जुगनू शारदेय ने वर्ष 1975 में बंबई प्रवास
के दौरान फिल्म निर्देशक बीआर इशारा के निर्देशन विभाग में इंटर्ननुमा सहायक रहे थे।
यह वही समय था, जब उनकी प्रगाढ़ता सुरेन्द्र प्रताप सिंह (एसपी) से हुई। उस समय जुगनू को मानसिक अवसाद ज्यादा था। जुगनू को
मानसिक अवसाद से निकालने में बीयर व रम ने बहुत मदद की। कुछ मदद बीआर इशारा की लायब्रेरी
में पढ़ी जेआर कृष्णमूर्ति की पुस्तकों से मिली और कुछ एसपी सिंह की समझदार बातों से
मिली। एसपी सिंह समझाइश देते हुए जुगनू को कहते थे कि बिना जेल जाए भी इमरजेंसी के
खिलाफ लिखा-बोला जा सकता है। बस वह तरीका समझना होगा कि आदमी बोल भी दे और लिख भी
दे। जुगनू का लेखन उस बात को उस समय समझ नहीं पाया। जुगनू शारदेय जीवन आज में नहीं,
अभी में नहीं बल्कि क्षणों में जीते थे। वे अपने आप से उदासीन, असामाजिक और आवारा थे। मगर एसपी सिंह के साथ बिताए क्षणों में वे असामाजिकपन
और आवारापन से बाहर भी निकले थे। जुगनू और एसपी कई शाम के बीयर के पार्टनर रहे। एक
बार जुगनू ने एसपी से कहा था कि वे काफी उम्र में भी बीयर पी लेता हूं-और मरने के
लिए हर पल जीता हूं।
जुगनू शारदेय जन्मजात यायावर थे
इसलिए जबलपुर कुछ दिनों के लिए ठिकाना बना। वर्ष 2008-09 में दैनिक भास्कर जबलपुर में घुमंतू
पत्रकार के रूप में कार्यरत थे। उस समय उन्होंने विधानसभा व लोकसभा चुनाव की
विशिष्ट रिपोर्टिंग की थी। वे अपनी शर्त पर काम करने वाले अद्भुत पेशेवर रुख वाले
पत्रकार थे। वे अखबार मालिक को जूते की नोक पर रखते थे। अखबार आफिस में सहकर्मियों
के साथ उनकी बातचीत न के बराबर होती थी। जुगनू शारदेय इससे पहले संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
के सम्मेलन में वर्ष 1969 में जबलपुर आए थे। उनकी यह जबलपुर यात्रा मात्र एक-दो दिन
की थी। यहीं उनकी मुलाकात धर्मयुग के गणेश मंत्री से हुई थी।
दैनिक भास्कर जबलपुर के सिविल लाइंस
आफिस के सामने फुटफाथ में रहने वाला रिक्शा चालक टिग्गा उनका शहर में एकमात्र
आत्मीय या कह लें दोस्त था। टिग्गा बहुजन समाज पार्टी का कट्टर समर्थक व कार्यकर्ता
था और जुगनू खांटी समाजवादी थे। दोनों का जब तक साथ रहा संभवत: वे एक-दूसरे की राजनैतिक
विचारधारा से अनभिज्ञ रहे। टिग्गा उनको दिन भर रिक्शे में घुमाता था। दोनों सदर
काफी हाउस में साथ में ब्रेक फास्ट,
लंच व डिनर साथ में किया करते थे। जुगनू शारदेय को काफी हाउस का उपमा
रुचिकर लगता था। या यों कह लें कि वे उपमा के दीवाने थे। कई बार वे केंट के किसी बार
में मदिरापान भी साथ-साथ किया करते थे। जुगनू शारदेय जो मदिरा पीते थे, वही मदिरा टिग्गा को पिलाया करते थे। वैसे जुगनू बीयर के शौकीन थे। टिग्गा
रात में जुगनू को सिविल लाइंस के अप्सरा अपार्टमेंट के उनके ठिकाने में प्रतिदिन
छोड़ने जाया करता था। यहां जुगनू टेरिस में बने एक कमरे में रहते थे। जुगनू जी
खीसे में हाथ डालते थे और जितने पैसे आते थे वह टिग्गा का मेहनताना हो जाते थे।
जुगनू जी जितने दिन जबलपुर में रहे, उस अवधि में टिग्गा के
रिक्शे में कोई सवारी नहीं बैठी। मुझे भी कई बार जुगनू शारदेय के साथ सदर काफी
हाउस में साथ में बैठने का मौका मिला और उनके साथ स्ट्रांग काफी सुड़कने का अवसर
मिला। बातचीत में अक्सर कहा करते थे कि वे बड़ी आशा से जबलपुर आए, लेकिन यहां आ कर उन्हें निराशा ही मिली। वे पहल के संपादक व विख्यात कथाकार
ज्ञानरंजन से मिलना चाहते थे। साथ में जाने की बात हुई थी, लेकिन
एक दिन वे अचानक दैनिक भास्कर की नौकरी छोड़ कर पटना रवाना हो गए। उनकी कई स्मृति
ज़ेहन में हैं। पटना वापस जाने पर उनसे बात होती रहती थी। पिछले एक साल से उनकी
जीवन जीने की इच्छा खत्म हो गई थी। वे फेसबुक में भी अपनी मृत्यु की बात करने लगे
थे।
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