गुरुवार, 11 मई 2023

किसने जबलपुर सहित मध्यप्रदेश में सर्वप्रथम चायनीज फुड परोसने और खाने का सलीका स‍िखाया

 
  आज चायनीज फुड देश में शहरों से गांव मजरा टोलों तक पहुंच गए हैं। रेस्त्रां से ले कर शादी ब्याह, जन्मदिन पार्टी प्रत्येक इवेंट में चायनीज फुड जरूरी हो गया है। चाय-चाट के ठेलों से ज्यादा चायनीज के ठेले हो गए। सुबह के नाश्ते से रात के डिनर तक लोग चायनीज फुड ही खा रहे हैं। जबलपुर के सीएम वांग (CM WANG) को हम श्रेय दे सकते हैं कि उन्होंने जबलपुर सहित पूरे मध्यप्रदेश को चायनीज फुड परोसने की शुरुआत  कर इसको खाने का सलीका सिखाया। आज से 75 वर्ष पहले सीएम वांग ने जबलपुर में घंटाघर के पास अपना क्लॉक टॉवर चायनीज रेस्त्रां शुरु किया था। उस समय जबलपुर के काफ़ी कम लोग चायनीज फुड खाने में रुचि रखते थे। लोगों को चायनीज फुड के बारे में कई तरह के भ्रम थे। इस तरह के भ्रम के कारण वांग अपने क्लॉक टॉवर चायनीज रेस्त्रां में चाय के साथ भारतीय खाने पीने के सामग्री रखते थे। लोगों की फरमाइश होने पर वे चायनीज फुड तैयार कर परोस देते थे। भारत में सातवें दशक में अचानक चायनीज फुड का क्रेज बढ़ने लगा और इसके साथ ही सीएम वांग का क्लॉक टॉवर चायनीज रेस्त्रां भी लोकप्रिय होने लगा। जबलपुर के शौकीन लोगों को चायनीज सूप ने सबसे पहले आकर्ष‍ित किया। उस समय छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की शुरुआत की थी और उनकी जबलपुर में नियुक्त‍ि थी। वे क्लॉक टॉवर चायनीज रेस्त्रां के नियमित व सम्मानित कस्टमर हुआ करते थे। वे चौथे पुल के पास रहते थे और शाम के समय उनका अध‍िकांश समय चायनीज रेस्त्रां में बीता करता था। उनके नजदीकी लोगों ने बताया कि उस समय अजीत जोगी के पास एक स्वेगा (मोपेड) हुआ करती थी जिसे चलाते हुए वे अंकल वांग के रेस्त्रां में पहुंच जाया करते थे।

सातवें दशक में जब भारतीयों को चायनीज फुड भाने लगा तब उनके सामने चॉप स्ट‍िक (दंडी के आकार की चम्मच) से खाने की समस्या आने लगी। मालूम हो पूर्वी एश‍ियाई देशों चीन, जापान, थाईलैंड में कोई भी भोजन चॉप स्ट‍िक से ही खाया जाता है और यूरोपीय देश के छुरी-चम्मच का उपयोग करते हैं। हम भारतीयों को हाथ से ही खाना रुचि कर लगता है। बासु चटर्जी की छोटी सी बातफिल्म में अशोक कुमार द्वारा अमोल पालेकर को चॉप स्ट‍िक के सलीके से उपयोग का मज़ेदार दृश्य आज भी लोगों को गुदगुदाता है। सीएम वांग ने चॉप स्ट‍िक की समस्या का समाधान कांटे-चम्मच से कर के स्थानीय लोगों की झि‍झक को दूर किया।

जब चायनीज रेस्त्रां की बात हो रही है तो यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि चीनी लोग जबलपुर में कैसे रच बस गए। बताया जाता है कि कुछ चीनी परिवार वर्ष 1930 में बर्मा (अब म्यान्मार) से जबलपुर पहुंचे थे। उस समय रंगून से पानी के जहाज से कलकत्ता आने में लगभग तीन-चार दिन का समय लगता था। कुछ परिवार कलकत्ता पहुंचे और उसमें से कुछ ने जबलपुर का रूख किया। वर्ष 1942-43 में कलकत्ता से डा. वू स‍िएन जबलपुर पहुंचे और यहीं बस गए। डा. सिएन दांत के डाक्टर के रूप में मशहूर हुए। उनके पुत्र टीएच लियाओ (Dr.Tsai Teh Liao) ने 1965-66 में डाक्टरी की पढ़ाई पूरा कर के डेंट‍िस्ट बन गए। पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने जबलपुर में हजारों लोगों की नकली बत्तीसी बना कर प्रस‍िद्ध‍ि पाई। अब इनकी तीसरी पीढ़ी डा. सीएच लियाओ मैदान में है।

सीएम वांग के क्लॉक टॉवर चायनीज रेस्त्रां से ले कर आगे तक की दस-बारह मकान व दुकाओं के मालिक जबलपुर के एक पारसी फ़ि‍रोज़ दारूवाला थे। बाद में उन्होंने वांग को वह जगह बेच दी। वांग जबलपुर वर्ष 1943 में कलकत्ता से पहुंचे थे और वर्ष 1948 में उन्होंने रेस्त्रां की शुरुआत कर दी थी। वांग का निधन वर्ष 1997 में हो गया। वांग की चार पुत्रि‍यां हैं। जिसमें मी ह्वा वांग  (MEE HWA WANG) जबलपुर में रहती हैं और शेष बाहर। मी ह्वा वांग वर्तमान में रेस्त्रां का संचालन करती हैं। वांग के प्रिय माइकल लेपचा रहे हैं। वे बचपन से ही रेस्त्रां के कामकाज से जुड़ गए थे और आज इसका कुशलता से प्रबंधन कर रहे हैं।🔹

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