जबलपुर के निकट 6 सितंबर 2007 को भर्रा गांव में इसी प्रकार एक तथाकथित बाबा के झाड़-फूंक कार्यक्रम में भगदड़ से 61 लोग गंभीर रुप से घायल हुए थे और 13 लोग मर गए थे। तब भी ऐसे आयोजन में प्रशासन के सहयोग की बात सामने आई थी। चौंकाने वाली बात यह है कि जनाक्रोश के चलते बाबा के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया, लेकिन बाबा को पुलिस थाने में वीआईपी ट्रीटमेंट दिया गया।
मुझे याद है कि कुछ वर्ष जबलपुर के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले एक समाचार पत्र ने एक छोटी लड़की द्वारा भविष्यवाणी करने के समाचार प्रकाशित करने का सिलसिला शुरु किया था। समाचार पत्र में समाचार छापने से उस लड़की के परिवार के लोग खूब खुश थे। इसे वे भगवान का आशीर्वाद मानते थे। परिवार में उस लड़की को दूसरे बच्चों से अलग ट्रीटमेंट मिलने लगा। इससे परिवार में विसंगति भी आई। अब यही लड़की बड़ी हो गई है। इसके पिता अब समाचार पत्रों में जा कर उसकी भविष्यकर्त्ता की मार्केटिंग करने लगे हैं, लेकिन अब पहला जैसा रिस्पांस नहीं है, क्योंकि लड़की बड़ी हो गई है। इसमें अचरज वाली बात कुछ भी नहीं है। अखबार लीक से हटकर समाचार छापने में विश्वास रखते हैं। अब वह सामान्य लोगों की तरह भविष्यवाणी कर रही है, तो इसमें नया क्या है। शायद इस बात को लड़की का पिता समझ नहीं पा रहा है।
इसी तरह जबलपुर के समाचार पत्रों में पहले लौकी या कद्दू में भगवान की छवि उभरने के समाचार प्रमुखता से प्रकाशित होते थे और ऐसे समाचार नि:संदेह अंधविश्वास की भावना को ही पुख्ता करते थे। वर्तमान में सभी अखबारों में धर्म खासतौर से तथाकथित बाबाओं की समाचार प्रकाशित करने की होड़ लगी हुई है। पूरा का पूरा पृष्ठ धर्म और बाबाओं पर समर्पित है। समाचार पत्र जबलपुर के विकास की बात तो करते हैं, लेकिन विकास की खबरें कहां हैं ?