प्रेषित एक खबर व उसके संपादन में त्रुटि के कारण समूचा युगधर्मउस समय न्‍यायालयीन उलझन में फंस चुका था। वाजपेयी जी का कहना था कि प्रांतीय डेस्‍क में काम करते हुए सीखने का मौका बहुत मिलता है। ग्रामीण व आंचलिक क्षेत्रों में गैर प्रशिक्षित ही समाचार प्रेषण का कार्य करते हैं। उनके द्वारा भेजे गए समाचारों में कई बार आशय व मुद्दे स्‍पष्‍ट न होने से डेस्‍क पर बैठा उपसंपादक अपनी समझ व हुनर से उन्‍हें सुधार सकता है। वाजपेयी जी ने उसी समय एक लिफाफा खोल कर मुझे नरसिंहपुर से आयी खबर को रि-राइट व संपादन करने के लिए अंदर भेज दिया। उस खबर को पढ़ते हुए मैं चकरा गया। पहला ही मौका था किसी खबर को रि-राइट कर के उसे संपादित करने का। छोटी सी खबर को रि-राइट व संपादन करने में मुझे लगभग एक घंटे लग गए। खबर को ले कर जब उनके पास गया तो भगवतीधर वाजपेयी जी ने उसे गंभीरता से देखा और कुछ जरूरी बातें मुझे बतायीं। मैंने सोचा कि अब छुट्टी हो गई तो, उन्‍होंने मुझे कुछ और खुले हुए लिफाफे दिए और कहा कि अंदर हाल में दिनेश पाठक बैठे हैं, उनके बाजू वाली कुर्सी में बैठ कर जैसा बताया है, वैसे ही समाचारों का संपादन व रि-राइट कर के लाइए। दिनेश पाठक जी को उन्‍होंने मेरे बारे में पहले ही जानकारी दे दी थी। दिनेश पाठक की बगल वाली टेबल में एक युवा काम कर रहे थे। बाद के दिनों में दिनेश पाठक जबलपुर एक्‍सप्रेस के संपादक व युवा शिवकुमार कछवाह नगर निगम के पार्षद बने।

लगभग एक सप्‍ताह तक पत्रकारिता विभाग की कक्षाओं के बाद मैं सीधा युगधर्मपहुंच जाता और वहां प्रांतीय डेस्‍क में काम करते हुए पत्रकारिता की बारीकियां सीखने लगा। युगधर्ममें उस वक्‍त ओमप्रकाश चौहान, हरि खरे, रामकिशोर चौरसिया, नंदकिशोर शुक्‍ला, हंसमुख मानेक, इंद्रभूषण द्विवेदी, सुनील साहू, मेरी नामराशि पंकज स्‍वामी कमलसंपादकीय में, पिंगले जी अकाउंट में, केके उपध्‍याय प्रबंधन में, संतोष तिवारी कंपोजिंग इंचार्ज और पेस्टिंग में लक्ष्‍मी साहू की मुझे आज भी याद है।  प्रांतीय डेस्‍क में काम करने के दौरान भगवतीधर वाजपेयी जी वरिष्‍ठों से मेरे बारे में पूछताछ करते रहते। वे कई बार संपादकीय कक्ष  से समाचार की कॉपियां बुलवा उसे चेक किया करते। एक बार किसी अन्‍य उपसंपादक की कॉपी को देख कर वे गुस्‍सा हो गए। उनके गुस्‍सा होने का रूप मैंने पहली बार देखा था। उस कॉपी को उन्‍होंने स्‍वयं ही पुन: संपादित व रि-राइट किया। कुछ देर बाद वे ऐसे सामान्‍य हो गए, जैसा की कुछ हुआ ही नहीं।

एक बार शाम को वापस जाते समय वाजपेयी जी मुझे बुलवाया और कहा कि आप की इंटर्नशिप चल रही है, इसलिए संपादन के साथ-साथ फील्‍ड रिपोर्टिंग को सीखना भी जरूरी है। उन्‍होंने आदेश दिया कि अगली सुबह 11.00 बजे आफिस में उनसे मिलूं। दूसरे दिन उनसे जब मिला तो उन्‍होंने मुझे एक कागज दिया। उसमें मेडिकल रिप्रेन्‍जेटे‍टिट्व एसोसिएशन की प्रेस कांफ्रेस का आमंत्रण था। एसोसिएशन उस समय केन्‍द्र शासन की नीतियों के विरोध में अपने मुद्दे सामने रखना चाह रहा था। वाजपेयी जी ने मुझसे कहा कि सिर्फ प्रेस कांफ्रेस का समाचार ही नहीं छापना है, बल्कि यह भी समझ कर आना कि केन्‍द्र सरकार की वह कौन सी नीतियां हैं, जिसका वे लोग विरोध कर रहे हैं। इसके प्रभाव और जबलपुर में इसका क्‍या असर पड़ेगा, इस पर अलग से एक समाचार बनाना है। वापस जाते समय उन्‍होंने मुझसे कहा कि अब तुम्‍हें प्रेस में बैठ कर काम नहीं करना है। उनके निर्देश के अनुसार मुझे पूरे समय फील्‍ड में रहना था और प्रतिदिन दो विशेष रिपोर्ट बना कर उन्‍हें प्रस्‍तुत करनी थी। यह मेरे लिए सोने में सुहागा वाली बात थी। मेरी रूचि रिपोर्ट‍िंग में थी। मुझे लगता था कि रिपोर्टिंग में और बेहतर काम कर सकता हूं। भगवतीधर वाजपेयी जी चाहते थे कि युगधर्ममें कुर्सी पर बैठे-बैठे रिपोर्ट‍िंग न हो। कोई न कोई रिपोर्टर फील्‍ड में रह कर सिर्फ रिपोर्ट फाइल करे। वे चाहते थे कि रिपोर्टर से सिर्फ रिपोर्टिंग का कार्य करवाना चाहिए। उस वक्‍त चलन के अनुसार रिपोर्टिंग के साथ-साथ संपादन व पेज लगवाने का कार्य करवाया जाता था। बिल्‍कुल वर्तमान की प्रवृत्ति के अनुसार वे विशेषज्ञ या बीट रिपोर्टिंग करवाना चाहते थे।

मुझे याद है कि उस समय रविवारदेश की सर्वश्रेष्‍ठ समाचार पत्रिका थी। सुरेन्‍द्र प्रताप सिंह (एसपी) के संपादन में निकलने वाली उस साप्‍ताहिक पत्रिका के मध्‍यप्रदेश के विशेष संवाददाता जबलपुर निवासी स्‍वामी त्रिवेदी थे। स्‍वामी त्रिवेदी जब भी रिपोर्टिंग के सिलसिले में जबलपुर आते, तब वे भगवतीधर वाजपेयी से मुलाकात व मार्गदर्शन के लिए जरूर आते। एक बार स्‍वामी त्रिवेदी जब उनके पास मिलने को आए थे, तब वाजपेयी जी ने मेरा उनसे परिचय करवाया। बाद के वर्षों में मैंने कुछ समय स्‍वामी त्रिवेदी के भोपाल से प्र‍काशित मध्‍य भारतमें स्‍टॉफ रिपोर्टर के रूप में कार्य किया और वहां वाजपेयी जी का मार्गदर्शन काम आया। मध्‍य भारतमें मेरा इंटरव्‍यू सुरेन्‍द्र प्रताप सिंह, टाइम्‍स ऑफ इंडिया के दिल्‍ली के कार्यकारी संपादक अजय कुमार व पीटीआई के भोपाल ब्‍यूरो चीफ अनिल शर्मा ने लिया था। उस समय सुरेन्‍द्र प्रताप सिंह ने जब युगधर्मसमाचार पत्र में काम करने के संबंध में मुझसे पूछा, तब स्‍वामी त्रिवेदी ने उन्‍हें भगवतीधर वाजपेयी की पत्रकारिता परम्‍परा के संबंध में जानकारी दी। इस पर सुरेन्‍द्र प्रताप सिंह ने मंद मंद मुस्‍कराते हुए कहा-‘’फिर तो पक कर निकले होंगे।‘’

युगधर्म में इंटर्नशिप करते हुए मुझे एक माह से ज्‍यादा का समय हो चुका था, लेकिन काम करने व सीखने की ललक में मुझे इसका आभास ही नहीं हुआ। मैं वहां पत्रकारिता विभाग की कक्षाओं के बाद जा कर काम करता रहा। एक दिन विभाग से आदेश मिला कि अगले दिन तक सभी विद्यार्थि‍यों को इंटर्नशिप का सर्टिफिकेट जमा करना है। प्रेस में इस संबंध में जब मैंने वाजपेयी से अनुरोध किया तो उन्‍होंने इसके लिए देर नहीं लगाई। कुछ देर बाद जब मैं उनसे सर्टिफिकेट लेने गया, तो उन्‍होंने मुझे बैठने का इशारा किया। उन्‍होंने सर्टिफिकेट में मेरी अपेक्षा से ज्‍यादा तारीफ लिखी। एक लिफाफा में रख कर उन्‍होंने मुझे वह दिया। साथ में एक वाउचर दिया और कहा कि पावती में हस्‍ताक्षर कर के पिंगले जी से 300 रूपए प्राप्‍त कर लूं। उनकी बात सुन कर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। संभवत: मैं पत्रकारिता विभाग का पहला विद्यार्थी था, जिसे किसी संस्‍थान में इंटर्नशिप करने के लिए एक माह वज़ीफ़ा दिया गया था। आज तक यह बात छि‍पी रही, लेकिन भगवतीधर वाजपेयी जी के संदर्भ में जब मैं यहां लिख रहा हूं तो इस बात का रोशनी में आना जरूरी हो जाता है। उनके चरण स्‍पर्श कर जब विदा लेने लगा तो उन्‍होंने कहा कि तुम्‍हारे लिए एक प्रस्‍ताव और है। यदि तुम युगधर्ममें आगे भी काम करना चाहते हो तो अभी रिपोर्ट‍िंग के लिए फील्‍ड पर रवाना हो जाओ। यह मेरे लिए वज़ीफ़ा मिलने से भी बड़ी बात थी। पत्रकारिता विभाग में उस समय वर्किंग जर्नलिस्‍ट के अलावा किसी अध्‍ययनरत विद्यार्थी को किसी संस्‍थान में कार्य करने की अनु‍मति नहीं थी। विभाग के तत्‍कालीन प्राध्‍यापकों को जानकारी दिए बिना मैं युगधर्ममें कार्य करता रहा।   

वर्ष 1989 की ठंड आते-आते जबलपुर में फुटबाल की राष्‍ट्रीय प्रतियोगिता संतोष ट्राफी राइट टाउन में आयोजित हुई। एक दिन वाजपेयी जी ने मुझे बुलाया और कहा कि यदि खेल में रूचि व समझ हो तो तुम संतोष ट्राफी का पूरा कवरेज करो। उस समय हंसमुख मानेक खेल व व्‍यापार पृष्‍ठ देखते थे। हंसमुख मानेक को उन्‍होंने बुलवाया और कहा कि ये लड़का संतोष ट्राफी की पूरी रिपोर्ट‍िंग करेगा। यह जो लिख कर लाएं उसे एक बार नज़र जरूर डाल लिया करना। उन्‍होंने मुझसे कहा कि मैदान के बाहर जो कुछ अलग व नया हो, उसके बारे में अलग से जरूर लिखना। हंसमुख मानेक जी को बचपन से खेल के मैदान में देखते आ रहा था। वे सहज, सरल व मजाकिया थे। उन्‍होंने अपनी स्‍टाइल में कहा जो भी लिख कर लाया करोगे, वह सब चिपका दिया करेंगे। उस समय दीना तिवारी युगधर्मके छायाकार थे। उनके साथ प्रतिदिन संतोष ट्राफी का कवरेज करना मेरे लिए नया अनुभव रहा। मैंने पहली बार देखा कि कलकत्‍ता व अन्‍य बड़े शहर के खेल पत्रकार मैदान में अपने टाइपराइटर पर समाचार टाइप कर उसे भेजने के लिए भगते हुए तार आफिस जाते थे। मैदान के बाहर कलकत्‍ता के बड़े क्‍लबों द्वारा खिलाड़ि‍यों के खरीदने, उनके इंटर क्‍लब ट्रांसफर, खिलाड़ि‍यों, कोच व रैफरी के इंटरव्‍यू के साथ मैदान की हालत जैसे मुद्दों पर प्रतिदिन लिखता रहा और वह एक पखवाड़े तक युगधर्ममें प्रमुखता के साथ छपता रहा। वाजपेयी जी ने फाइनल मैच की पूरी रिपोर्ट‍िंग प्रथम पृष्‍ठ के एंकर पर लगवाई, जबकि शहर के अन्‍य समाचार पत्रों में यह खबर भीतर खेल में पृष्‍ठ में लगी। इस दौरान मुझे हंसमुख मानेक से जानकारी मिली कि सत्‍तर दशक के अंत में भगवतीधर वाजपेयी जी के निर्देश पर उस समय के बड़े नाट्य निर्देशक सत्‍यदेव दुबे के आगमन व उनकी  चर्चित नाट्य प्रस्‍तुति अंधायुग को इतने विस्‍तार से प्रकाशित किया गया, जिसको पढ़ कर बंबई के पूरे नाट्य समूह को  आश्‍चर्य हुआ कि जबलपुर में नाट्य आलोचना व समीक्षा का इतना उच्‍च स्‍तर है।

भगवतीधर वाजपेयी जी की काफी दिनों से योजना थी कि युगधर्मकी रविवार मेगजीन में खेल का पूरा एक पृष्‍ठ होना चाहिए। खेल ऐसा विषय है, जिससे बच्‍चे-बूढ़े दोनो जुड़ जाते हैं। खेल में मेरी रूचि को देख कर उन्‍होंने मुझे इसका दायित्‍व सौंपा। युगधर्म में बिना किसी दबाव के और प्रयोग करने की स्‍वतंत्रता के कारण मैंने खेल पृष्‍ठ को सामग्री व प्रस्‍तुतिकरण के लिए कंपोजिंग रूम का सहारा लिया। कई बार मेरे प्रयोग को संदेह से देखा जाता। पेस्टिंग टेबल पर वरिष्‍ठ कहते-‘’भाई देख लो, कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए।‘’ वाजपेयी जी के उत्‍साहवर्द्धन से खेल पृष्‍ठ लगातार अच्‍छा बनता गया। उस समय हो रही विश्‍व कप फुटबाल प्रतियोगिता को भी मैंने खेल पृष्‍ठ में समाहित किया। विजय अमृतराज की आत्‍मकथा को अंग्रेजी से अनुवाद कर प्रस्‍तुत किया गया। खेल पृष्‍ठ तैयार करने के लिए मुझे कई अंग्रेजी की पत्र-पत्रिकाओं की मदद लेनी पड़ती थी। इस कारण घर में रात के समय में उनकी सामग्री का अनुवाद करता था। अनुवाद का अभ्‍यास भविष्‍य में मेरे लिए मददगार रहा।  वाजपेयी जी खेल पृष्‍ठ का फीडबैक समय-समय पर वरिष्‍ठ संपादकीय सहयोगियों के साथ-साथ पाठकों से भी लेते रहते थे।

वर्ष 1990 आते ही मध्‍यप्रदेश में नवम विधानसभा चुनाव की सरगर्मी शुरू हो गई। मेरे जैसे नए पत्रकार के लिए यह सुनहरा अवसर था। भगवतीधर वाजपेयी जी ने चुनाव की रिपोर्ट‍िंग में मेरा उपयुक्‍त ढंग से या कहें कि सर्वाधिक उपयोग किया। उन्‍होंने चुनाव के दौरान एक दिन उम्‍मीदवारके साथ एक कॉलम ही निर्धारित कर दिया था। कई बार कुछ उम्‍मीदवार इसकी अनुमति देते थे और कुछ नहीं। ऐसे समय अलग से उम्‍मीदवार के जनसम्‍पर्क अभियान का कवरेज करना मुश्किल काम था, लेकिन वाजपेयी जी के अनुसार काम करने से सफल हुआ। वाजपेयी जी ने जबलपुर मध्‍य से भाजपा के उम्‍मीदवार ओंकार प्रसाद तिवारी के इंटरव्‍यू के लिए मुझसे प्रश्‍न तैयार करवाए और मुझे ही वह इंटरव्‍यू लेने भेजा था। यह मेरे जीवन का रोचक अनुभव रहा। उस समय दूरदर्शन में चुनाव प्रसारण में प्रणव राय, विनोद दुआ, अशोक लाहिरी व योगेन्‍द्र यादव सेफोलॉजिस्‍ट के रूप मे ख्‍याति बटोर रहे थे। मैंने विधानसभा चुनाव के समय जबलपुर की सभी सीट पर चुनाव सर्वेक्षण के संबंध में भगवतीधर वाजपेयी जी से चर्चा की। उन्‍होंने कहा कि सर्वेक्षण कर उसका विश्‍लेषण करना एक सतर्कता वाला मुश्किल कार्य है। यदि तुमसे संभव हो तो जरूर करो। मैंने कुछ लोगों की मदद से चुनाव सर्वेक्षण व उसके विश्‍लेषण का कार्य किया। चुनाव से पूर्व युगधर्ममें वह प्रकाशित हुआ। संभवत: जबलपुर ही नहीं बल्कि मध्‍यप्रदेश के किसी भी समाचार पत्र में उससे पूर्व स्‍थानीय चुनाव सर्वेक्षण प्रकाशित नहीं हुए थे। यह सब भगवतीधर वाजपेयी के विश्‍वास व अटलता के कारण संभव हो पाया।

लगभग एक वर्ष तक मैंने भगवतीधर वाजपेयी जी के व्‍यक्तिगत मार्गदर्शन में पत्रकारिता की सूक्ष्‍म बातें सीखीं। यह मेरे जीवन की अमूल्‍य निधि है। उनका कहना था कि मुझे समय रहते भोपाल या दिल्‍ली के किसी समाचार पत्र में काम के अवसर तलाशना चाहिए। उनकी बात मैंने गांठ में बांध ली। इसके लिए प्रयास करता रहा। युगधर्म का सीखा पाठ स्‍वामी त्रिवेदी के मध्‍य भारतमें तो काम आया ही, दिल्‍ली से प्रकाशित होने वाले राष्‍ट्रीय सहारामें मुझे तो काम करने का मौका युगधर्मके खेल पृष्‍ठ के अनुभव के कारण मिला। राष्‍ट्रीय सहाराकी लॉचिंग होने वाली थी। इंटरव्‍यू दिल्‍ली में हो रहे थे। उस समय संपादक कमलेश्‍वर व सहारा इंडिया के मालिक सुब्रत राय सभी का इंटरव्‍यू ले रहे थे। जब मेरी बारी आयी, तब कमलेश्‍वर के साथ सुब्रत राय ने खेलप्रेमी होने के कारण मेरा अलग से और बड़ा इंटरव्‍यू लिया। युगधर्मके खेल पृष्‍ठ व कतरनों को देख कर ही दोनों ने मेरा चयन खेल पृष्‍ठ में उपसंपादक के पद पर किया। उस दिन महसूस हुआ कि युगधर्म में किया गया कार्य मेरे लिए वरदान साबित हुआ। दिल्‍ली जाते समय भगवतीधर वाजपेयी जी ने काफी सम्‍पर्कों के संदर्भ मुझे दिए और अलग से कुछ व्‍यक्तिगत पत्र भी लिखे।

ढाई-तीन वर्षों के पचात् मेरा चयन मध्‍यप्रदेश विद्युत मण्‍डल के जनसम्‍पर्क विभाग में हो गया। वहां की लिखित व मौखिक परीक्षा में युगधर्ममें किया गया कार्य व अनुभव आधार बना। भगवतीधर वाजपेयी जी जब भी मिलते वे जनसम्‍पर्क अधिकारी के कार्यों व समाचारों के संबंध में मार्गदर्शन अवश्‍य देते। वे सहज व सरल थे, लेकिन उनका कद व रौब इतना बड़ा था कि उनके सामने बैठने में युगधर्मके संपादकीय कर्मी ही नहीं, कई लोग झिझकते थे। मुझे याद है कि जब मोती कश्‍यप पनागर से विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद वे वाजपेयी से भेंट करने युगधर्म आए। वे काफी देर तक खड़े रहे और वाजपेयी जी उनसे बार-बार बैठने का अनुरोध करते रहे। दरअसल एक समय मोती कश्‍यप युगधर्ममें कार्यरत रहे थे और उनके मन में वाजपेयी को ले कर इतना सम्‍मान था कि वे उनके सामने बैठने में झिझक रहे थे।

भगवतीधर वाजपेयी जी की एक ओर विशेषता यह भी थी कि वे प्रत्‍येक व्‍यक्ति को जीसंबोधन के साथ बात करते थे। जब उन्‍हें मेरे एक अन्‍य नाम गुलुशकी जानकारी मिली, तब से वे गुलुश भाईकह कर ही संबोधित करते थे। मुझे दुख है कि मैं उनका एक व्‍यक्तिगत काम नहीं कर पाया। वे पहल के संपादक व विख्‍यात कथाकार ज्ञानरंजन जी से मिलना चाहते थे। वर्षों से उनकी भेंट नहीं हो पायी थी। ज्ञानरंजन इलाहाबाद से जबलपुर जीएस कॉलेज में अध्‍यापन के लिए आए तब वे भगवतीधर वाजपेयी जी के पड़ोसी रहे और उनके संबंध निकट के बने। राजनैतिक विचारधारा में दोनों विपरीत ध्रुव में थे, लेकिन उनकी आत्‍मीयता इतनी गहरी थी जिसकी कल्‍पना नहीं की जा सकती। रवि वाजपेयी जी के साथ बात पक्‍की हुई थी किसी भी दिन, मैं ज्ञानरंजन जी को भगवतीधर वाजपेयी से मिलवाने के लिए घर ले कर आऊंगा। वर्ष 2020 का पूरा साल भयावह समय में बीत गया और वर्ष 2021 आते ही 6 मई को भगवतीधर वाजपेयी जी का निधन हो गया। वाजपेयी जी और ज्ञानरंजन जी की भेंट न करवा पाने के लिए मैं स्‍वयं को दोषी मानता हूं।

भगवतीधर वाजपेयी को सभी पत्रकार, राजनीतिज्ञ, महाकौशल चेम्‍बर ऑफ कामर्स के यशस्‍वी अध्‍यक्ष, समाजसेवी के रूप में याद करते हैं, लेकिन मेरे लिए वे पत्रकारिता जीवन के गुरू, प्रथम संपादक व मार्गदर्शक थे। उनको नमन व श्रद्धांजलि।

                                    
 

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