शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

हॉकी और वालीबाल में भारत का प्रत‍िन‍िध‍ित्व करने वाली कमलेश नागरथ

 

जबलपुर के महिला खेल इतिहास में अविनाश सिद्धू, प्रभा राय की फेहरिस्त में एक ऐसा नाम है जिन्होंने न सिर्फ देश में बल्क‍ि विदेश में भी अपने खेलों के प्रति समर्पण की भावना से नाम कमाया है। जिस समय यह ख‍िलाड़ी मैदान में उतरी, उस समय लड़कियों को घर से बाहर निकलने की इज़ाजत नहीं थी। वर्ष 1947 में देश के स्वतंत्र होने के बाद एडवोकेट जेएन नागरथ ने जबलपुर में वकालत करना शुरु कर दी थी। उनका बंगला उस समय नौदरापुल पर उस स्थान पर था जहां आज ज्योति टॉकीज के अवशेष शेष हैं। बंगले का पता था-1 नेपियर टाउन जबलपुर। एडवोकेट जेएन की पुत्री कमलेश नागरथ सेंट नार्बट स्कूल में अध्ययनरत थीं। उनके बंगले में जहां 16 कमरे थे, वहीं बाहर इतना खुला स्थान था जो किसी खेल के मैदान की पूर्ति कर देता था। परिवार के बच्चे इस मैदान में खेल कर विकसित हुए और उनमें खेल कौशल आया। एडवोकेट नागरथ जबलपुर में आर्य समाज का नेतृत्व करते थे। उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ने, खेलने व भविष्य के कैरियर को चुनने की पूरी स्वतंत्रता दी थी। कमलेश का बचपन से खेल के प्रति लगाव था। वे जन्मजात एथलीट रही हैं। स्कूली पढ़ाई पूरी होते-होते कमलेश ने हॉकी व वालीबाल को गंभीरता से लिया। कमलेश ने होमसाइंस कॉलेज से स्नातक की डि‍ग्री ली और अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर ड‍िग्री के लिए राबर्टसन कॉलेज में एडमिशन लिया।

जबलपुर महिला हॉकी देश का पुराना गढ़-जबलपुर महिला हॉकी का पुराना गढ़ रहा है। वर्ष 1936 में जब नागपुर में सीपी एन्ड बरार महिला हॉकी एसोसिएशन की स्थापना हुई, उससे पूर्व ही जबलपुर में महिला हॉकी की शुरुआत हो चुकी थी। उस समय एंग्लो इंड‍ियन व पारसी परिवार की लड़कियां ही हॉकी खेलती थीं और उनको कोचिंग इंटरनेशनल नॉरिस व रॉक दिया करते थे। जबलपुर में वर्ष 1945 में महिला हॉकी ख‍िलाड़‍ियों का पहला जुबली क्लब का गठन हुआ। जुबली क्लब में खेलने वाली स्म‍िथ सिस्टर्स व नॉरिस सिस्टर्स की सहायता से मध्यप्रदेश ने उस समय चार बार नेशनल चैम्प‍ियश‍िप को जीता और दो बार उसे उपविजेता बनने का गौरव मिला। जबलपुर की योवेन स्म‍िथ, डोरेल स्म‍िथ, वेंडी नॉरिस व फ‍िलोमिना नॉरिस ने पहली बार वर्ष 1953 में भारतीय टीम का प्रत‍िन‍िध‍ित्व किया। इस टीम ने उस समय इंग्लैंड का दौरा किया था। इसी टीम ने वर्ष 1956 में आस्ट्रेलिया का दौरा किया। आस्ट्रेलिया दौरे में तो भारतीय टीम का प्रत‍िन‍िध‍ित्व योवेन स्म‍िथ ने किया। जबलपुर विश्वविद्यालय बनने के बाद जबलपुर की लड़कियों ने हॉकी में रुचि व उत्साह दिखाया। उनके उत्साह को देख कर वर्ष 1961 में महाकौशल महिला हॉकी एसोसिएशन का गठन किया गया। विशाखा दीक्ष‍ित व पुष्पा वर्मा इस एसोस‍िएशन की पहली अध्यक्ष व सचिव बनीं।         

हॉकी के साथ वालीबाल में भारत का प्रत‍िन‍िध‍ित्व-साठ के दशक में चारू पंड‍ित, सरोज गुजराल, सिंथ‍िया फर्नाडीज, अविनाश सिद्धू, गीता राय व कमलेश नागरथ, आशा परांजपे, मंजीत संधू के रूप में नई महिला ख‍िलाड़‍ियों की ऐसी पौध सामने आई जिसने पूरे देश को चमत्कृत कर दिया। इनमें से अविनाश सिद्धू, गीता राय व कमलेश नागरथ ने तो वालीबाल में भी कमाल दिखाया। कमलेश नागरथ के जन्मजात एथलीट होने के कारण उनका मैदान पर स्टेमिना देखते ही बनता था। हॉकी स्‍क‍िल भी उनकी कमाल की थी। कमलेश नागरथ ने जबलपुर में आने दस वर्ष के कैरियर में कई बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हॉकी व वालीबाल में भारतीय टीम का प्रत‍िन‍िध‍ित्व किया। उन्होंने सिलोन, जापान, सिंगापुर के विरूद्ध भारतीय हॉकी मैदान पर भारत की ओर से खेलीं। कमलेश नागरथ ने भारतीय हॉकी टीम की ओर से आस्ट्रेलिया का दौरा कर उत्कृष्ट खेल का प्रदर्शन करते हुए सराहना अर्जित की। वर्ष 1963 में जबलपुर में आयोजित राष्ट्रीय महिला हॉकी प्रतियोगिता में कमलेश नागरथ ने सर्वश्रेष्ठ खेल का प्रदर्शन किया। वर्ष 1967 जबलपुर की महिला हॉकी व वालीबाल के लिए महत्वपूर्ण वर्ष रहा जब कमलेश नागरथ के साथ अविनाश सिद्धू व गीता राय ने दिल्ली में एश‍ियन चैम्प‍ियनशि‍प में भारतीय हॉकी टीम और इंड‍िया कप में भारतीय वालीबाल टीम का प्रत‍िन‍िध‍ित्व किया। अविनाश सिद्धू तो दोनों भारतीय टीम की कप्तान भी रहीं। एश‍ियन हॉकी चैम्प‍ियनशि‍प भारत ने जीती। भारत-जापान के बीच हुई हॉकी टेस्ट मैचों की शृंखला में कमलेश नागरथ ने सर्वाधि‍क गोल कर प्रशंसित हुईं। उन्होंने वर्ष 1971 में न्यूजीलैंड में हुई अंतरराष्ट्रीय महिला हॉकी प्रतियोगिता में भारतीय टीम का प्रतिन‍िध‍ित्व किया। यहां भी कमलेश नागरथ विरोधी टीमों पर गोल करने में आगे रहीं। उन्होंने नई दिल्ली में भारत का दौरा कर रही आस्ट्रेलियन हॉकी टीम के विरूद्ध उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

खो-खो, कबड्डी, एथलेटिक्स और बास्केटबाल में दिखाई श्रेष्ठता-इस दौरान कमलेश नागरथ ने हॉकी व वालीबाल के साथ खो-खो, कबड्डी, एथलेटिक्स व बॉस्केटबाल में अपनी श्रेष्ठता द‍िखाते हुए विलक्षण उपलब्धि‍ हासिल की। इसके लिए उन्हें सम्मानित करते हुए असाधारण खेल व्यक्त‍ित्व ट्राफी प्रदान की गई। वे जन्मजात एथलीट रहीं इसके अनुरूप कमलेश ने 100200 मीटर दौड़ में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग ले कर बेहतर समय निकाल कर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। उन्होंने खो-खो, कबड्डी, एथलेटिक्स व बास्केटबाल में मध्यप्रदेश का प्रत‍िन‍िध‍ित्व किया। कमलेश को एनसीसी में राष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश का कई बार प्रत‍िन‍िध‍ित्व करने का अवसर मिला। एनसीसी में उन्होंने शूटिंग में असाधारण प्रदर्शन कर ख्याति अर्जित की। खेल के साथ कमलेश श‍िक्षा में भी नए शिखर छूती गईं। उन्होंने पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से फिज‍िकल एज्युकेशन में एमएड किया। पंजाब में भी कमलेश का खेल व्यक्त‍ित्व की कीर्ति फैली। यहां हॉकी व एथलेटिक्स में उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को देखते हुए दो बार स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।

इंग्लैंड में खो-खो और कबड्डी को लोकप्रिय बनाया-खेलों में नियमित कैरियर के बाद कमलेश नागरथ दिल्ली विश्वविद्यालय के श्यामा प्रसाद मुखर्जी महिला कॉलेज में फिजिकल एज्युकेशन की निदेशक नियुक्त हुईं। यहां उन्होंने खेल विकास के लिए कई नवाचार कर विद्यार्थ‍ियों को प्रोत्साहित किया। उनकी खेल प्रशासक के रूप में एक नई छवि निर्म‍ित हुई। दिल्ली में कार्यरत रहने के पश्चात् विवाह के बाद कमलेश इंग्लैंड चली गईं। इंग्लैंड में उन्होंने एक ऐसे भारतीय के रूप में विख्यात हुई जिन्होंने वहां देशी खेल खो-खो और कबड्डी को लोकप्रिय बनाने का विशेष अभ‍ियान चलाया। कमलेश नागरथ ने इंग्लैंड के स्कूलों में कबड्डी व खो-खो की शुरुआत करवाई। उन्होंने इसके साथ इंग्लैंड में फ‍िजिकल एज्युकेशन टीचर के रूप में कार्य किया। अंग्रेजी भाषा में पारंगत होने के कारण उन्होंने स्कूलों में अंग्रेजी विषय की श‍िक्षक की भूमिका का निर्वाह भी किया। भारतीय देशी खेलों को लोकप्रिय बनाने के उनके अभ‍ियान और उसमें मिली सफलता की कहानी बीबीसी साउथ टीवी में उनके एक इंटरव्यू के माध्यम से सामने आई। कमलेश इंग्लैंड में शौक के रूप में बैडमिंटन खेलने लगीं लेकिन धीरे धीरे इस खेल में उनकी ऐसी विशेषज्ञता आ गई कि वे वहां की प्रसिद्ध 'डेविड लॉयड' क्लब ट्राफी में दो बार विजेता बनीं।

खेल में सफलता का श्रेय पिताजी के प्रोत्साहन को-कमलेश नागरथ खेलों में मिली अपनी सफलता का पूरा श्रेय पिताजी एडवोकेट जेएन नागरथ को देती हैं। उनके प्रोत्साहन के बिना वे खेलों के इतने पायदान छू ही नहीं सकती थीं। जेएन नागरथ के नाम पर ही आज भी जबलपुर के एक प्रसिद्ध व व्यस्त चौराहा का नाम नागरथ चौराहा है। कमलेश की तरह उनके भाई अनिल नागरथ ने हिन्दी सिनेमा में ख्याति अर्जित की। वे मनमोहन देसाई के साथ एसोसिएट डायरेक्टर व संवाद लेखक रहे। अनिल नागरथ ने अमर-अकबर-अंथोनी फिल्म में अमिताभ बच्चन के आइना के सामने के प्रसिद्ध दृश्य को लिखा व निर्देश‍ित किया था। इस दृश्य में अमिताभ बच्चन को अभि‍नय की बदौलत उन्हें फिल्मफेयर सहित कई अवार्ड मिले थे। इस दृश्य को लिखने व निर्देश‍ित करने के लिए अमिताभ बच्चन आज भी अनिल नागरथ के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। नागरथ परिवार की विरासत को जबलपुर में वरिष्ठ अध‍िवक्ता नमन नागरथ आगे ले जा रहे हैं।🟦

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