सोमवार, 12 जून 2023

कैसे जबलपुर का तैय्यब अली चौराहा अमर अकबर अंथोनी फिल्म के एक गीत का मुखड़ा बना

आज से 46 वर्ष पूर्व 27 मई 1977 में एक फिल्म रिलीज हुई थी- अमर अकबर अंथोनी। अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, ऋष‍ि कपूर, प्राण, जीवन, शबाना आज़मी, नीतू सिंह, परवीन बाबी, निरूपा राय जैसे कलाकार इस फिल्म में थे। मनमोहन देसाई निर्देशि‍त इस फिल्म ने उस समय बॉक्स आफ‍िस पर साढ़े 15 करोड़ रूपए कमाए थे। अमर अकबर एंथोनी का यश चोपड़ा की 1965 की फ़िल्म वक़्त का एक सिनेमाई प्रतिरूप थी, जिसमें एक पिता के तीन बेटे एक दूसरे से अलग हो जाते हैं।

फिल्म में दो यथार्थवादी चरित्र-अमर अकबर अंथोनी फिल्म में दो चरित्र यथार्थवादी थे। फिल्म में अमिताभ बच्चन का नाम अंथोनी गोंजाल्विस के चरित्र का नाम उसी नाम के प्रसिद्ध संगीतकार और शिक्षक के नाम पर रखा गया था, जिनके शिष्यों में प्यारेलाल (लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल) और आरडी बर्मन शामिल थे। दूसरा फिल्म में नीतू सिंह के पिता अभ‍िनेता मुकरी थे जिनका नाम तैय्यब अली रहता है। यह नाम जबलपुर के तैय्यब अली चौराहा से प्रेरित था। 

कौन हैं अनिल नागरथ-अमर अकबर अंथोनी में मुकरी का नाम तैय्यब अली क्यों रखा गया, इसकी एक दिलचस्प कहानी है। फिल्म के एसोसिएट डायरेक्टर अनिल नागरथ थे। अनिल नागरथ के परिवार के नाम से अभी भी रेल पुल नंबर दो से रसल चौक मार्ग पर पहला चौराहा नागरथ चौराहा ही कहलाता है। अनिल नागरथ सीनियर एडवोकेट नमन नागरथ के चाचा हैं। अनिल नागरथ का जन्म और पढ़ाई लिखाई जबलपुर में हुई। शुरुआती शिक्षा नवीन विद्या भवन स्कूल और उच्च शिक्षा जीएस कॉलेज में हुई। जीएस कॉलेज से उन्होंने एमकॉम किया। जबलपुर में दोस्त उन्हें बिट्टू के नाम से ही पुकारा करते थे। बेंजो व गिटार वादक चंदू गायकवाड़ उनके सबसे अज़ीज मित्र हुआ करते थे। उस समय के रंगकर्मी श्याम खत्री, श्याम श्रीवास्तव, मनोहर महाजन, धर्मराज जायसवाल करमचंद चौक‍ में बंगाली क्लब के सामने हिन्दुस्थान लॉज में टोली बना कर अपना अड्डा जमाते थे। वहीं अनिल नागरथ व नरेन्द्रनाथ साइकिल से पहुंच कर हंसी ठ‍िठोली किया करते थे। अनिल नागरथ के प्राय: आने जाने का रास्ता तैय्यब अली चौक से ही गुजरता था।  

मनमोहन देसाई के साथ अनिल नागरथ का जुड़ाव-अनिल नागरथ अभ‍िनेता बनने बंबई गए थे लेकिन 1966 में वे मनमोहन देसाई के साथ जुड़ गए और ‘बदतमीज़’ फिल्म की क्रेड‍िट में उनका नाम अस्स‍िटेंट डायरेक्टर के रूप में गया। अस्स‍िटेंट डायरेक्टर के साथ अनिल नागरथ फ‍िल्मों में छोटी भूमिकाएं निभाने लगे। वे बंबई में अपने संघर्ष के दिनों में एक कमरे में प्रेमनाथ के छोटे भाई नरेन्द्रनाथ रहा करते थे। नरेन्द्रनाथ उनके बेहद करीबी थे। प्रेमनाथ चाहते थे कि उनके छोटे भाई राजेन्द्रनाथ व नरेन्द्रनाथ स्वयं संघर्ष कर बंबई की फिल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाएं। बंबई में अनिल नागरथ मनमोहन देसाई के साथ उनकी मृत्यु तक जुड़े रहे। धीरे धीरे अनिल नागरथ मनमोहन देसाई के सबसे विश्वसनीय व वरिष्ठ सहायक बन गए। वे मनमोहन देसाई की अमर अकबर अंथोनी, परवरिश, सुहाग, देशप्रेमी, कुली व अल्लाह-रक्ख़ा के एसोसिएट डायरेक्टर रहे। इन फिल्मों से पहले अनिल नागरथ रोटी, चाचा भतीजा, धर्मवीर के चीफ अस्स‍िटेंट डायरेक्टर रहे। अनिल नागरथ ने अमर अकबर अंथोनी फिल्म में अमिताभ बच्चन का आइने के सामने लम्बा मोनोलॉग क्रिएट व डायरेक्ट किया था। अमिताभ बच्चन ने इस सीन को उत्कृष्ट ढंग से निर्देशित करने के लिए अनिल नागरथ की बहुत तारीफ़ भी की थी। 

गीत के मुखड़े में कैसे तैय्यब अली नाम आया-अमर अकबर अंथोनी फिल्म जब बन रही थी तब उसके एक दृश्य में महसूस किया गया कि ऋष‍ि कपूर, नीतू सिंह व मुकरी के साथ एक गीत को शूट किया जाए। आनंद बख्शी संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में गीत लिख रहे थे। फिल्म में कहीं भी मुकरी का कोई नाम नहीं था। आनंद बख्शी परेशान थे कि गाने का मुखड़ा क्या रखें? मनमोहन देसाई, आनंद बख्शी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल इस बात को ले कर बातचीत करके परेशान हो रहे थे। मनमोहन देसाई ने अपने सहयोगी व फिल्म के एसोस‍िएट डायरेक्टर अनिल  नागरथ को बातचीत में बुला लिया। अनिल नागरथ के दिल दिमाग में जबलपुर बसा हुआ था। नागरथ चौक स्थि‍त उनके घर के बिल्कुल नज़दीक तैय्यब अली पेट्रोल पम्प और वहां का इलाका तैय्यब अली चौक या चौराहा कहलाता था। अनिल नागरथ ने आनंद बख्शी सहित वहां मौजूद लोगों को सुझाव दिया कि मुकरी का नाम तैय्यब अली रख दिया जाए। गीतकार आनंद बख्शी को ‘तैय्यब अली’ तुरंत क्लि‍क कर गया। उन्होंने वहां बातचीत में बैठे बैठे ही कुछ ही मिनटों में गीत इस प्रकार बन गया- ‘’तैय्यब अली प्यार का दुश्मन हाय हाय’’। यह गाना सहज गुणवत्ता, चमकदार मासूमियत और ऋष‍ि कपूर की जबर्दस्त स्क्रीन कर‍िश्मे के कारण लम्बे समय तक लोकप्रिय रहा। यह गाना संगीत, प्रदर्शन और दर्शकों पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण एक मजबूत गीत बन कर उभरा। मोहम्मद रफी ने इसे पूरी तबियत से गाया था। बाद में बालाजी प्रोडक्शंस ने रीमेक बनाने से पहले आधिकारिक तौर पर गाने के अधिकार खरीदकर इसे प्रस्तुत किया लेकिन जो बात पुराने में थी वह नए में महसूस ही नहीं की गई।

इस प्रकार अनिल नागरथ की यादों में बसा जबलपुर का एक चौराहा हिन्दी की सर्वाध‍िक लो‍कप्रिय फ‍िल्म का सर्वाध‍िक लोकप्रिय गीत का मुखड़ा बना।


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