बुधवार, 2 अगस्त 2023

ट‍िल्लन रिछारिया: वे कहते थे कि जबलपुर प्रेम व आनंद का सिद्ध तीर्थ है........

    
सातवें-आठवें दशक में जबलपुर के चर्चित अखबार ज्ञानयुग (पूर्व में हितवाद) के सह संपादक टिल्लन रिछारिया (पूरा नाम श‍िवशंकर दयाल रिछारिया) का गत दिवस निधन हो गया। वे मूलत: चित्रकूट के रहने वाले थे लेकिन यायावरी तबियत के होने के कारण उनका जबलपुर आना हुआ था। उनकी किसी भी किसिम की रचनात्मकता में समय, समाज और सभ्यता का स्पष्ट वेग रहा। टिल्लन रिछारिया हिन्दी पत्रकारिता में उन चुनिंदा पत्रकारों में से एक रहे जिन्होंने संभवत: सर्वाधि‍क अखबारों व मेगजीन में काम किया। हिन्दी पत्रकारिता में टिल्लन रिछारिया कांसेप्ट, प्लानिंग, लेआउट और प्रेजेंटेशन अवधारणा को शुरु करने वालों में से रहे। इसका भरपूर प्रवाह राष्ट्रीय सहारा के ' उमंग ' और ' खुला पन्ना ' में 1991 से 1995 तक देखने को मिला। भाषा की रवानी, कथ्य की कहानी, आकर्षक फोटो और ग्राफिक्स से सजे ...धर्मयुग, करंट, राष्ट्रीय सहारा के उमंग और खुला पन्ना के वे पन्ने हालाँकि इतिहास के झरोखे से उन लोगों के जेहन में अभी भी झांकते हैं जो उस दौर के हिन्दी-प्रवाह के साथ आँख खोल कर चले और आज भी अतीत की उस श्रेष्ठता को सराहने में झेंपते नहीं ।

    टिल्लन रिछारिया इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप मुम्बई के हिन्दी एक्सप्रेस, करंट, धर्मयुग, पूर्वांचल प्रहरी (गुवाहाटी) वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, हरिभूमि (नई दिल्ली) में स्थानीय सम्पादक, दैनिक भास्कर (नई दिल्ली) में वरिष्ठ सम्पादक, आईटीएन टेली मीडिया मुम्बई, एन सी आर टुडे के ऐसोसिएट एडिटर व प्रबंध सम्पादक रहे। फिलहाल आयुर्वेदम पत्रिका के प्रधान संपादक थे।

    टिल्लन रिछारिया जबलपुर से बहुत प्यार करते थे। वे कहते थे कि जबलपुर प्रेम व आनंद का सिद्ध तीर्थ है। उनको भी इस रस राग और तिलिस्मात से भरे शहर ने अपनी छांव में कुछ समय रहने का मौका दिया।  टिल्लन पूरी दुनिया घूम लिए लेकिन उनका कहना था कि गहन आत्मीयता से भरा जबलपुर शहर पल भर में ही अपना दीवाना बना लेता है । उन्होंने कभी लिखा था-‘’ हमें आये अभी एक दो दिन ही हुए थे कि दफ्तर के पास की चाय पान की दूकान में देखिए दिलफ़रेब स्वागत होता है । साथियों से नाम सुनते ही पान वाले बोले.....अरे टिल्लन जी आप आ गये। बम्बई से पूनम ढिल्लन जी का फोन था कि भाई साहब का ख्याल रखना। इस शहर में आपका स्वागत है, हम हैं न।...अरे हां, राखी भेजी है आप के लिए , अभी लाकर देता हूँ ।...जबलपुर ज्यादा देर आपको अजाना नहीं  रहने देता।‘’ जबलपुर में टिल्लन रिछारिया के यारों के यार में राजेश नायक, चैतन्य भट्ट, राकेश दीक्ष‍ित, ब्रजभूषण शकरगाये, अशोक दुबे थे।


टिल्लन रिछारिया के निधन पर ज्ञानयुग प्रभात (हितवाद) में उनके साथ काम कर चुके ब्रजभूषण शगरगाये ने एक टिप्प्णी लिखी है। वह इस प्रकार है:- 

    लगता है उनके दिमाग में हर समय आकाशीय आतिशबाजी की त
रह नए विचार और आइडिया की रंग-बिरंगी रोशनी चकाचौंध रहती थी। अखबार के लिए नई कहानी, कविता, लेख, फोटो के जुगाड़ और उन्हें नए तरीके से छापने के विचार लगातार आते जाते रहे। वे सामग्री को आकर्षक फोटो रेखाचित्र और हेडिंग से सजाकर अखबार में छापने से, पाठकों की प्रकाशित सामग्री के प्रति उत्सुकता जागती है। अपने अनोखे नाम के अनुरूप अपने काम में भी अनोखा पन दिखाते रहे।

    टिल्लन जी से मुलाकात 1982 में जबलपुर में महेश योगी द्वारा प्रकाशित दैनिक ज्ञानयुग प्रभात के प्रेस परिसर में हुई। यह अखबार पहले हितवाद नाम से प्रकाशित हो रहा था। हितवाद टाइटल विद्याचरण श्यामाचरण शुक्ल परिवार का है, राजनीतिक कारणों से महेश योगी संस्थान को डेढ़ वर्ष बाद यह टाइटल छोडऩा पड़ा और फिर ज्ञानयुग प्रभात नाम से अखबार चलने लगा। ज्ञान युग में पहले के अखबार से अधिक गुणवत्ता और नया कलेवर लाने के लिए इलाहाबाद के अमृत प्रभात से संतोष सिंह, सुनील श्रीवास्तव, राजेंद्र गुप्ता, राकेश श्रीवास्तव, मनोहर नायक और मुंबई से टिल्लन रिछारिया आए, इनमें मनोहर नायक भोपाल में अखबार के ब्यूरो प्रमुख नियुक्त किए गए। हितवाद की पुरानी टीम टाइटल बदलने और ज्ञानयुग में बाहर से आए रचे-मंझे पत्रकारों के आने से असहज और बेचैन हो गई। हितवाद में अधिकांश अखबार में पहली नौकरी करने वाले अविवाहित युवकों की टीम रही, बाहर से आए पत्रकारों में टिल्लन जी ही थे जिन्होंने पुरानी टीम से दूरियां खत्म की और कुछ ही दिनों में ज्ञानयुग के पाठकों ने हितवाद को भुला दिया। बाहर से आए पत्रकारों में टिल्लन जी ही थे जिनके पास धर्मयुग और करंट जैसी राष्ट्रीय पत्रिकाओं का अनुभव था। टिल्लन जी ने ज्ञानयुग के साहित्य परिशिष्ट को पठनीय ही नहीं दर्शनीय भी बना दिया। वे जबलपुर के लिए अजनबी थे पर कुछ ही दिनों में जबलपुर के दिग्गज साहित्यकारों और लेखकों से उनकी मित्रता हो गई नामचीन साहित्यकार परसाई जी, रामेश्वर शुक्ल अंचल, पन्नालाल श्रीवास्तव नूर, भवानी प्रसाद तिवारी, कालिका प्रसाद दीक्षित, कैलाश नारद और पूर्व मुख्यमंत्री और लेखक द्वारका प्रसाद मिश्र ही नहीं उन दिनों के उभरते अनेकों लेखकों में दोस्ताना दायरा बढ़ा लिया। प्रेस में उनसे मिलने आने वालों के लिए टिल्लन जी के पास हमेशा समय रहता। वे अपनी टेबल पर कम दूसरों की टेबल पर ज्यादा बैठते। प्रेस परिसर में वे नहीं हैं तो प्रेस के बाहर चाय नाश्ते की होटल में चाय सिगरेट पीते और बातें करते जरूर मिल जाते। महेश योगी संस्थान परिसर में सिगरेट तंबाकू निषेध थी, इसलिए भी हर थोड़ी देर में किसी बहाने बाहर निकल जाते। उन दिनों बेल बाटम के साथ सफारी का नया चलन था। सफारी में वे अलग नजर आते। एक हाथ में अखबार पत्रिकाएं और दूसरे में सिगरेट लिए गोल बाजार के घर से करीब 3 किलोमीटर दूर टहलते दोपहर तक प्रेस पहुंचते। लौटना तय नहीं था कई बार सुबह अखबार के बंडल ले जाने वाली गाड़ी उन्हें घर छोड़ती। वैसे तो टिल्लन जी का व्यवहार प्रेस के हर विभाग के सहयोगियों से दोस्ताना था, लेकिन फोटो और चित्रकारी पर उनकी अलग नजर रहती। स्टाफ फोटोग्राफर होने के नाते रोज कई बार नए-नए विषय पर फोटो लेने कहते, आयोजन कार्यक्रम के अलावा जनजीवन के फोटो के विषय में बताते रहते। चित्रकूट में 4 दिन के रामायण मेले की रिपोर्टिंग के लिए संपादक गंगा ठाकुर, प्रबंध संपादक रम्मू श्रीवास्तव से मुझे मांग कर ले गए। चित्रकूट और कर्वी गृह क्षेत्र में उनका बोलबाला रहा। रामायण मेले के आयोजकों में लक्ष्मी नारायण व्यास, लल्लन प्रसाद व्यास सहित अनेकों विभूतियों से मिलवाया। जिनमें लक्ष्मीकांत वर्मा और उनके अभिन्न मित्र अरुण खरे थे। अरुण खरे पूरे समय साथ रहे। चित्रकूट, कर्वी और कालिंजर का किला घुमाते हुए अरुण वहां के इतिहास और विशेषताएं बताते गए। इस यात्रा में अरुण खरे से दोस्ती मजबूत हो गई।

    योग, अध्यात्म और सकारात्मक समाचारों पर आधारित ज्ञानयुग की पाठक सीमा को सीमित मानते हुए टिल्लन जी ने अखबार के बाद बचे समय में राष्ट्रीय स्तर की एक पत्रिका का विचार नए साथियों के साथ पका लिया। जल्द ही पत्रिका - चक्र टाइटल रजिस्टर्ड करा लिया गया। सभी के आर्थिक सहयोग से पत्रिका का काम शुरू हो गया। सीमित आर्थिक और तकनीकी साधनों में चक्र का सफर 2 अंकों तक ही चल पाया। ज्ञानयुग का जीवन भी हितवाद की तरह कम समय का रहा। एक सुबह खबर मिली कि रात में प्रेस के कंप्यूटर के तार कट गए हैं। कंप्यूटर इंजीनियर दिल्ली या मुंबई से आएंगे तभी अखबार निकल पाएगा। इंजीनियरों का इंतजार लंबा होता गया और वे नहीं आए। बाहर से आए पत्रकार दिल्ली चले गए, कुछ जबलपुर के पत्रकार दिल्ली भोपाल में ठिकाना खोजने निकल गए, इसके साथ ही महेश योगी के सकारात्मक अखबार का अध्याय समाप्त हो गया।

    करीब 5 साल पहले दिल्ली में एक शादी में टंडन जी से मुलाकात हो गई कई घंटे बातों में गुजर गए पता ही नहीं चला। अब वे ग्लैमर की दुनिया से अलग प्रकृति और पर्यावरण पर केंद्रित हो गए थे। वे नदियों की फोटो और जानकारियां जुटाने और उन्हें भेजने का आग्रह करने लगे। फिर फेसबुक पर मुलाकात हो गई, आए दिन वे अपनी गतिविधियों की खबर देते, उनके संस्मरण के लेख चित्र, पुरानी यादें ताजा करने लगे। फिर महीने 15 दिन में फोन पर बातों का सिलसिला भी शुरू हो गया। वे पुराने फोटो और लेख फेसबुक पर साझा करने कहते रहे। 28 जुलाई को उज्जैन जाते हुए रास्ते में उन्होंने अपने जीवन का सफर खत्म कर दिया। फेसबुक पर उनके संदेश तैर रहे थे।

    2 दिन पहले ही फोन पर लंबी बातचीत मुझे फोन से डॉक्यूमेंट्री बनाने का सुझाव दे रहे थे। अपनी अमेजान पर आइ किताबों का जिक्र करते रहे। 13 जुलाई को टिल्लन जी ने रामचंद्र शुक्ल की लाइनें फेसबुक पर डालीं

    जिनमें हम से अधिक आत्मबल हो, मित्र हो तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हो, मृदुल और पुरुषार्थी हों, और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे छोड़ सकें और विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा ना होगा।

    उन्होंने लिखा मैं इस किताब में जिन मित्रों को याद कर रहा हूं वह सब इसी पैमाने पर खरे मित्र हैं। ज्ञानयुग के दिनों में चक्र की असफलता पर साथी डॉक्टर योगेंद्र श्रीवास्तव की टिल्लन जी पर कटाक्ष भरी कविता की लाइन याद आ गई 

    इतनी सारी रद्दी हमें थमा कर चले गए टंडन जी।

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